Parliamentary Committee’s Final Reports on India’s Criminal Law Reform Bills – An In-depth Analysis

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Parliamentary Committee’s Final Reports on India’s Criminal Law Reform Bills – An In-depth Analysis

India’s Criminal Law सुधार विधेयकों पर संसदीय समिति की अंतिम रिपोर्ट – एक गहन विश्लेषण

जैसा की आप सबको पता है की अहमारी कानून व्यवस्था में काफी सुधार की आवश्यकता है और काफी कानून तो ऐसे है जो 1857 के बाद से अब तक जैसे थे वैसे ही चले आ रहे है। 

भारतीय दंड सहित (IPC ) के इसी मसले को सही तरीके से सुधारने के लिए अब सरकार कदम उठा रही है। 

आज की इस वीडियो में हम इसी बदलाव पर आपको जानकारिया साँझा करेंगे। 

तो चलिए शुरुआत करते है। 

आपको बता दे की संविधान सम्बंधी हमारे देश की संसदीय स्थायी समिति ने देश में India’s Criminal Law के सुधार के उद्देश्य से तीन विधेयकों पर अपनी अंतिम रिपोर्टें 10 नवंबर को सरकार को सौंपीं थी। 

जैसा की आपको ज्ञात है की इसी साल 11 अगस्त को, केंद्र सरकार ने भारतीय दंड संहिता (IPC) को बदलने के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS); आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) को बदलने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS); और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए भारतीय साक्ष्य विधेयक (BSB) के लिए एक मसौदा पेश किया था। 

इस मसौदे को बृज लाल के नेतृत्व वाली संसदीय स्थायी समिति को इससे आगे की जांच के लिए सौंपा गया था, जिसने अपनी रिपोर्टें तीन महीनो के विश्लेषण के बाद 10 नवंबर को राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ को ये रिपोर्ट सौप दी है ।

आपको बता दे की संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत ये सुनिश्चित किया जाता है कि सर्वोच्च न्यायालय और हर उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होंगी, लेकिन इस अनुच्छेद में बदलाव सरकार संसद के विधान से बदल सकती है। 

भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने न्यायालयों में हिंदी के उपयोग का समर्थन किया है, इसके लिए यह तर्क दिया कि चूंकि प्रस्तावित कानूनों का सारा पाठ अंग्रेजी भाषा में है, इसलिए यह अनुच्छेद 348 का उल्लंघन नहीं करता है।

आपको बता दे की संसदीय स्थायी समिति गृह मंत्रालय के जवाब संतुष्ट है और वो भी इस बदलाव के पक्ष में है। 

संसदीय स्थायी समिति की तरफ से जो तीन मुख्य सिफारिशें है उन पर प्रकाश डालते है 

हमारी न्यायव्यवस्था के आधार स्तम्भ में सबसे पहले बात होती है भारतीय न्याय संहिता की जिसके अंतर्गत जानबूझकर हथियार ले जाने के लिए दंड देने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि धारा 153AA IPC में इसका वर्णन ही नहीं किया गया है। 

समिति ने धारा 153AA का उल्लेख किया है, जिसमें ‘जानबूझकर हथियार ले जाने के लिए किसी जुलूस में या किसी आयोजन में या फिर हथियारों के साथ किसी सामूहिक अभ्यास या सामूहिक प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए’ दंड दिया गया था, जिसे विधेयक से पहले हटा दिया गया था।

समिति यह भी मानती है कि इसे हटाने से आपराधिक प्रवृत्तियों वाले समूहों को प्रोत्साहन मिल सकता है और इसकी आड़ में वे खुलेआम हथियारों के साथ अभ्यास करेंगे , जिससे किसी विशेष जाति या धर्म समूहों के बीच द्वेष उत्पन्न हो सकता है और देश की शांति बिगड़ सकती है।

हालांकि, गृह मंत्रालय ने एक खास टिप्पणी की है कि जब धारा 153AA को 2005 में पारित किया गया था तो इसके लागू करने की तारीख कभी भी सूचित नहीं की गयी मतलब ये की ये धारा अभी वैधानिक नहीं है ।

आपको बता दे की समिति ने गृह मंत्रालय की इस बात को संज्ञान में रखा है ।

इसके अलावा समिति ने 377 को लिंग तटस्थ के रूप में आंशिक रूप से अभी भी बनाए रखा है। 

2018  में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को खारिज कर दिया था और सभी निजी सहमति से  किये गए यौन संबंधो को दो वयस्कों के बीच कानूनी बना दिया था, जिसमें समलैंगिक सम्बन्ध भी शामिल थे।

हालांकि, गैर-सहमति से बने दो वयस्कों के बीच शारीरिक सम्बन्ध, सभी संभोग के क्रियाकलापों और पशु के साथ संभोग के क्रियाकलापों के मामलों में धारा 377 का प्रावधान अभी भी लागू होता है।

भारतीय न्याय सहिता में ऐसे कार्यों के लिए कोई प्रावधान नहीं है इसी वजह से समिति ने सिफारिश की है कि धारा 377 को लिंग तटस्थ अपराधों की ओर बढ़ने के उद्देश्य के साथ सुरक्षित रखने के लिए आईपीसी की धारा 377 को उस हद तक बनाए रखना चाहिए जिसमें यह सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है। 

व्यभिचार किसी भी तरीके का हो वो अपराध लिंग तटस्थ रूप में बनाए रखा जायेगा ताकि दोषियों को सजा दी जा सके। 

शीर्ष न्यायालय ने 2018 में आईपीसी की धारा 497 (व्यभिचार) को खारिज कर दिया था, जिसमें एक आदमी को दूसरे आदमी की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए दंडित किये जाने में इस्तेमाल किया जाता था।

इसके अलावा न्यायालय ने यह तय किया था कि कानून बहुत पुराना, मनमाना और पितृ सत्तात्मक का रूप है और यह एक महिला की स्वतंत्रता, गरिमा और गोपनीयता का उल्लंघन करता है क्योंकि यह केवल शादीशुदा आदमी को दंडित करता है और शादीशुदा महिला को उसके पति की अघोषित संपत्ति बना देता है।

इस संदर्भ में, समिति ने यह दृष्टिकोण लिया है कि भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को पवित्र माना जाता है और इसकी पवित्रता की सुरक्षा करने के लिए कानून को लिंग तटस्थ रूप में बनाए रखने की आवश्यकता है, अर्थात आदमी और महिला दोनों को समान रूप से न्याय मिले।

इसके बाद समुदाय सेवा, गैंग, माफिया, अपराध घेरा आदि जैसे शब्दों को समिति ने परिभाषित करने की जरुरत को महत्व दिया।  

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अधिकारों के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान होता है इसके लिए समिति ने यह सिफारिश की है कि विधेयक में अधिकारों के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। यह न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अधिकारों के उल्लंघन के लिए दंड का प्रावधान करने की सिफारिश करती है।

इसके बाद समिति ने भारतीय साक्ष्य विधेयक में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को भी शामिल करने की सिफारिश की है। 

इसके लिए समिति का तर्क है कि इस विधेयक में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लिए जगह होनी चाहिए क्योंकि आज के आधुनिक युग में ये अपराधियों कि पहचान के लिए और उनके खिलाफ सबूतों के लिए बहुत ही अहम् योगदान देते है। 

समिति कि इन सिफारिशों के आधार पर,अब यह उम्मीद की जा रही है कि ये विधेयक India’s Criminal Law को और अधिक प्रभावी और उचित बनाने में मदद करेंगे।

आशा है आपको हमारी जानकारी अच्छी और ज्ञानवर्धक लगी होगी !

धन्यवाद ! जय हिन्द जय भारत  

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