आज हम एक ऐसे मुद्दे पर चर्चा करेंगे जिसने हाल ही में राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। समाजवादी पार्टी के सांसद आर.के. चौधरी ने संसद से Sengol को हटाने की मांग की है, जिसे सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने भारतीय संस्कृति का अपमान बताया है। इस विषय पर कई सवाल उठते हैं कि आखिर Sengol है क्या? इसे संसद में क्यों स्थापित किया गया? और क्या वाकई Sengol को हटाकर संविधान की प्रति रखी जानी चाहिए? इन सभी सवालों के जवाब इस वीडियो में मिलेंगे। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़। -Sengol In Parliament
Sengol, एक 5 फीट लम्बा स्वर्णमंडित राजदंड है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई 2023 को नए संसद भवन के लोकसभा कक्ष में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया। Sengol तमिल शब्द ‘सेम्मै’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘धर्म’। इसके शीर्ष पर पवित्र नंदी की मूर्ति है, जो ‘न्याय’ का प्रतीक है। पीएम मोदी ने इसे भारत की महान और प्राचीन परंपरा का प्रतीक बताया और कहा कि यह सांसदों को “कर्तव्य के मार्ग पर चलने और जनता के प्रति उत्तरदायी रहने” की याद दिलाएगा।
वैसे Sengol का ऐतिहासिक महत्व 1947 में स्वतंत्रता के समय से जुड़ा हुआ है। इसे अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी की सलाह पर तैयार किया गया था। जवाहरलाल नेहरू ने जब अपने मंत्रिमंडल से पूछा कि ब्रिटिशों से सत्ता हस्तांतरण को कैसे चिह्नित किया जा सकता है, तब राजाजी ने प्राचीन चोल प्रथा का उल्लेख किया, जिसमें राजा के राज्याभिषेक के समय ‘राजगुरु’ राजा को राजदंड सौंपते थे। मद्रास के जौहरी वुम्मुड़ी बंगारू चेट्टी को Sengol बनाने का आदेश दिया गया था। 14 अगस्त 1947 को वायसराय माउंटबेटन ने इसे तमिल पोंटिफ्स को सौंपा, जिन्होंने इसे शुद्ध किया और नेहरू को सौंपा।
इसके बाद यह राजदंड दशकों तक भुला दिया गया था और इलाहाबाद संग्रहालय में एक धूल भरे बक्से में पड़ा था, जिसे गलत तरीके से नेहरू के ‘स्वर्णमंडित छड़ी’ के रूप में चिह्नित किया गया था। पीएम मोदी की नजर एक मिनट के वीडियो पर पड़ी जिसमें वुम्मुड़ी बंगारू ज्वेलर्स द्वारा Sengol की कहानी बताई गई थी। इस वीडियो ने पीएम मोदी का ध्यान खींचा और Sengol को संसद में स्थापित किया गया।
आपको बता दे कि Sengolकी स्थापना पर विवाद के कई पहलू हैं। सबसे पहले, हमें इसके इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर विचार करना होगा। इतिहास में, Sengolसत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था, जो स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना को दर्शाता है। वर्तमान में, इसे संसद में स्थापित करना भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान माना जा सकता है। लेकिन, भविष्य में इसका राजनीतिक प्रभाव क्या होगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
इस विवाद में कई प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका रही है। समाजवादी पार्टी के सांसद आर.के. चौधरी ने इसे हटाने की मांग की है, जबकि पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने इसे भारतीय परंपरा का प्रतीक बताया है। विपक्षी दलों ने इसे धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया है और आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार इसे तमिल मतदाताओं को लुभाने के लिए इस्तेमाल कर रही है।
ऐसे में Sengol की स्थापना के लाभ और नुकसान पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट है कि इसके लाभ में भारतीय संस्कृति और इतिहास का सम्मान शामिल है। लेकिन, इससे जुड़े विवादों और राजनीतिक आलोचनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। विपक्षी दलों का कहना है कि यह संविधान की प्रतिष्ठा को कमजोर करता है और इसे संसद में रखने का कोई ठोस दस्तावेजी सबूत नहीं है।
तो इस तरह इस वीडियो के माध्यम से हमने Sengol की स्थापना के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया। इसका इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर प्रभाव, प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका और इससे जुड़े लाभ और नुकसान सभी महत्वपूर्ण हैं। अंत में, यह विवाद भारतीय राजनीति और संस्कृति के बीच संतुलन बनाने का एक उदाहरण है।
नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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