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इस विशेष कार्यक्रम में, हम आपको बताएंगे कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष के चुनाव के पीछे का राज क्या है, जिसने भारत के कुछ सबसे बड़े पहलवानों को अपना करियर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। हम आपको ये भी बताएंगे कि इस मुद्दे पर सरकार और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का इस पर क्या रुख है, और इससे भारतीय कुश्ती को कितना नुकसान होगा।
कहानी की शुरुआत होती है जब भारत की पहली महिला कुश्ती पहलवान और ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने गुरुवार को अपनी रिटायरमेंट की घोषणा की। साक्षी ने अपने जूते मेज पर रखकर कहा कि वह अब कभी मैट पर नहीं दिखेंगी, क्योंकि उन्हें भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष के रूप में बृज भूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह का चुनना मंजूर नहीं है।
आगे साक्षी ने कहा कि वह और दूसरे पहलवान बृज भूषण के खिलाफ आरोप लगाते हैं कि उन्होंने महिला पहलवानों का यौन शोषण किया है, और इस मामले में अभी कानूनी कार्रवाई चल रही है। साक्षी ने कहा कि उन्हें एक महिला अध्यक्ष चाहिए था, लेकिन वह नहीं हुआ।
इसी तरह, टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले बजरंग पुनिया ने भी शुक्रवार को अपना पद्म श्री पुरस्कार वापस करने का फैसला किया। उन्होंने एक पोस्ट में लिखा कि वह अपना पद्म श्री प्रधानमंत्री को वापस कर रहे हैं।
बजरंग ने कहा कि उन्हें भी बृज भूषण के साथी संजय सिंह के चुनाव से निराशा हुई है, और वह अब नहीं जानते कि वह कुश्ती जारी रखेंगे या नहीं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने अपने वादे पर कायम नहीं रही, कि कोई भी बृज भूषण का समर्थक WFI के चुनाव में नहीं लड़ेगा।
आपको बता दे कि ये दोनों पहलवान विनेश फोगाट और गीता फोगाट जैसे अन्य प्रमुख पहलवानों के साथ इस साल के शुरुआत में बृज भूषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने जनवरी में जंतर मंतर पर धरना देकर उनके इस्तीफे की मांग की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुई, तो वह टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे।
उनका आरोप था कि बृज भूषण ने WFI को अपने व्यक्तिगत हितों के लिए उपयोग किया है, और उन्होंने महिला पहलवानों को अपने अधीन करने के लिए दबाव डाला है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें अच्छे ट्रेनिंग, डाइट, टूर्नामेंट और फैसिलिटी की कमी का सामना करना पड़ता है।
उनके प्रदर्शन ने खेल मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति को भी चिंतित कर दिया था, जिसने इस मामले को गंभीरता से लेने का आश्वासन दिया था। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने मई में पहलवानों से मुलाकात करके उन्हें यह वादा किया था कि कोई भी बृज भूषण का परिवार या सहयोगी WFI के चुनाव में नहीं भाग लेगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि एक निगरानी समिति गठित की जाएगी, जो इस मामले की जांच करेगी, और अगर कोई दोषी पाया जाता है, तो उसे कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन इन सब वादों के बावजूद, जब WFI के चुनाव हुए, तो बृज भूषण के करीबी संजय सिंह ने अध्यक्ष का पद जीत लिया। उनके पैनल ने 15 में से 13 पदों पर जीत हासिल की। इसने साक्षी, बजरंग और विनेश जैसे पहलवानों को निराश कर दिया, जिन्होंने संघ में नेतृत्व परिवर्तन के लिए जोरदार आवाज उठाई थी।
इस परिणाम को देखते हुए, साक्षी ने अपनी रिटायरमेंट की घोषणा की, और बजरंग ने अपना पद्म श्री वापस करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि वह अपनी बहनों और बेटियों के सत्य और सम्मान के लिए लड़ रहे थे, लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी।
इस विरोध का असर भारतीय कुश्ती पर भी पड़ा है, जिसकी छवि और प्रतिष्ठा दोनों ही खतरे में हैं। अगर ये पहलवान अपने फैसले पर अड़े रहे, तो भारत को अगले ओलंपिक में कुश्ती में कोई पदक नहीं मिल सकता है।
इस मामले पर IOC ने भी अपनी चिंता जाहिर की है, और कहा है कि वह भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव की प्रक्रिया को नज़र में रखेगा, और यदि कोई अनियमितता पाई जाती है, तो वह उचित कार्रवाई करेगा।
इस मामले में खेल मंत्रालय ने भी कहा है कि वह इसे गंभीरता से लेगा, और पहलवानों की शिकायतों को दूर करने के लिए हर संभव कोशिश करेगा। वह यह भी कहा है कि वह पहलवानों को उनके करियर को जारी रखने की सलाह देगा, और उनके साथ बातचीत करने का प्रयास करेगा।
इस मामले को लेकर विभिन्न खेलकरों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी अपनी राय दी है। कुछ लोगों ने पहलवानों का समर्थन किया है, और कुछ ने उन्हें अपना फैसला बदलने के लिए प्रेरित किया है। कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि यह एक राजनीतिक साजिश है, जिसका उद्देश्य भारतीय कुश्ती को बर्बाद करना है।
इस विवाद का अंत कैसे होगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। लेकिन एक बात तय है कि इससे भारतीय कुश्ती को एक बड़ा झटका लगा है, जिसका प्रभाव आने वाले समय में देखा जा सकता है।
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