Parliament Attack 2001: The Darkest Day in Indian History
Parliament Attack 2001: भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन
13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर एक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 14 लोगों की जान गई और 22 लोग घायल हुए। इस हमले के पीछे पाकिस्तान से संबंधित आतंकवादी संगठनों की गन्दी साजिश को बताया गया , जिसका उद्देश्य भारत को आघात पहुंचाना था। इस वीडियो में हम इस हमले की पूरी कहानी को तथ्यों के आधार पर वर्णित करेंगे, जिसमें Parliament Attack, आतंकवादियों के साथ हुई कार्यवाही, बाकि आतंकवादियों के साथियों की तलाश, गिरफ्तारियां, उनके पाकिस्तान से सम्बन्ध, और कानूनी कार्यवाही आदि शामिल हैं।
13 दिसंबर 2001 को दोपहर 11:40 बजे, पांच आतंकवादी एक वाइट कलर की गाड़ी से संसद के परिसर में घुसे। अंदर जाने के बाद उन्होंने अपनी गाड़ी को संसद के लॉबी के पास खडा कर दिया, और उसमें एक बम लगा दिया। फिर उन्होंने अपने हथियारों से अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी , जवाब में सुरक्षा बलों ने भी उनको जवाब दिया। इस मुठभेड़ की दूसरी तरफ संसद में विभिन्न दलों के सांसद, मंत्रिमंडल के सदस्य, और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे, जिन्हें तुरंत सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया।
थोड़ी देर में ही सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों को चारो तरफ से घेर लिया। ऐसे में एक आतंकवादी ने अपने आप को आत्मघाती विस्फोटक से उड़ा दिया, जिससे उसके शरीर के टुकड़े संसद परिसर में बिखर गए। बाकि चार आतंकवादी भी सुरक्षा बलों की गोलियों से जल्द ही मारे गए। ये मुठभेड़ तक़रीबन 42 मिनट चली , जिसमें आतंकवादियों के अलावा, नौ सुरक्षा कर्मी, एक गार्डनर, और चार पत्रकार शहीद हुए, और 22 लोग घायल हुए। घायलों में से कुछ की हालत गंभीर थी, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
इस घटना ने पुरे देश में हड़कंप मच गया। भारत की तमाम ख़ुफ़िया एजेंसियो पर सवाल उठने लगे। ऐसे में जाँच शुरू कर दी गयी। पुलिस ने आतंकवादियों के शवों को तत्काल तौर पर जांच के लिए भेजा गया, और उनके हथियारों, बमों, और अन्य सामग्रियों को बरामद किया गया। इससे पता चला कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे, और उनके पास पाकिस्तानी हथियार, आईडी कार्ड, और मोबाइल पाए गए थे।
इन सभी सबूतों से उनके मोबाइल फोन से उनके संगठनों के नेताओं और सहयोगियों के साथ उनके सम्बन्धो का खुलाशा हुआ। उनसे जब्त किये गए मोबाइल फ़ोन से उनकी पाकिस्तान में हुए बातचीत के रिकॉर्ड भी मिले, जिनमें उन्हें हमले के लिए निर्देश दिए गए थे। इन सबूतों के आधार पर, भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद का आश्रय देने और इस हमले के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया, और उससे इस मामले की जांच में सहयोग की मांग की।
इस हमले के बाद, भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ने इन आतंकवादियों के साथियों की तलाश शुरू कर दी, और उनमें से कुछ को गिरफ्तार भी किया। इनमें से सबसे प्रमुख थे अफजल गुरु, जिसे इस हमले का मास्टरमाइंड माना गया , और शौकत हुसैन, जो उसका साथी था। इन दोनों को दिल्ली पुलिस ने 15 दिसंबर 2001 को गिरफ्तार किया था। इसके अलावा, एसएआर गीलानी, जो एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, और नवजोत संधु, जो एक जॉर्नलिस्ट थी, को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया । इन सभी को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया, और उन पर विशेष अधिकार अधिनियम POTA के तहत मुकदमा चलाया गया।
आपको बता दे कि इस मुकदमे की सुनवाई एक विशेष अदालत में हुई, जिसने 18 दिसंबर 2002 को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने अफजल गुरु, शौकत हुसैन, और एसएआर गीलानी को मृत्युदंड की सजा सुनाई, और नवजोत संधु को उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद, इन चारों ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, जिसने 29 अक्टूबर 2003 को अपना फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने एसएआर गीलानी और नवजोत संधु को बरी कर दिया, और अफजल गुरु और शौकत हुसैन की मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा। इसके बाद, इन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसने 4 अगस्त 2005 को अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने शौकत हुसैन के मृत्युदंड को बदलकर 10 साल की जेल की सजा में बदल दिया। लेकिन अफजल गुरु को मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा, और उसे फांसी की सजा सुनाई।
अफजल गुरु ने अपने खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए राष्ट्रपति को दया याचिका दायर की , जिसे लंबे समय तक लटकाया गया। इस दौरान, उसके पक्ष में कई लोगों ने आवाज उठाई, और उसकी फांसी को रोकने की मांग की। लेकिन भारत सरकार ने इसे नजरअंदाज करते हुए, 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को चुपके से फांसी दे दी। उसके परिवार को उसकी मौत के बारे में फांसी के बाद ही सूचित किया गया, और उन्हें उसका शव देखने या अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी गई। उसका शव तिहाड़ जेल के अंदर ही दफना दिया गया, जहां पहले ही जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल भट्ट का शव था।
आपको बता दे कि अफजल गुरु की फांसी ने कश्मीर में और भी आक्रोश और असंतोष पैदा किया। कई लोगों ने उसे एक शहीद और एक नायक माना, और उसके लिए शोक सभा और नमाज़-ए-जनाज़ा का आयोजन किया। कश्मीर में कई जगहों पर कर्फ्यू लगाया गया, और सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। अफजल गुरु के मामले में कई मानवाधिकार संगठनों, विद्वानों, और राजनीतिक दलों ने भी आपत्ति जताई, और कहा कि उसे निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिली, और उसकी फांसी एक राजनीतिक फैसला था।
आपको बता दे कि अफजल गुरु का जन्म 30 जून 1969 को जम्मू और कश्मीर के बारामूला जिले में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। जहा उन्होंने सोपोर के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, और फिर झेलम वैली मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया। लेकिन, उन्होंने अपना पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया, और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल हो गए। उन्होंने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का समर्थन किया, और पाकिस्तान में हथियारों का प्रशिक्षण लिया। बाद में, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, और बैंक ऑफ़ अमरीका में नौकरी की। 1998 में, उन्होंने अपनी पत्नी तबस्सुम गुरु से शादी की, और एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम गालिब गुरु रखा।
अफ़ज़ल का अपनी पढ़ाई के दौरान कई छात्र संगठनों के साथ जुड़ाव हो गया था।
काफी लोगो का मानना है कि उसने कई बार कश्मीर में आतंकवादी संगठनों से जुड़ने की भी कोशिश की थी , लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी। इसी बीच उसने अपनी पढ़ाई भी छोड़ दी।
आपको बता दे कि अफजल ने Parliament Attack की साजिश में खुद के शामिल होने के आरोप स्वीकार किया था , लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया और कहा कि वह ब्यान उससे जबरदस्ती देने को कहा गया था। उसने कहा कि उसे जासूसी के लिए राजी किया गया था, लेकिन बाद में उसे हमले में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था। उसने कहा कि उसे कोई वकील नहीं दिया गया था, और उसे निर्दोष साबित करने का कोई मौका नहीं मिला था।
बाकि कानूनी जाँच में बताया गया था कि उसके पास पाकिस्तानी हथियार, आईडी कार्ड, और मोबाइल फोन मिले थे, जो उसके पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध को दर्शाते थे । साथ ही उसके मोबाइल फोन से उसके संगठनों के नेताओं और सहयोगियों के साथ हुए बातचीत के रिकॉर्ड मिले, जिनमें उन्हें Parliament Attack के लिए निर्देश दिए गए थे।
और पुलिस हिरासत में उसने अपने बयान में Parliament Attack की साजिश में शामिल होने का आरोप स्वीकार किया था, और अपने साथियों के नाम और पते बताए थे। जिसके आधार पर उसके साथियों में से कुछ को गिरफ्तार किया गया था, और उन्होंने भी उसके साथ मिलकर हमले की योजना बनाने का आरोप माना था।
आपको बता दे कि अफजल के खिलाफ एक विशेष अदालत में मुकदमा चलाया गया था, जिसमें उसे वकील दिया गया था, लेकिन उसने उसकी सेवाओं का इस्तेमाल नहीं किया था।
उसके खिलाफ दो अपीलीय अदालतों में भी मुकदमा चलाया गया था, जिसमें उसके वकीलों ने उसके पक्ष में दलीलें पेश की थीं, लेकिन उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था।
बाकि इन सबूतों और गवाहों को देखते हुए, हम यह कह सकते हैं कि अफजल गुरु के बयान में कई कमजोरियां और विरोधाभास थे, जिनसे उसका दोषी होना प्रतीत होता है। लेकिन, अफजल के अनुसार उसका पाकिस्तानी हथियार, आईडी कार्ड, और मोबाइल फोन से उसके साथ कोई संबंध नहीं था, और वह उन्हें एक अजनबी से लेने को कहा गया था। साथ ही पुलिस रिकॉर्ड में रखे मोबाइल फोन से हुए बातचीत के रिकॉर्ड में उसकी आवाज़ नहीं थी,और न ही वह जासूसी के लिए काम कर रहा था ।
बाद में अफजल के साथियों में से कुछ को बरी भी कर दिया गया था, जबकि उनपर भी संगीन आरोप थे ।
इस प्रकार, हम यह कह सकते हैं कि अफजल गुरु के मामले में कई विवाद और अनिश्चितता थीं, जिनके कारण उसका दोषी या निर्दोष होना एक स्पष्ट और निर्णायक बात नहीं थी। उसके फांसी का फैसला एक राजनीतिक और सामाजिक दबाव के तहत लिया गया था, जिसपे कई लोगों को भारी आपत्ति और गुस्सा था।
धन्यवाद्।
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