Tales of Expulsion from Parliament: From HG Mudgal to Mahua Moitra | AIRR News

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Tales of Expulsion from Parliament: From HG Mudgal to Mahua Moitra | AIRR News

संसद से निष्कासन की कहानियाँ: HG Mudgal से लेकर महुआ मोइत्रा तक | एआईआरआर समाचार

“संसद से निष्कासित होना एक बहुत ही गंभीर और अपमानजनक बात है, जो किसी सदस्य के लिए उसके राजनीतिक करियर का अंत भी हो सकता है। संसद से निष्कासित होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाना, संसद के कार्य को बाधित करना, संसद के नियमों का उल्लंघन करना, या संसद के सदन में अशिष्ट व्यवहार करना।”

लेकिन कुछ मामलों में, संसद से निष्कासित होने का कारण और भी गंभीर होता है, जैसे कि भ्रष्टाचार, रिश्वत, या देशद्रोह। ऐसे मामलों में, संसद से निष्कासित होने के साथ-साथ, सदस्यों पर कानूनी कार्रवाई भी होती है, और उन्हें चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित किया जा सकता है।

आज़ाद भारत के इतिहास में ऐसे ही तीन मामलों के बारे में आपको हम बताएंगे, जिनमें संसद से निष्कासित हुए सदस्यों को पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा था। ये मामले हैं – 1951 का एचजी HG Mudgal मामला, 1976 का सुब्रमण्यम स्वामी मामला, और 2005 का कैश फॉर क्वेरी मामला।

आपको बता दे कि यह मामला संसद के इतिहास में आया पहला मामला था, जिसमें एक सदस्य को पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा था। इस मामले में शामिल सदस्य का नाम एचजी मुद्गल था, जो कांग्रेस के नेता थे। उनपर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने व्यवसायिक संबंधों के तहत एक विदेशी कंपनी से रिश्वत ली थी। उन्होंने इस कंपनी के लिए संसद में सवाल पूछे थे, जिससे इस कंपनी को भारत में व्यापार करने में लाभ हुआ था।

इस आरोप को सामने लाने वाले बीजेपी सांसद श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। मुद्गल ने इस आरोप को खारिज किया और कहा कि उन्होंने कभी भी रिश्वत नहीं ली थी। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अपने संबंधों को संसद को बताने का कोई नियम नहीं बताया गया था। मुद्गल को 5 अप्रैल 1951 को संसदीय जांच समिति के सामने पेश होना पड़ा, जहां उन्होंने समिति के सदस्यों को अपने पक्ष में बातें बताईं। समिति ने मुद्गल के खिलाफ अपनी रिपोर्ट तैयार करके लोकसभा अध्यक्ष को सौंपी, जिसमें उन्हें दोषी पाया गया था।

इसके बाद 12 अप्रैल 1951 को, लोकसभा ने मुद्गल को संसद से निष्कासित करने का फैसला किया। यह फैसला उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रस्ताव पर लिया गया था। नेहरू ने कहा कि मुद्गल का कार्य संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है, और उन्हें इसके लिए सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जो संसद की गरिमा और जिम्मेदारी को दर्शाता है।

आपको बता दे कि मुद्गल के निष्कासन के बाद, उन्हें संसद से बाहर निकाल दिया गया, और उनके खिलाफ आईटी विभाग द्वारा जांच शुरू की गई। उन्हें आयकर अधिनियम के तहत अनेक धाराओं में दोषी पाया गया, और उन्हें करोड़ों का जुर्माना भरना पड़ा ओर उन्हें चुनाव लड़ने से भी प्रतिबंधित कर दिया गया, और उनका राजनीतिक करियर ही खत्म हो गया।

यह मामला संसद के इतिहास में एक काले धब्बे के रूप में याद किया जाता है, जिसने संसद की लोकप्रियता और विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया था। इस मामले ने संसद के सदस्यों के चरित्र और नैतिकता पर सवाल उठाए, और जनता को उनसे दूर कर दिया। इस मामले ने संसद के नियमों और प्रक्रियाओं को भी सुधारने की जरूरत बताई, और संसद के सदस्यों को अपने संबंधों को पारदर्शी बनाने का आदेश दिया।

इस प्रकार, यह मामला संसद के इतिहास का पहला और सबसे बड़ा कैश फॉर क्वेरी मामला था, जिसमें सरकार ने खुद ही अपने नेता को सजा दी थी, वही आज के समय में राजनीती में क्या हो रहा है वो किसी से छुपा नहीं है। 

धन्यवाद् 

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