सलीम की बगावत को लेकर इतिहासकारों ने जो दावा किया है, इसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। इस बारे में ब्रिटीश यात्री विलियम फिंच लाहौर में तकरीबन 1608 से 1611 तक रहा। सलीम और अनारकली की कथा का उल्लेख करने वाला वह एकमात्र विदेशी यात्री था। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि अकबर की कई पत्नियों में से एक बेहद खूबसूरत पत्नी अनारकली थी। अनारकली से एक पुत्र भी पैदा हुआ जिसे दानियाल कहा जाता था। अकबर के बड़े बेटे सलीम से अनारकली के प्रेम संबंधों को लेकर अफवाह के चलते अकबर ने उसे लाहौर की दुर्ग में जिन्दा चिनवा दिया। कहा जाता है कि अनारकली की मौत का सदमा सलीम यानि जहांगीर बरदाश्त नहीं कर सका और उसने अपने ही पिता अकबर के खिलाफ बगावत का रूख अख्तियार कर लिया। इतना ही नहीं उसने अकबर के सबसे खास नौरत्न और आइने अकबरी के लेखक अबुल फजल की हत्या भी करवा दी। इतना ही नहीं सलीम ने अकबर के खजानों को भी जमकर लूटा। पुस्तक तारीख-ए-लाहौर में इतिहासकार अब्दुल लतीफ लिखते हैं कि अकबर की बेगम थी अनारकली लेकिन सलीम से इश्क के चलते उसकी जान चली गई। मकबरे पर दो तिथियां अंकित है 1599 ई. और 1615 ई. जो क्रमश: अनारकली की मृत्यु और मकबरे के बनकर तैयार होने की सूचना देती हैं। 1599 ईं. में सलीम ने अकबर के विरुद्ध बगावत की थी। ऐसे में जाहिर है कि अनारकली की मृत्यु और सलीम के बगावत की तिथि एक ही है।
मुगलकालीन इतिहास में अकबर के तीन पुत्रों का उल्लेख मिलता है। अकबर के सबसे बड़े बेटे का नाम सलीम, दूसरे का मुराद और तीसरे बेटे का नाम दानियाल था। बता दें कि अकबर के तीनों बेटे सलीम, मुराद और दानिया पक्के नशेड़ी और शराबी थे। इन तीनों में से किसी ने भी कोई बड़ा युद्ध नहीं जीता था।
दक्कन से लेकर काबुल तक फैले मुगल साम्राज्य को देखते हुए अकबर ने अपने तीनों अयोग्य बेटों की जगह सलीम के पुत्र खुसरो को मुगल शासन का उत्तराधिकारी घोषित करने से पहले ही राजा मान सिंह की मदद से सलीम अकबर तक पहुंचने में सफल हो गया। इसके बाद अकबर ने अपनी मुगलिया पगड़ी सलीम के कदमों में रख दी।
मध्यकालीन इतिहास में पहला सवाल यह उठता है कि जब मुराद और दानियाल का इंतकाल पहले ही हो चुका था ऐसे में सबसे बड़े बेटे सलीम ने मुगल बादशाहत हासिल करने के लिए अपने पिता अकबर से बगावत क्यों की? सलीम की यह बगावत तकरीबन पांच साल तक चली।
आपको बता दें कि सलीम और दानियाल का पालन-पोषण सलीम की मां मरियम उज्जमानी जो आमेर की राजकुमारी हीराकंवर ने किया। ऐसे में अपने बड़े बेटे सलीम को छोड़कर हीराकंवर मुराद और दानियाल का पक्ष क्यों लेती? सवाल यह भी उठता है कि अकबर के जीवनकाल में मुराद और दानियाल का निधन हो चुका था तो फिर तकरीबन पांच सालों तक सलीम ने अपने पिता अकबर के खिलाफ बगावत का झंडा बुलन्द किए रखा था। इतना ही नहीं बेटे सलीम ने 30 हजार सैनिक एकत्र करके अपने पिता अकबर के खजानों को जी भरकर लूटा।
सलीम की बगावत को लेकर दो प्रमुख इतिहासकारों ने जो दावा किया है, इसे सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। दरअसल मुगल इतिहास में मुराद और दानियाल के माताओं के नाम बड़ी ही चालाकी से छिपाया गया है। इस बारे में ब्रिटीश यात्री विलियम फिंच लाहौर में तकरीबन 1608 से 1611 तक रहा। सलीम और अनारकली की कथा का उल्लेख करने वाला वह एकमात्र विदेशी यात्री था। उसने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि अकबर की कई पत्नियों में से एक बेहद खूबसूरत पत्नी अनारकली थी। अनारकली से एक पुत्र भी पैदा हुआ जिसे दानियाल कहा जाता था।
अकबर के बड़े बेटे सलीम से अनारकली के प्रेम संबंधों को लेकर अफवाह के चलते अकबर ने उसे लाहौर की दुर्ग में जिन्दा चिनवा दिया। कहा जाता है कि अनारकली की मौत का सदमा सलीम यानि जहांगीर बरदाश्त नहीं कर सका और उसने अपने ही पिता अकबर के खिलाफ बगावत का रूख अख्तियार कर लिया। इतना ही नहीं उसने अकबर के सबसे खास नौरत्न और आइने अकबरी के लेखक अबुल फजल की हत्या भी करवा दी। इतना ही नहीं सलीम ने अकबर के खजानों को भी जमकर लूटा।
पुस्तक तारीख-ए-लाहौर में इतिहासकार अब्दुल लतीफ लिखते हैं कि अकबर की बेगम थी अनारकली लेकिन सलीम से इश्क के चलते उसकी जान चली गई। मकबरे पर दो तिथियां अंकित है 1599 ई. और 1615 ई. जो क्रमश: अनारकली की मृत्यु और मकबरे के बनकर तैयार होने की सूचना देती हैं। 1599 ईं. में सलीम ने अकबर के विरुद्ध बगावत की थी। ऐसे में जाहिर है कि अनारकली की मृत्यु और सलीम के बगावत की तिथि एक ही है।
ऐसे में ब्रिटीश यात्री विलियम फिंच और अब्दुल लतीफ द्वारा लिखे गए ऐतिहासिक तथ्यों को बल मिलता है कि अनारकली मुगल बादशाह अकबर की बेगम थी लेकिन सलीम से इश्क के चलते उसकी जान चली गई। बता दें कि 1605 ईं. में सलीम मुगल बादशाह बना जिसे मध्यकालीन इतिहास में जहांगीर के नाम से जाना जाता है। जहांगीर 1615 ई. में लाहौर आया और अनारकली का मकबरा बनवाया। जहांगीर ने अनारकली के मकबरे पर लिखवाया कि ‘अगर मैं अपनी महबूबा को एक बार भी पकड़ सकता तो कयामत तक अल्लाह का शुक्रिया करता’।
गौरतलब है कि अनारकली का असली नाम नादिरा बेगम था जिसे शर्फुन्निसा नाम से भी पुकारा जाता था। नादिरा बेगम व्यापारियों के कारवां के साथ ईरान से लाहौर आई थी। वह इतनी खूबसूरत थी कि जो भी देखता वो नादिरा की खूबसूरती का दीवाना हो जाता था। ठीक वैसे ही जैसे सलीम भी नादिरा बेगम की खूबसूरती के कायल हो गए थे। फूल की तरह कोमल और खूबसूरती के कारण नादिरा बेगम को अनारकली नाम से पुकारा गया। अनारकली का मकबरा पाकिस्तान के लाहौर में स्थित है, वर्तमान में इसका उपयोग पंजाब अभिलेख कार्यालय के लिए एक पुस्तकालय के रूप में किया जाता है।
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