Supreme Court Questions Citizenship Act Section 6A: A Deep Dive into the Controversy | AIRR News
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की Section 6A पर सवाल उठाए: विवाद की गहरी जानकारी | एआईआरआर समाचार
आज हम बात करेंगे सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में हुए एक निर्णय के बारे में, जिसमें उन्होंने सिटीजनशिप ऐक्ट के सेक्शन 6ए पर मोदी सरकार से कड़ा सवाल पूछा।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि नागरिकता अधिनियम की Section 6A को सिर्फ असम में प्रवासियों की सुरक्षा और नागरिकता देने के लिए क्यों लागू किया गया। इसके उलट पश्चिम बंगाल सहित अन्य सीमावर्ती राज्यों में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को इसमें शामिल नहीं किया गया। जबकि उन्हें भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र और असम सरकार की ओर से प्रावधान का बचाव कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह सवाल किया। पीठ ने पूछा, ‘आपने असम को क्यों अलग रखा। जबकि पश्चिम बंगाल की सीमा लंबी है। वहां घुसपैठ भी बहुत ज्यादा हो सकती है।
आगे पीठ ने सवाल किया कि पश्चिम बंगाल में भी अवैध प्रवासी हैं। बंगाल को बाहर रखने का क्या कारण है? हम यह नहीं कह रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भी प्रोटेक्ट किया जाना चाहिए। लेकिन, आपने राज्य को क्यों छोड़ा? यह अवैध पलायन किस हद तक है और सरकार पश्चिम बंगाल में क्या कर रही है?
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसे कई कानून हैं जो केवल एक राज्य पर लागू होते हैं। यह कानून को असंवैधानिक घोषित करने का आधार नहीं हो सकता है। मेहता ने कहा, ‘यह वर्गीकरण क्षेत्र के आधार पर है। इसे केवल इसलिए असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अन्य राज्यों पर लागू नहीं है।
आपको बता दे कि अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार से भी जवाब मांगा था लेकिन राज्य की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6-ए डाली गई थी। इसमें कहा गया है कि जो लोग 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे और तब से पूर्वोत्तर राज्य के निवासी हैं, उन्हें अपना पंजीकरण कराना होगा। धारा 18 के तहत उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करनी होगी। इसके नतीजतन असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तारीख 25 मार्च, 1971 तय करता है।
इस पर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि असम समझौता भेदभावपूर्ण था। इसकी वजह से यह असम समझौता असमिया लोगों को अन्य राज्यों में रहने वाले उन लोगों से अलग करता है जो किसी अन्य राज्य में प्रवेश कर चुके हैं। इसने राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जो असम आंदोलन के पीछे का मुख्य कारण रहा था। असमिया लोगों की इस आशंका और भय के कारण बार-बार जातीय झड़पें और संघर्ष हुए हैं, जिससे भारी जानमाल की हानि हुई है।
इआपको बता दे कि इसी विवाद को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से भी जवाब मांगा था , लेकिन राज्य की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। इस मामले की सुनवाई अभी जारी है और निर्णय अभी बाकी है।
इस सुनवाई का नतीजा भारतीय नागरिकता कानून और उसके प्रभाव को लेकर चल रही चर्चाओं में एक नया मोड़ ला सकता है।
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