यह कथा हम सभी जानते हैं कि राक्षसराज हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को मारने की बार-बार कोशिश कर रहा था। लेकिन प्रहलाद हर बार भगवान विष्णु की कृपा से बच जाते थे। राक्षसराज हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद को केवल विष्णु भक्ति से नाराज होकर घोर यातनाएं दे रहा था। एक दिन जब राक्षसराज हिरण्यकश्यप की यातनाएं बहुत ज्यादा बढ़ गई, तब विष्णु जी ने नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
दोस्तों, सनातन धर्म में नृसिंह अवतार को भगवान विष्णु का सबसे उग्र अवतार माना जाता है। कथा के मुताबिक हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था, उनके उग्र रूप को देखकर देवता भी डर गए थे। इसके लिए भगवान शिव को अति भयंकर शरभ अवतार लेना पड़ा था।
भगवान भोलेनाथ ने जब शरभ अवतार लिया तब उनके शरीर का आधा भाग शेर का, आधा भाग मनुष्य का और बाकी भाग शरभ नामक पक्षी का था। बता दें कि पुराणों में शरभ नामक अतिभंयकर पक्षी का उल्लेख मिलता है, जिसे शेर से भी ज्यादा शक्तिशाली माना जाता था और जिसके आठ पैर थे। संस्कृत ग्रंथों के अनुसार, शरभ अवतार के समय भगवान शिव के आठ पैर, दो पंख, चोंच, एक हजार भुजाएं, माथे पर जटा और चंद्र थे। कथा के मुताबिक पहले शरभ ने भगवान नृसिंह से शान्त होने का अनुरोध किया, बावजूद इसके जब वे शांत नहीं हुए तो शरभजी ने नृसिंह जी को अपनी पूंछ में लपेट लिया और उड़ गए। इसके बाद इन दोनों देवताओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान नृसिंह पराजित हुए फिर इसके बाद उनका गुस्सा शान्त हुआ। भगवान नृसिंह के द्वारा शरभ अवतार से क्षमा मांगने का भी उल्लेख मिलता है।
अब हम बात करते हैं भगवान शिव के ही रूद्रावतार महावीर हनुमान जी की। जीं हां, दोस्तों गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस में हनुमान जी को सीताजी द्वारा अजर-अमर होने के वरदान मिलने का उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं सनातन धर्मग्रन्थों के अनुसार भगवान श्रीराम द्वारा हनुमानजी को कलियुग के अंत तक जीवित रहने का आदेश प्राप्त है। जनमानस में भी यह बात सर्वविदित है हनुमान जी आज भी जीवित हैं। यह बात कालक्रमानुसार सत्य साबित होती रही है।
त्रेतायुग में जन्मे हनुमान जी द्वापर युग में भी जिंदा थे, क्योंकि महाभारत में उनके द्वारा महाबली भीम से मुलाकात की कथा आती है। काफी अर्से बाद अब इस आधुनिक युग में भी हनुमान जी के जीवित होने की खबरें आ रही हैं। साल 2014 में ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक खबर के अनुसार श्रीलंका के जंगलों में निवास करने वाले कबीलाई लोगों में ‘मातंग’ जनजाति में एक ऐसा परिवार हैं जिसके यहां हनुमानजी प्रत्येक 41 साल बाद उनसे मिलने के लिए जरूर आते हैं। मतलब साफ है, इस परिवार से मिलने के लिए हनुमान जी अब साल 2055 में आएंगे। अखबार ने इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन ‘सेतु’ के हवाले से यह सनसनीखेज खुलासा किया था कि साल 2014 में हनुमान जी इस कबीलाई परिवार से मिलने के लिए आए थे।
आध्यात्मिक संगठन ‘सेतु’ के मुताबिक मातंग कबीले का इतिहास रामायणकाल से जुड़ा है। कथा के मुताबिक भगवान श्रीराम के स्वर्ग सिधारने के बाद चिरंजीवी हनुमान जी अयोध्या छोड़कर दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए थे। इसके बाद समुद्र लांघकर एक बार फिर श्रीलंका पहुंचे थे, जहां काफी दिनों तक श्रीलंका के जंगलों में रहे थे। इस दौरान कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की, बदले में हनुमान जी ने उन लोगों से वादा किया कि वे हर 41 साल बाद इस कबीले की पीढ़ियों को ब्रह्मज्ञान देने के लिए आते रहेंगे।
कबीले का मुखिया हनुमानजी के साथ हुई हर बातचीत और घटना को लॉग बुक में दर्ज करता है। आध्यात्मिक संगठन ‘सेतु’ इसी लॉग बुक के अध्ययन में जुटा हुआ है क्योंकि यह जनजातीय भाषा में लिखा हुआ है। दोस्तों, आध्यात्मिक संगठन सेतु ने इस लॉग बुक का पहला चैप्टर अपनी वेबसाइट www.setu.asia पर पोस्ट भी किया है।
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