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आज हम आपको ताइवान और चीन के बीच के राजनीतिक और आर्थिक संबंधों के बारे में बताएंगे, जो कि एक बहुत ही जटिल और विवादास्पद मुद्दा है।
ताइवान और चीन के बीच का इतिहास 1949 में शुरू हुआ, जब चीन के गृहयुद्ध में माओ जेडोंग की कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत हासिल की, और उन्होंने बीजिंग में लोकतांत्रिक गणराज्य चीन की स्थापना की। चीन के राष्ट्रवादी सरकार, जिसे कुओमिंटांग कहा जाता है, ने ताइवान में पलायन करके अपनी सरकार की स्थापना की, और उन्होंने अपना नाम गणराज्य चीन रखा। और चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, और इसे जबरदस्ती या अन्यथा चीन के साथ एकीकरण करने की कोशिश करता है। लेकिन ताइवान अपने आप को चीन के मुख्यभूमि से अलग मानता है, और अपने संविधान और लोकतंत्रिक रूप से चुने गए नेताओं के साथ अपनी पहचान बनाए रखता है।
आपको बता दे कि ताइवान और चीन के बीच के राजनीतिक संबंधों में कई उतार-चढ़ाव रहे हैं, जो दोनों देशों के नेताओं, विदेशी दबाव, और आंतरिक मुद्दों पर निर्भर करते हैं। 1992 में, दोनों पक्षों ने एक सहमति पर हस्ताक्षर किए, जिसे 1992 का समझौता कहा जाता है, जिसमें वे मानते हैं कि चीन केवल एक ही है, लेकिन इसका अर्थ अलग-अलग है। इस समझौते के तहत, दोनों पक्षों ने आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाया, लेकिन राजनीतिक और सैन्य संबंधों को अलग रखा।
2010 में, ताइवान और चीन ने एक आर्थिक सहयोग फ्रेमवर्क समझौता पर हस्ताक्षर किए, जो दोनों देशों के बीच के व्यापार और निवेश को आसान बनाने के लिए तरीफ और नियमों को कम करने का उद्देश्य रखता है। इस समझौते का विरोध करने वाले लोगों का मानना है कि यह ताइवान को चीन के आर्थिक नियंत्रण में ले जाएगा।
इसके बाद 2016 में, ताइवान के लोकतंत्रिक प्रगतिशील पार्टी की अध्यक्ष और उम्मीदवार त्साई इंग-वेन ने राष्ट्रपति का चुनाव जीता, और उन्होंने चीन के साथ शांतिपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का वादा किया। लेकिन उन्होंने चीन के दावे को स्वीकार नहीं किया, और न ही वे 1992 समझौते को मानती हैं। इससे चीन नाराज हुआ, और उन्होंने ताइवान के साथ के आर्थिक और राजनीतिक संपर्कों को काट दिया। चीन ने ताइवान के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व को भी रोकने का प्रयास किया, और उनके साथ रिश्ते रखने वाले देशों को दबाव डाला।
2020 में, त्साई इंग-वेन ने फिर से राष्ट्रपति का चुनाव जीता, और उन्होंने अपने नेतृत्व को मजबूत किया। उन्होंने चीन के खिलाफ ताइवान की रक्षा करने का संकल्प लिया, और अमेरिका, जापान, और अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास किया। चीन ने इसका जवाब देते हुए ताइवान के आसपास अपने सैन्य विमानों और जहाजों का प्रदर्शन किया, और उन्होंने ताइवान के लिए युद्ध की धमकी दी।
2023 में, ताइवान और चीन के बीच के राजनीतिक और आर्थिक संबंधों में और भी तनाव बढ़ा है, जो ताइवान के आगामी राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के पहले हुआ है। चीन ने ताइवान को आर्थिक संकट में डालने के लिए अपने व्यापारी संकेतों को रद्द कर दिया है, और उन्होंने ताइवान के चुनावों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है। ताइवान ने चीन को अपने लोकतंत्र और स्वतंत्रता को खतरे में डालने का दोष दिया है, और उन्होंने चीन के दबाव को झेलने के लिए अपने दोस्तों और सहयोगियों का सहारा लिया है।
इस प्रकार, ताइवान और चीन के बीच के राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का एक संक्षिप्त और सरल परिचय आपके सामने है। यह एक बहुत ही जटिल और विवादास्पद मुद्दा है, जिसमें दोनों पक्षों के अपने-अपने मत, रुचि, और चुनौतियां हैं। इस मुद्दे का हल निकालना आसान नहीं है, लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को एक दूसरे का सम्मान करना होगा, और शांतिपूर्ण और सांप्रदायिक ढंग से बातचीत करना होगा।
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