ताइवान पर हमला क्‍यों नहीं कर रहा है चीन? पीएलए की सबसे बड़ी कमजोरी का खुलासा

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ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू के मुताबिक साल 2027 में चीन हमला कर सकता है। ऐसे में ताइवान भी चीन के साथ अब जंग की तैयारी में जुट गया है। चूंकि वर्तमान में चीन और अमेरिका के संबंध अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच चुके हैं, ऐसे में हमले का अंदेशा कुछ ज्यादा बढ़ गया है।

जानकारी के लिए बता दें कि सुपरपॉवर अमेरिका को सीधी चुनौती देने वाले देश चीन के पास मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी सेना का नाम पीएलए यानि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी है। इतना ही नहीं नौसैनिक क्षमता में भी पूरी दुनिया में चीन पहले पायदान पर खड़ा है। हैरानी की बात यह है​ कि साल 2027 तक चीन की मंशा ताइवान पर कब्जा करने की है। इन दिनों चीन ने हिमालय क्षेत्र में 50 हजार से ज्‍यादा सैनिक, घातक मिसाइलें और फाइटर जेट तैनात किए हैं।  बावजूद इसके चीन की सेना अपनी किन बड़ी कमजोरियों से घिरी हुई है, इसका खुलासा अभी हाल में हुआ है।

2027 में ताइवान पर हमले का अंदेशा

ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू के मुताबिक साल 2027 में चीन हमला कर सकता है। ऐसे में ताइवान भी चीन के साथ अब जंग की तैयारी में जुट गया है। चूंकि वर्तमान में चीन और अमेरिका के संबंध अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच चुके हैं, ऐसे में हमले का अंदेशा कुछ ज्यादा बढ़ गया है।

खुफिया एजेंसी सीआईए की रिपोर्ट

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अनुसार चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2027 तक अपनी सेना को ताइवान पर हमले करने के लिए तैयार रहने को कहा है। इसी साल मार्च में ही जिनपिंग ने कहा था कि वह चीन की सेना को स्टील की दीवार बनाएंगे। इस संबंध में कुछ सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि ताइवान पर चीनी हमले के दौरान अमेरिका बड़ी भूमिका निभा सकता है।​

चीन की सेना की ताकत

चीन की लाल सेना में अभी 20 लाख सक्रिय सैनिक हैं। इसके अलावा चीनी नौसेना दुनिया में पहले पायदान पर है। चीन की नौसेना के पास 355 सक्रिय युद्धपोत हैं, जबकि अमेरिकी नौसेना के पास सिर्फ 296 युद्धपोत हैं। ऐसे में ताइवान पर कब्जे के दौरान चीन की नौसेना अहम भूमिका निभा सकती है।

ताइवान को अमेरिकी मदद

रक्षा मंत्रालय पेंटागन की 7 अप्रैल की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका अपने मित्र देश ताइवान को 400 एंटी शिप हार्पून मिसाइलें देने जा रहा है। यह पूरा सौदा 1.7 अरब डॉलर का है। ऐसे में चीन की सेना के लिए इसे एक बड़ी युद्ध चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

चीनी सेना की सबसे बड़ी कमजोरी बता दें कि ताइवान से युद्ध के दौरान चीन को शहरों में सबसे ज्यादा जंग लड़नी होगी। जबकि ठीक इसके विपरीत चीन की सेना के पास युद्ध का लगभग कोई अनुभव नहीं है। ऐसे में चीन इन दिनों रूस के अनुभव पर कुछ ज्यादा फोकस कर रहा है। 1979 में वियतनाम पर हमले के बाद चीन के पास युद्ध का नया अनुभव शून्य है। चीन में मौजूद भ्रष्‍टाचार भी किसी बड़े संकट से कम नहीं है। इन्हीं सब बातों को देखते हुए चीन अपनी सेना को युद्धक ट्रेनिंग ज्यादा दे रहा है। दरअसल दुनिया में चीन इकलौता ऐसा देश है, जिसे रोकना हर किसी के लिए जरूरी है। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इस बात को बखूबी समझते हैं। ऐसे में यह जगजाहिर है कि ताइवान पर हमला करना इतना आसान नहीं होगा।

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