राजदंड के प्रतीक ‘सेंगोल’ से जुड़ी हैं अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण की कुछ रोचक बातें, जानकर दंग रह जाएंगे आप

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भारत के संसदीय इतिहास में 28 मई 2023 को एक गौरवशाली अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। बता दें कि इसी तारीख को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक पीएम मोदी राजदंड के प्रतीक सेंगोल को स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित करेंगे। 

हांलाकि नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार को लेकर सियासी दलों में घमासान मचा हुआ है। देश के 19 विपक्षी दल इस उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की योजना में शामिल हैं। आपको बता दें कि सेंगोल का देश की आजादी से बहुत गहरा रिश्ता है। राजदंड का प्रतीक सेंगोल का इस्तेमाल चोल साम्राज्य में होता था, यानि चोल साम्राज्य का राजा जब अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था तब सत्ता हस्तांतरण के रूप में सेंगोल प्रदान करता था। 

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सेंगोल क्या है?

तमिल शब्द सेंगोल का मतलब होता है- धन धान्य से भरपूर। स्वर्णजड़ित सेंगोल की लंबाई 5 फीट है और इसका वजन 800 ग्राम है। अधीनम संप्रदाय के 20 पुजारियों के मंत्रोचारण के बीच राजदंड सेंगोल को नए संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। 

आजादी मिलने के बाद अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है सेंगोल

ब्रिटीश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पं. जवाहरलाल नेहरू से भारत की सत्ता हस्तांतरण को लेकर एक बड़ा रोचक सवाल पूछा था। लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा कि आखिर भारत की आजादी के बाद सत्ता हस्तातंरण कैसे की जाए, इसका प्रतीक क्या होगा? इसके बाद पं. जवाहरलाल नेहरू ने राजगोपालीचारी से विचार-विमर्श किया। इसके बाद राजगोपालाचारी ने चोल साम्राज्य के सेंगोल प्रक्रिया के बारे में बताया। तत्पश्चात तमिलनाडु से सेंगोल मंगवाया गया और इस ऐतिहासिक क्षण के लिए राजदंड सेंगोल को स्वीकार करने की जिम्मेदारी पं. नेहरू ने ली। तब से आजाद भारत में सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता के ट्रांसफर का प्रतीक माना जाता है।

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सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया

चेन्नई (तब मद्रास) के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने सेंगोल को तैयार किया था। राजदंड का प्रतीक सेंगोल 5 फीट लंबा और 800 ग्राम वजन का है, जिसके शीर्ष पर भगवान शिव के दूत नंदी विराजमान हैं, जो कि न्याय के प्रतीक हैं। सेंगोल को कुछ क्षण के लिए पहले लार्ड माउंटबेटन को दिया गया, इसके बाद उनसे वापस ले लिया गया। तत्पश्चात सेंगोल को गंगाजल से छिड़कर पवित्र किया गया। फिर राजदंड सेंगोल को एक जुलूस के जरिए प्रधानमंत्री पं. नेहरू के पास ले जाया गया। 14 अगस्त 1947 की आधी रात से 15 मिनट पहले भारत की स्वतंत्रता संकेत दिया गया तत्पश्चात पं. नेहरू ने राजदंड सेंगोल को स्वीकार किया।

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राजदंड सेंगोल की तलाशसन 1947 के बाद सेंगोल का कुछ भी पता नहीं चला। साल 1960 में सेंगोल को इलाहाबाद संग्रहालय में भेजा गया। कांचीपुरम मठ के महंत ने अपनी किताब में सेंगोल से जुड़ी घटना का वर्णन किया। इसके बाद करीब डेढ़ साल तक पीएम मोदी ने राजदंड सेंगोल को तलाशने के निर्देश दिए। चार महीने के सघन अभियान के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका। इसके बाद इलाहाबाद म्यूजियम के क्यूरेटर ने मंत्रालय को फोन पर सूचित कर सेंगोल की जानकारी दी।

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