Auron Mein Kahan Dum Tha Review:अजय-तब्बू की प्रेम कहानी में दम नहीं था, फर्स्ट हाफ में यह पूछने लगेंगे कि कहानी कब समाप्त होगी।

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यंग लवर्स के प्यार में गिरने, रोज मिलने, फिर एक हादसे के कारण अलग होने और सालों बाद फिर से एक-दूसरे के सामने आने की कहानी ‘और Tabu स्तरर ये फिल्म कैसी है, जानिए हमारे रिव्यू में।-Auron Mein Kahan Dum Tha Review
Ajay Devgn और Tabu की फिल्म के बारे में पूछे जाने पर मैंने सबसे पहले अपना हाथ उठाया था। अब जब मैंने इस फिल्म को देख लिया है, तो मैं यह कह सकती हूं कि ‘हम ही अपने दुश्मन थे, दूसरों में कहां ताकत थी!’.-Auron Mein Kahan Dum Tha Review

90s के दौर में जब Ajay Devgn और Tabu एक साथ फिल्मों में नजर आते थे, तो उनकी केमिस्ट्री बहुत धमाकेदार थी। उनकी जोड़ी ने आग लगा दी थी स्क्रीन पर। ‘औरों में कहां दम था’ के ट्रेलर के बाद लगा था कि ये जोड़ी फिर से कमाल करेगी। अजय और Tabu ने लवर्स के किरदार निभाए और दर्शकों को खुश किया। लेकिन नई फिल्म में उनकी जोड़ी का कोई खास दम नहीं दिखा।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की शुरुआत यंग कृष्णा (शांतनु माहेश्वरी) और वसु उर्फ वसुधा (सई मांजरेकर) से होती है. दोनों मुंबई के समंदर के किनारे बैठे बातें कर रहे हैं. वसु, कृष्णा के कंधे पर सिर टिकाए बैठी उससे पूछती है- ‘कृष्णा, कोई हमको अलग तो नहीं करेगा न?’ इसपर कृष्णा उसे जवाब देता है- ‘हम चेक किए थे, अभी तक कोई पैदा नहीं हुआ है. किसी ने कोशिश भी की न, तो आग लगा देंगे दुनिया को.’ इसके बाद आप यंग-चुलबुले लड़के से खतरनाक बन चुके कृष्णा (Ajay Devgn) को जेल दूसरे कैदियों के साथ देखते हैं. कृष्णा का दबदबा ऐसा है
कृष्णा पिछले 22 वर्षों से डबल मर्डर की सजा काट रहा है। मुंबई के आर्थर रोड जेल में उसकी पहचान अब सभी के बीच स्थापित हो चुकी है। पुलिसकर्मियों से लेकर अन्य कैदियों तक, उसकी इज्जत की जाती है। इसी बीच, जब उसे यह जानकारी मिलती है कि उसकी 25 साल की सजा को कम कर दिया गया है और अब उसे घर लौटना है, तो वह भयभीत हो जाता है। बचपन में अनाथ होने के कारण कृष्णा के पास लौटने के लिए कोई घर नहीं है। वसुधा उसकी जीवन का अभिन्न हिस्सा थी, लेकिन जिस स्थिति में वे दोनों हैं, वहां एक-दूसरे को अपनाना असंभव है। ऐसे में, वह जेल से बाहर निकलने के बाद क्या करेगा? इसी कारण से, वह अपनी रिहाई को रोकने के लिए याचिका दायर करता है, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकलता।
जेल से रिहा होना कृष्णा के लिए 22 वर्ष पूर्व की घटनाओं को पुनः जीने के समान है। वसुधा (Tabu) से पुनर्मुलाकात और अतीत के दुखों का सामना करना। इस सबके बीच, उसे उस काली रात को फिर से जीना होगा, जिसने उसकी और वसुधा की जिंदगी को एक साधारण प्रेम कहानी से ‘ऊपरवाले के इम्तिहान’ में बदल दिया था। कागज पर लिखी गई युवा प्रेमियों की कहानी, जो एक-दूसरे के प्रति प्रेम में पड़ते हैं, रोज मिलते हैं, फिर एक दुर्घटना के कारण बिछड़ जाते हैं और वर्षों बाद पुनः आमने-सामने आते हैं, यह दास्तान काफी रोमांटिक, गहन और भावनात्मक प्रतीत होती है। लेकिन क्या फिल्म देखने पर भी ऐसा ही अनुभव होता है?

बेहद स्लो है फिल्म, कुछ नहीं नया
उत्तर है नहीं! निर्देशक नीरज पांडे द्वारा निर्मित यह फिल्म अत्यंत धीमी गति की है। फिल्म की शुरुआत बहुत ही सुस्त होती है। Ajay Devgn का पात्र कृष्णा जेल में दिखाई देता है, जबकि उसके बैकग्राउंड में ‘किसी रोज’ गाना बज रहा है, जो उस दृश्य के अनुरूप नहीं लगता। इसके बाद युवा कृष्णा और वसुधा की कहानी प्रस्तुत की जाती है। फिर बड़े हो चुके कृष्णा और वसुधा का मिलन होता है। वसुधा की अब शादी हो चुकी है और उसने उन सभी सपनों को साकार कर लिया है, जो उसने कृष्णा के साथ अपने रिश्ते के दौरान देखे थे। फिल्म में यह सब कुछ इतनी धीमी गति से चल रहा है कि आपकी रुचि इसमें एक पल के लिए भी नहीं टिक पाती। पहले भाग के समाप्त होते-होते आप यह प्रार्थना करने लगते हैं कि ‘भगवान, दूसरे भाग को थोड़ी तेज कर दो’।
 आपकी दुआओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और पूरे सेकेंड हाफ में आपके धैर्य की परीक्षा होती है। धीमी फिल्में तब अधिक कठिनाई पैदा करती हैं जब निर्देशक के पास दिखाने के लिए कुछ खास न हो, जैसे कि ‘औरों में कहां दम था’। फिल्म की कहानी इतनी ही सीमित है, जितनी इस समीक्षा में बताई गई है। इसके अंत में एक मोड़ है, जिसे आप फिल्म की शुरुआत में ही भांप लेते हैं। फिल्म में आगे क्या होगा, यह आपको पहले से ही पता होता है, जिससे नए अनुभवों के अवसर कम हो जाते हैं। इसके अलावा, नीरज पांडे अपनी चार पंक्तियों की कहानी को 2.20 घंटे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इस दौरान, वे एक ही दृश्य को पांच बार विभिन्न कोणों से दिखाते हैं। इसके साथ ही, उन्होंने फिल्म के मोड़ को भी तीन बार पेश किया है।

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