मौजूदा समय में जब तकनीकी प्रगति और व्यक्तिगत उपलब्धियों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि RSS के प्रमुख मोहन भागवत ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। झारखंड के गुमला में विकास भारती द्वारा आयोजित एक गांव-स्तरीय कार्यकर्ता बैठक में भागवत ने मानवता की सेवा में निरंतर कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि स्वयं को ‘सुपरमैन’ या ‘भगवान’ समझने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। यह विचार न केवल भारतीय परंपराओं और मूल्यों की गहराई को दर्शाता है, बल्कि आधुनिक समाज के सामने आने वाली चुनौतियों को भी संबोधित करता है।-Mohan Bhagwat Insights
ऐसे में क्या यह विचार आज के समाज में प्रासंगिक है? क्या वास्तव में हम अपने आत्म-विकास की अति में अपने समाज और पर्यावरण को भूलते जा रहे हैं? इन सवालों पर विचार करना जरूरी है। इसलिए आज हम चर्चा करेंगे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक महत्वपूर्ण भाषण की, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और मानवता की सेवा के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया। आइए, जानते हैं इस भाषण की पूरी कहानी और इसके पीछे छिपे विचारों की गहराई।-Mohan Bhagwat Insights
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने झारखंड के गुमला में विकास भारती द्वारा आयोजित एक गांव-स्तरीय कार्यकर्ता बैठक में संबोधित किया। उन्होंने मानवता की सेवा में निरंतर कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया और चेतावनी दी कि स्वयं को ‘सुपरमैन’ या ‘भगवान’ समझने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।-Mohan Bhagwat Insights
भागवत ने अपने भाषण में कहा, “आंतरिक विकास और बाहरी विकास की कोई सीमा नहीं होती है और हमें हमेशा मानवता के लिए लगातार काम करते रहना चाहिए। एक कार्यकर्ता को कभी भी अपने काम से संतुष्ट और खुश नहीं होना चाहिए। काम जारी रहना चाहिए, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में निरंतर कार्य करना चाहिए।”-Mohan Bhagwat Insights
भागवत ने यह भी कहा कि दुनिया ने कोरोना महामारी के बाद यह समझा कि भारत के पास शांति और खुशी का रोडमैप है। उन्होंने भारत की पारंपरिक जीवन शैली को श्रेष्ठ बताया और कहा कि पिछले 2,000 वर्षों में विभिन्न प्रयोग किए गए, लेकिन वे भारत की पारंपरिक जीवन शैली की तरह शांति और खुशी नहीं ला सके।
आपको बता दे कि मोहन भागवत के इस भाषण के कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जो आधुनिक समाज में गहराई से विचार करने योग्य हैं।
1. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं और समाज की सेवा:
भागवत का यह विचार कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं समाज की सेवा से ऊपर नहीं होनी चाहिए, एक महत्वपूर्ण संदेश है। आधुनिक समाज में, जहां व्यक्ति की सफलता और प्रगति को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है, यह याद रखना आवश्यक है कि हमारी उपलब्धियों का उद्देश्य समाज की भलाई और सेवा होना चाहिए।
2. भारतीय परंपराएं और आधुनिक समाज:
भागवत ने भारतीय परंपराओं और जीवन शैली की श्रेष्ठता को भी उजागर किया। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी जड़ों को न भूलें और उन मूल्यों को अपनाएं जो हमें शांति और खुशी की ओर ले जाते हैं।
3. पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य:
भागवत का यह कहना कि हमें इन क्षेत्रों में निरंतर कार्य करना चाहिए, आज के समय की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है। पर्यावरण की सुरक्षा, शिक्षा की गुणवत्ता और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना हमारे समाज के लिए अनिवार्य है।
4. कोरोना महामारी के बाद का विश्व:
भागवत ने यह भी बताया कि कोरोना महामारी के बाद दुनिया ने भारत की परंपराओं और जीवन शैली की महत्वपूर्णता को समझा। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि महामारी ने हमें यह सिखाया है कि सरल जीवन और प्राकृतिक संतुलन कितने महत्वपूर्ण हैं।
बाकि इस तरह के विचार भारतीय समाज और राजनीति में पहले भी कई बार सामने आए हैं। महात्मा गांधी ने भी अपने जीवन में सादगी और मानवता की सेवा पर जोर दिया था।
स्वामी विवेकानंद ने भी व्यक्तिगत विकास और समाज की सेवा के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया था।
भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को समाज की सेवा के साथ जोड़कर देखा गया है।
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