Sanjay Dutt , सिनेमा जगत का वो भारतीय अभिनेता, जिनका नाम न केवल फिल्मों में अपने कलाकारी के लिए, बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में अपने विवादों के लिए भी जाना जाता है। संजय दत्त को 1993 में मुंबई धमाकों के साथ जुड़े हुए आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उन्हें 20 साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्हें 2013 में इल्लीगल हथियार रखने के लिए पांच साल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद उन्हें 2016 में जमानत पर रिहा किया गया। इस वीडियो में हम इन घटनाओं को विस्तार से देखेंगे और जानेंगे।
संजय दत्त को 1993 में मुंबई धमाकों के साथ जुड़े हुए होने का आरोप लगाया गया था जिसमे बताया गया था कि उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के गुर्गे टाइगर मेमन से एक एके-56 राइफल और ग्रेनेड लिए थे, जो उन्होंने अपने घर में छिपा के रखे थे। इसका पता तब चला जब टाइगर मेमन के भाई याकूब मेमन के घर पर छापा मारा गया और उनके पास से एक वीडियो कैसेट मिला, जिसमें संजय दत्त को एके-56 राइफल के साथ दिखाया गया था। इसके अलावा, संजय दत्त के ड्राइवर और बॉडीगार्ड ने भी बताया कि उन्होंने टाइगर मेमन के लोगों को संजय दत्त के घर से हथियार लेकर जाते हुए देखा था।
आपको बता दे कि12 मार्च 1993 को मुंबई में सिलसिलेवार 13 धमाकों ने शहर को दहला दिया था। इन धमाकों में 257 लोगों की जान गई और 713 लोग घायल हुए। यह भारत का पहला ऐसा आतंकी हमला था जिसमें रिमोट-कंट्रोल बम, स्कूटर, कार और ट्रक का इस्तेमाल किया गया था। इन धमाकों के पीछे कौन था और उन्होंने इसे क्यों और कैसे किया, यह एक लंबी और जटिल जांच का विषय बना।
आगे जांच के दौरान पता चला कि इन धमाकों की साजिश का मुख्य आरोपी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम था, जिसने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से इसे अंजाम दिया था। दाऊद इब्राहिम ने अपने भाई अनीस इब्राहिम और अपने गुर्गे टाइगर मेमन को इस कार्य को निर्वहन करने का जिम्मा दिया था। इन लोगों ने अपने साथियों को खाड़ी देशों के रास्ते पाकिस्तान भेजकर बम बनाने और रिमोट-कंट्रोल का उपयोग करने की ट्रेनिंग दिलाई। इन लोगों ने अपने नेटवर्क के जरिए पाकिस्तान से आरडीएक्स, डिटोनेटर और हथियार भारत में लाए और शहर के विभिन्न स्थानों पर छिपाए।
इन धमाकों का मकसद क्या था? जांच एजेंसियों का मानना है कि यह धमाके भारत में मुस्लिमों के खिलाफ हुए दंगों का बदला लेने के लिए किए गए थे। साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुंबई में हुए दंगों में बड़ी संख्या में मुस्लिमों की मौत हुई थी। इन दंगों के सिलसिले में मुंबई और पास के इलाक़ों के मज़बूत दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठन शिव सेना का नाम लिया जाता रहा है। दाऊद इब्राहिम और उनके साथियों का कहना है कि वो इस्लाम की रक्षा करने के लिए इन धमाकों को किया था। लेकिन यह धमाके न केवल निर्दोष लोगों की जान लेने का कारण बने, बल्कि मुंबई के सामाजिक और आर्थिक तंत्र को भी बुरी तरह से प्रभावित किया।
इन धमाकों के बाद क्या हुआ? इन धमाकों के बाद भारतीय सरकार ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए। इनमें से एक कदम था टाड़ा कानून का बनाना, जिसके तहत आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए विशेष अदालतें बनाई गईं।
संजय दत्त को 19 अप्रैल 1993 को गिरफ्तार किया गया था, जब वो मुंबई लौट रहे थे। उन्हें टाड़ा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिसके तहत उन्हें बिना जमानत के जेल में रखा गया था। उन्होंने पहले तो इन आरोपों को नकारा, लेकिन बाद में उन्होंने इकरार किया कि उन्होंने टाइगर मेमन से हथियार लिए थे, लेकिन वो उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए लिए थे, क्योंकि उन्हें दंगों के दौरान धमकियां मिली थीं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इन धमाकों के बारे में कुछ नहीं पता था और वो इनमें शामिल नहीं थे।
फिर भी उन्हें टाड़ा कानून के तहत आतंकवाद से जुड़े अपराधों का सामना करना पड़ा। उन्हें इल्लीगल हथियार रखने, आतंकवादी संगठनों के साथ सांठगांठ करने और धमाकों में सहयोग देने का आरोप लगाया गया था। उनका मुकदमा टाड़ा कोर्ट में चला, जिसमें उनके वकील उनकी बेगुनाही साबित करने की कोशिश करते रहे।
इसके बाद 1995 में, संजय दत्त को जमानत मिली, लेकिन 1996 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 1997 तक जेल में रखा गया, जब उन्हें फिर से जमानत मिली। उनका मुकदमा लंबा और जटिल रहा, जिसमें कई गवाहों और सबूतों का बयान लिया गया। 2006 में, टाड़ा कोर्ट ने संजय दत्त को आतंकवाद से जुड़े आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन उन्हें इल्लीगल हथियार रखने के लिए दोषी पाया। उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त की सजा को पांच साल में कम कर दिया, लेकिन उन्हें जेल में जाने का आदेश दिया। उन्हें 16 मई 2013 को येरवाडा जेल में भेजा गया, जहां उन्हें कई बार परोल और फर्लो मिला। उन्हें 25 फरवरी 2016 को जमानत पर रिहा किया गया, जिसके बाद उन्होंने अपनी फिल्मी कैरियर को फिर से शुरू किया।
आपको बता दे कि कुछ लोगों का मानना है कि संजय दत्त को उनकी सेलिब्रिटी स्टेटस के कारण नरम दिली मिली, जबकि बाकी आरोपियों को कड़ी सजा मिली। संजय दत्त को उनके पिता सुनील दत्त की राजनीतिक शक्ति और दबाव के कारण बचाया गया, जबकि बाकी आरोपियों को न्याय नहीं मिला। इसके उलट संजय दत्त को उनके परोल और फर्लो के लिए अनुकूलता मिली, जबकि बाकी कैदियों को ऐसी सुविधा नहीं मिली। दूसरे संजय दत्त को उनके इल्लीगल हथियार रखने के लिए कम सजा मिली, जबकि उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा दिया था।
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