हरियाणा में भाजपा नेताओं को चुनावी प्रचार के दौरान विरोध का सामना करना पड़ रहा है, खासकरके उनके पारंपरिक गढ़ों में। किसानों के मुद्दों और टिकट विवादों के कारण असंतोष बढ़ रहा है। आदमपुर, नरासिंहगढ़ और फरीदाबाद में BJP के उम्मीदवारों को प्रदर्शनकारियों का सामना करना पड़ा। विपक्षी नेता इसे BJP की नाकामी का परिणाम मानते हैं, जबकि BJPइसे एक राजनीतिक स्टंट बताती है। आगामी चुनावों में यह असंतोष महत्वपूर्ण हो सकता है।
हरियाणा में भाजपा लगातार तीसरी बार सत्ता पाने के लिए चुनाव मैदान में है, लेकिन भाजपा नेताओं को राज्य में असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। यह असंतोष केवल हाल की टिकट विद्रोहों से नहीं, बल्कि सरकार की कई समस्याओं से भी पैदा हो रही हैं। विरोध उन निर्वाचन क्षेत्रों में भी हो रहा है जो ऐतिहासिक रूप से भाजपा के मजबूत गढ़ रहे हैं, जिससे उनकी चुनावी रणनीति जटिल हो गई है।
आदमपुर में, जो कि पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल का पारिवारिक निर्वाचन क्षेत्र है और 1972 से उनके परिवार का गढ़ रहा है, भाजपा नेताओं कुलदीप और भाव्य बिश्नोई को अप्रत्याशित विरोध का सामना करना पड़ा। उनके प्रचार के दौरान, उन्हें कई गांवों में विरोध का सामना करना पड़ा, जहां पर उनके समर्थकों और स्थानीय निवासियों के बीच तनाव का सामना करना पड़ा। जिला पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और भाजपा नेताओं को क्षेत्र से बाहर निकालना पड़ा ताकि स्थिति और न बिगड़े।
हालांकि, कुलदीप बिश्नोई ने इस विरोध को उतना बड़ा मानने से इनकार किया, उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक विरोधियों का खडयंत्र था। उन्होंने कहा कि हम जहां प्रचार करने गए थे, वहां हमारे कुछ विरोधी भीड़ में बैठे थे, जिन्होंने यह काम किया। लेकिन हमारे समर्थक यह दावा कर रहे थे कि पूरे समुदाय का समर्थन उनके विकास कार्यों के लिए है।
पवन सैनी को दिखाए काले झंडे
असंतोष केवल आदमपुर तक सीमित नहीं था। अंबाला जिले की नरसिंह गढ़ सीट पर भाजपा के उम्मीदवार पवन सैनी को स्थानीय किसानों द्वारा रोक दिया गया। उन्होंने काले झंडे लहराए और भाजपा के खिलाफ नारेबाजी की, जिससे उनकी काफिले को मोड़ना पड़ा। यह स्पष्ट संकेत था कि स्थानीय मतदाताओं में असंतोष सार्वजनिक रूप से है।
धनेश आदलखा के काफिले को रोका
फरीदाबाद में, धनेश आदलखा को भी समान स्थिति का सामना करना पड़ा। उनके काफिले को विरोधियों ने रोक दिया और मांग की कि वे एक कीचड़ और गड्ढों से भरी सड़क पर चलकर दिखाएं। इस विरोध के कारण उन्हें यू-टर्न लेना पड़ा, जो कि स्थानीय लोगों के बीच असंतोष को और उजागर करता है।
किसानों का गुस्सा और जिम्मेदारी
किसानों के आंदोलन से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे फिर से उभर आए हैं, जिससे भाजपा नेताओं पर और अधिक दबाव पड़ा है। छह बार के विधायक अनिल विज को शाहपुर में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने खनौरी में एक किसान की मौत के बारे में सवाल उठाए। जैसे ही स्थिति गर्म हुई, विज को बैठक छोड़कर वहां से निकलना पड़ा, जो इन संवेदनशील मुद्दों के चारों ओर तनाव को दर्शाता है।
पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी का नारवाना में विरोध
पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी को नारवाना में भी विरोध का सामना करना पड़ा, जहां ग्रामीणों ने उनके 2020-21 के किसानों के आंदोलनों के दौरान चुप्पी को लेकर सवाल उठाए। ग्रामीणों ने उन्हें जवाबदेह ठहराया, यह कहते हुए कि भाजपा को किसानों के अधिकारों की अवहेलना के लिए परिणाम भुगतने होंगे।
दुष्यंत चौटाला को दिखाए काले झंडे
यह असंतोष जजपा (जननायक जनता पार्टी) के नेताओं तक भी फैला है, जो भाजपा के पूर्व सहयोगी रहे हैं। दुष्यंत चौटाला, जो उचाना कलां में प्रचार कर रहे हैं, उनको स्थानीय लोगों द्वारा काले झंडे दिखाए गए और उनकी भाजपा के साथ साझेदारी पर सवाल उठाए गए। ग्रामीणों ने कहा कि वे उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करने के लिए मजबूर करेंगे, जो मतदाताओं और उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच विश्वास की दरार को उजागर करता है।
भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी के खिलाफ बढ़ते इस असंतोष का मतलब है कि मतदाता अपनी चिंताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर रहे हैं, और नेता इन मुद्दों का समाधान करने के लिए चुनौती का सामना कर रहे हैं।
पार्टी की प्रतिक्रिया और आरोप
प्रदर्शनों के जवाब में, भाजपा नेताओं ने इस असंतोष को राजनीतिक नाटक के रूप में पेश किया है, जिसे विपक्षी पार्टियों द्वारा प्रायोजित किया गया है। कुलदीप बिश्नोई के सहयोगी ने दावा किया कि भीड़ में कुछ युवा शराब के नशे में थे और विरोधियों द्वारा उकसाए गए थे। यह बयान पार्टी की रणनीति को दर्शाता है कि असंतोष को कम करके और इसे सार्वजनिक भावनाओं के हेरफेर के रूप में प्रस्तुत किया जाए।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया सरकार की नाकामी
विपक्षी नेताओं, जिसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा शामिल हैं, ने इन प्रदर्शनों को सार्वजनिक असंतोष के वैध व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत किया, यह कहते हुए कि यह एक लोकतंत्र है। ये प्रदर्शन उनकी (भाजपा और जजपा) नाकामियों का परिणाम हैं। इस विरोधाभासी नरेटिव ने सत्तारूढ़ पार्टी और उसके प्रतिकूलों के बीच बढ़ती दूरी को उजागर किया है।
आगामी चुनावों पर असर
BJP हरियाणा में अपने तीसरे कार्यकाल सुरक्षित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन मतदाताओं के बीच असंतोष उसके लिए चुनौती साबित हो सकता है। आदमपुर जैसे पारंपरिक गढ़ों में विद्रोह के संकेत दिखते हैं, पार्टी को मतदाताओं का विश्वास फिर से पाने के लिए अपनी रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता हो सकती है। प्रदर्शनों की इस श्रृंखला यह बताती है कि अनसुलझे मुद्दे, विशेष रूप से किसानों के मुद्दे, चुनावी परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
गौरतलब है कि हरियाणा में भाजपा नेताओं को चुनावी दौरों गहरे असंतोष का सामना करना पड़ रहा है, इसके मायने काफी गंभीर हैं। जिस तरह से किसान और अन्य मतदाता अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रहे हैं, भाजपा को इन मुद्दों का समाधान करने की आवश्यकता है ताकि संभावित चुनावी नुकसान से बचा जा सके। यह स्थिति राजनीतिक सफलता की महत्वपूर्ण याद दिलाती है कि जन भावनाएं गहराई से जुड़ी हुई हैं, और इसे नजरअंदाज करना पार्टी के भविष्य पर स्थायी प्रभाव डाल सकता है।