वेनेजुएला की अराजकता का कौन जिम्मेदार, अमेरिका क्यों बना सबसे बड़ा दुश्मन

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Who is responsible for Venezuela’s anarchy, why has America become the biggest enemy? PART 3

  वेनेजुएला की अराजकता का कौन जिम्मेदार, अमेरिका क्यों बना सबसे बड़ा दुश्मन

कुछ साल पहले तक दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के उत्तर में स्थित वेनेजुएला का नाम आते ही एक कच्चे तेल के अमीर निर्यातक देश की तस्वीर हम सबके दिमाग में आती थी…लेकिन, वक्त बदला और हालात काफी अलग हो गए…वेनेजुएला में अब अराजकता है…लोग खाने को तरसते हैं…सरकार, सेना और ताकतवर लोग देश पर अपना कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं… आधी से ज्यादा दुनिया को अपना दुश्मन बना लिया है…

वेनेजुएला का स्वर्णिम युग 1999 से ह्यूगो शावेज के दौर में शुरू हुआ जो 2013 तक सत्ता में रहे…हालांकि इस दौरान देश में लोकतंत्र भले ही ना रहा हो लेकिन उनका शासन काफी लोकप्रिय था…इस दौर में वेनेजुएला ने बहुत आर्थिक उन्नति की…इस दौरान शावेज ने भले ही अमेरिका सहित दुनिया के बाकी प्रमुख देशों को अपना दुश्मन बना लिया हो लेकिन उनके अपने देश में उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई…ह्यूगो शावेज वेनेजुएला के लोगों के लिए मसीहा ही बने रहे…शावेज के बाद उनके उत्तराधिकारी निकोलस मादुरो के शासन संभालने के बाद देश की स्थिति खराब होने लगी….सबसे पहले आम लोगों की मुश्किलें बढ़ना शुरू हुईं जो बढ़ती कीमतों से परेशान होने लगे….मादुरो ने सरकारी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण बढ़ाया और अब देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भी भारी कमी आई जिससे देश बर्बाद की कगार पर पहुंच गया है…

वेनेजुएला में लाखों की संख्या में लोग देश छोड़कर जा रहे हैं…महंगाई हजारों गुना बढ़ गई है…अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर है और लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है…महामंदी के दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था और इन भयावह हालातों के ​लिए लोग राष्ट्रपति निकोलस मादुरो और उनकी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं…वेनेजुएला की राष्ट्रीय असेंबली के मुताबिक औसतन हर 26 दिन बाद जरूरी चीजों की कीमतें दोगुनी हो रही हैं…पिछले साल तक सालाना महंगाई दर 83,000 फीसदी तक पहुंच गई है…इसके चलते वेनेज़ुएला के लोगों के लिए खाने-पीने का सामन और जरूरी चीजें खरीदना भी मुश्किल हो गया…महंगाई इस कदर हावी है कि वेनेजुएला में एक कप कॉफी की कीमत 25 लाख रुपए हो चुकी है….लोग किसी सामान के लिए नकद में पैसे तक नहीं दे पा रहे हैं….

वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल पर टिकी है…तेल से मिलने वाला राजस्व उसके निर्यात का 95 फीसदी है…खनिज तेल का भरपूर उत्पादन और निर्यात से उसके पास बड़ी मात्रा में डॉलर आते रहे हैं जिनसे वो विदेशों से अपने लोगों के लिए जरूरी सामान खरीदता है…लेकिन परेशानी तब शुरू हुई जब 2014 में तेल की कीमतें गिरने के बाद से विदेशी मुद्रा में भी कमी होने लगी…विदेशी मुद्रा ना आने से वेनेजुएला के लिए विदेश से पहले जैसा आयात करना मुश्किल हो गया लेकिन लोगों की मांग और जरूरत पहले जैसे ही बनी रही…और यहीं से शुरू हुई असल मुश्किल…मांग और आपूर्ति का ये अंतर इतना बढ़ गया है कि महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई…इससे निपटने के लिए सरकार ने अतिरिक्त मुद्रा छापने का काम किया …गरीबों के लिए न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने से भी परेशानियां बढ़ीं…लोगों के हाथ में वो मुद्रा आई लेकिन उसका मूल्य तेज़ी से कम हो रहा है…

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