Know the Hindu enemy of Akbar in whose honor Akbar built his statue.

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जानिए Akbar के वह हिन्दू दुश्मन जिनके सम्मान में अकबर ने उनकी मूर्ति बनवायी। 

राणा जयमाल , पत्ता और राणा कल्ला यह वह तीन नाम है जिसे चित्तौड़ की दीवारें कभी  नहीं भूलेंगी। अपनी आखरी सास तक लड़ने वाले इन तीन शूरवीरो ने ऐसा क्या किया की Akbar अपनी जीत का जश्न तक नहीं मन पाया। अपनी मातृभूमि को समर्पित इन तीन योद्धाओं ने ऐसा तो क्या किया था की इनके हथियार अकबर तक को इनकी मूर्ति बनवनी पड़ी थी। 

जयमल लिखे जवाब जद सुणजे अकबर शाह। 

आन फिरे गढ़ उतरा सिर पट शाह। 

है गढ़ मानो घु घनी असुर तेरे सिमहर 

ऊँचिया गढ़ चित्तोड री भेदी मोरी दिवार 

यह शब्द है उस इंसान के जिसकी वीरता ने Akbar की जीत पर भी कलंक लगा दिया था। मेड़ता नरेश राणा जयमाल, जिन्हे  चित्तोड  युद्ध में सेनापति के तौर पर नियुक्त किया गया था। उनके पास केवल ८००० सैनिक थे फिर भी कहा जाता है की उन्होंने अकबर को इतना परेशान कर दिया था की गर्ध में प्रवेश करने अनेक प्रयासों के बाद  अकबर ने राणा जयमाल को पत्र लिखते हुए कहा की  “आप जैसे वीर को इस युद्ध में प्राण गवा कर क्या मिलेगा आप हमारे साथ जुड़े और मुझे चित्तोर का किल्ला सौप दीजिए। बदले में , मै आपका मेड़ता राज्य वापिस कर दूंगा साथ ही अन्य राज्य भी भेट में दूंगा।  

Akbar के इस प्रलोभन का जवाब लिखते हुए राणा जयमल ने ऊपर लिखी हुई पंक्तियां लिखी थी  जिसका अर्थ था। “जयमाल का जवाब ध्यान से सुन्ना अकबर , मेरे राजा ने बोहोत ही विश्वास के साथ मुझे इस गढ़  की

ss ज़िम्मेदारी सौपी है। इसलिए  यदि आपको चित्तोर के दुर्घ में प्रवेश करना है तो मेरे मृत्यु के पश्च्यात ही जाना होगा क्यूंकि जब  तक राणा जयमाल जीवित है तब तक कोई भी असुर इस गढ़ में प्रवेश नहीं कर सकता।  

उन्होंने जो कहा उसे कर के भी दिखाया।  कई महीनो की सख्त घेराबंदी के बावजूद उन्होंने न सिर्फ दुर्घ की रक्षा की बल्कि अपने भतीजे राणा कल्लाजी  जो  रनेला के जागीरदार थे , उन्हें भी उनके विवाह के दिन ही चित्तोड़ की रक्षा के लिए भी बुलाया। उस महावीर ने अपनी  राजकुमारी से विदाई ली और चल पड़े अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए। 

इस कहानी के तीसरे महानायक है चित्तोरगढ के प्रमुख सेनापति फतेह सिंह चुण्डावत जिन्हे फत्ता  या फिर पत्ता के नाम से भी जाना जाता है।  उन्हें केलवा की जागीर प्राप्त थी।  

यह भीषण युद्ध कई महीनों तक चला। पर राणा जयमाल ,कल्ला  और पत्ता हर तरह से तैयार थे जैसे की ,

१) उन्होंने पहले से ही खाने की सामग्री एकत्रित कर के रखी थी। 

२) नगर वासियों  तक को उन्होंने किल्ले में सुरक्षित रखने का इंतज़ाम किया था। 

३) जब इन चार महीनों में कई बार आक्रमण करने के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला, तो अकबर ने सुरंग खोदकर , उसमें बारूद भरकर किल्ले को तहस नहस करना चाहा  , यहाँ भी राजपूती सैनिकों ने मुग़ल सैनिको के ढेर लगा दिए। 

Akbar जब चार महीने बाद आमने सामने का युद्ध हुआ ,तब राजपूत समज गए की मुगलों के   ६०,००० सैनिक और लगभग साढ़े सात किलो बारूद के सामने जीत नहीं पाएंगे ।  इसलिए राजपूत वीरांगनाओं ने जोहर करने का फैसला किया ताकि अपने मृत शरीर तक को मुग़लो की हैवानियत से बचा पाए। जोहर की पावन  आग रात भर चलती रही और उसके पवित्र धुएं के तले  राजपूती वीरों ने साका करने का फैसला किया।कायर अकबर ने रत को मौका पाकर किले की मरम्मत करवा रहे राणा जयमाल के पैर पर गोली मर दी पर फिरभी उन्हें लड़ने से रोक न सका। 

यहाँ सोलह सत्रह साल के पत्ता ने उनकी, पत्नी रानी जीवा बाई और माँ सज्जन बाई सोनगरा चौहान ने भी किल्ले की रक्षा के लिए युद्ध में भाग लिया और किल्ले के टूटे हुए हिस्से  को गोला बारूद एवं  कुछ लकड़ियों से भर दिया ताकि सही समय आने पर मुगलो पे इन जगहों से आक्रमण किया जा सके।  उनकी यह योजना सफल भी हुई ,जब  मुगलो ने आक्रमण किया तो किल्ले के इन्ही हिस्सों से अपनी सेना के साथ घेरा बनाकर मुग़ल सैनिको पर आक्रमण किया। अन्तः किशोरावस्था में ही  उन्होंने हाथी द्वारा कुचले जाने पर वीरगति को प्राप्त हुए और अपना नाम इतिहास में दर्ज करवाया।  

वैसे ही जब युद्ध के दौरान राणा जयमल के परपे गोली लगने  बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने भतीजे राणा कल्ला के कंधे पर चढ़कर युद्ध किया। उनकी वीरता का प्रमाण इस बात से लगाया जा सकता है की अबुल फज़ल ने खुद लिखा है की उनका यह स्वरूप इतना भयानक था की कई मुग़ल सैनिक उन्हें देख के ही भाग खड़े हुए क्यूंकि उन्होंने चतुर्भुज का नाम सुन्ना हुआ था।  पर आखिर कर वह भी अपनी मातृभूमि की सेवा में वीरगति को प्राप्त हुए।  

कहते है की पत्ता , राणा जयमल और कल्ला राठोड की ८००० राजपूती सेना ने मुघलो की सेना के  १६००० से १८००० हज़ार सैनिको को मौत के घाट उतर दिया था ।  अपनी इस शर्मनाक जित  के बाद भी अकबर को किल्ले में न राणा प्रताप मिले और नाही कोई खज़ाना इस बात से खिसियाकर  ध  ग्रेट कहे जाने वाले अकबर ने ३०,००० मासूम नागरिको की जान ली। 

राणा कल्ला,राणा जयमाल और पत्ता की वीरता को अकबर भी नकार न सका और  आगरा में उसने राणा जयमाल और पत्ता के सम्मान में उनकी मूर्ति बनवायी। 

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