America, China, and Pakistan: An Analysis of a Complex Relationship – AIRR News
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हाल ही में अमेरिका ने Pakistan के सेनाध्यक्ष जनरल सैयद असिम मुनीर को उनके चालू दौरे के दौरान साफ-साफ कहा है कि वे चीन के प्रवेश को केवल चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे CPEC तक ही सीमित रखें, और बीजिंग को सुरक्षा व्यवस्था में किसी भी प्रकार की दखल का मौका ना दें।
अमेरिका के इस कदम को Pakistan में चीनी सुरक्षा आउटपोस्ट को रोकने का एक प्रयास माना जा रहा है, जो कि शीर्ष खुफिया स्रोतों के अनुसार है। चीन ने Pakistan में काम कर रहे अपने नागरिकों के लिए बलूचिस्तान के ग्वादर में सैन्य आउटपोस्ट की मांग की है, और अपने लड़ाकू विमानों के लिए ग्वादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा का उपयोग करना चाहता है।
इसी साल सितंबर में, अमेरिका के राजदूत डोनाल्ड ब्लोम ने गुप्त रूप से चीन के फंड से निर्मित ग्वादर बंदरगाह का दौरा किया था, जिसे कई राजनीतिक विश्लेषकों ने अमेरिका की पाकिस्तान के साथ सहयोगी राजनीति की शुरुआत कहा था।
आपको बता दे कि ग्वादर बंदरगाह CPEC का हिस्सा है, जिसे 2015 से चीन ने शुरू किया था। यह परियोजना दोनों देशों के बीच मतभेदों के कारण अटक गई थी। इसके अलावा, चीन ने 2030 तक CPEC परियोजनाओं में निवेश करने के लिए सिल्क रोड फंड बनाया था।
कुछ अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, अमेरिका के अधिकारीयों ने पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष को कहा है कि अगर उनके देश को वित्तीय मदद की जरूरत है तो वे कुछ शर्तों को स्वीकार करें, जिसमें भारत के साथ व्यापार भी शामिल है। साथ ही ये सलाह भी दी कि पाकिस्तान को जल्द से जल्द भारत के साथ बातचीत करनी चाहिए, और उनके साथ व्यापार संबंध बनाए रखने के लिए LOC पर शांति बनाए रखें।
अमेरिका में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष का ये दौरा 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनिको के हटने के बाद दोनों देशों के बीच अस्थिर संबंधों के बीच हुआ है। जनरल मुनीर का अमेरिका का दौरा आर्थिक चिंताओं से प्रेरित था, क्योंकि अमेरिका हमेशा से पाकिस्तान का सबसे बड़ा हितेषी रहा है।
वैसे अमेरिका के इस दबाव का पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। पाकिस्तान ने अपने नए दोस्त चीन के साथ संबंधों को आइरन ब्रदरहुड के रूप में बताया है, और चीन को अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त बताया है।वैसे गौर करने वाली बात ये है कि पाकिस्तान के लिए CPEC एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो उसके आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगी और चीन भी पाकिस्तान को अपना राजनीतिक और सैन्य सहयोगी मानता है, जो उसके भारत और अमेरिका के साथ विवादों में उसका साथ देता है।
लेकिन पाकिस्तान को अमेरिका को भी पूरी तरह से नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह भी उसके लिए एक महत्वपूर्ण साथी है। अमेरिका ने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सराहा है, और उसे विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मदद भी की है। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच व्यापार और निवेश के क्षेत्र में भी बढ़ोतरी हुई है, जो उनके आर्थिक संबंधों को मजबूत करती है।
इसलिए विशेषज्ञों की भी राय है कि पाकिस्तान को अमेरिका और चीन के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत है, जो उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो , और पाकिस्तान को भी अपने आस-पड़ोस के देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे वह अपने आप को एक शांतिपूर्ण और सहयोगी पड़ोसी के रूप में प्रस्तुत कर सके। भारत के साथ तनाव को कम करने और वार्ता के जरिए मुद्दों को हल करने का रास्ता खोजना चाहिए, जो उनके दोनों के लिए फायदेमंद होगा।
आपको बता दे कि, सऊदी अरब भी पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण साथी है, जो उसे धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से हमेशा समर्थन देता है। पिछले साल भी सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल, पैसे और ऋण की सुविधा प्रदान की है, और उसके साथ व्यापार और सैन्य सहयोग बढ़ाया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया है। पाकिस्तान को सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को और भी अधिक मजबूत बनाने के लिए काम करना चाहिए।
इस प्रकार हम कह सकते है कि पाकिस्तान को भारत , अमेरिका, चीन और सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को समझदारी से विश्वसनीय बनाना होगा ,जिससे उसका एक बेहतर भविष्य का निर्माण हो सके।
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