हर समझदार इंसान किसी भी विवादित प्रॉपर्टी में अपना पैसा कभी भी निवेश नहीं करता है। लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे भी डेयरिंग पर्सन होते हैं, जो जानबूझकर विवादित प्रॉपर्टी खरीदते हैं ताकि उनकी रियल एस्टेट डील बिल्कुल सस्ते में ही हो जाए।
यदि आप भी ऐसे लोगों में शामिल हैं, जो जानबूझकर डिस्प्यूटेड प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो सावधान हो जाइए। बतौर उदाहरण किसी प्रॉपर्टी पर किसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के लोन का विवाद चल रहा है, फिर ऐसी प्रापर्टी से दूर ही रहें। अन्यथा सिर्फ और सिर्फ नुकसान केवल आपका ही होगा क्योंकि इसमें बिल्डर को कुछ भी घाटा नहीं होगा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि कर्ज में डूबी संपत्ति खरीदने वाले ग्राहक को कोई भी राहत नहीं दी जा सकती है। ऐसा इसलिए कि खरीददार बैंक का मूल कर्जदार नहीं है, चाहे वह संपत्ति का पूरा मूल्य ही चुकाने को क्यों न तैयार हो।
बतौर उदाहरण एक बिल्डर ने मल्टी स्टोरी हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद से लोन लिया था। लेकिन वह लोन लौटाने में विफल रहा। इसके बाद संबंधित बैंक ने SARFAESI Act 2002 की धारा 13 के तहत लोन रिकवरी की कार्रवाई शुरू कर दी तथा हाउसिंग प्रोजेक्ट के सभी फ्लैट तथा अन्य संपत्तियों को जब्त कर लिया।
इसके बाद बिल्डर ने बैंक की कार्रवाई को Debt Recovery Tribunal (DRT) में चुनौती दी। ऐसे में डीआरटी ने बिल्डर को छूट देते हुए कहा कि वह इच्छुक खरीददारों की सूची सौंपे जो उसके फ्लैट खरीदना चाहते हैं। ताकि कर्ज को चुकता किया जा सके। शर्त यह थी कि बिल्डर किसी भी फ्लैट खरीददार के साथ कोई भी एग्रीमेंट बैंक से अनुमति लेकर ही करेगा। ठीक इसके विपरीत बिल्डर ने बैंक से अनुमति लिए बिना ही खरीददार से एटीएस (Agreement to Sell) कर दिया।
इसी बीच संबंधित बैंक ने उक्त प्रॉपर्टी को नीलाम करने का नोटिस जारी कर दिया। इसके खिलाफ बिल्डर ने डीआरटी में याचिका दायर की लेकिन डीआरटी ने बिल्डर की अर्जी खारिज करते हुए एटीएस को व्यर्थ बताया। बिना देरी किए बैंक ने प्रॉपर्टी नीलाम कर दी, नीलामी के दौरान खरीददार ने 25 फीसदी की धनराशि जमा भी कर दी। इस एटीएस होल्डर ने आन्ध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर नीलामी नोटिस को चुनौती दी। हांलाकि अपनी याचिका में बिल्डर ने यह नहीं बताया कि संपत्ति की नीलामी पहले ही हो चुकी है। अत: हाईकोर्ट ने नीलामी को स्टे कर दिया और कहा कि यदि एटीएस होल्डर पूरी रकम जमा करवाता है तो उसे संपत्ति दे दी जाए। जब एटीएस होल्डर ने राशि जमा करवा दी तब नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले ने बैंक के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तीसरे खरीददार के पक्ष में दिए गए हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट को नीलामी रोकने और एग्रीमेंट टू सेल होल्डर को फ्लैट देने का आदेश नहीं देना चाहिए था, क्योंकि सरफेसी एक्ट, 2002 की धारा 13 (4) के तहत बैंक अपने ऋण की वसूली कार्रवाई कर रहा था। पीठ ने कहा कि कोई भी अदालत एटीएस होल्डर को इस बिना पर कि वह कर्ज का पूरा भुगतान कर रहा है, कब्जा नहीं दे सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डीआरटी और बैंक के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट याचिका भी नहीं दायर की जा सकती, क्योंकि इसके लिए सरफेसी एक्ट की धारा 17 में राहतों का प्रावधान है। अन्तत: सुप्रीम कोर्ट ने बैंक की नीलामी में फ्लैट खरीदने वाले के खरीददार के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया।
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