क्या होती है जेनेरिक दवा, ब्रांडेड दवाओं से ये कितनी अलग

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क्या होती है जेनेरिक दवा, ब्रांडेड दवाओं से ये कितनी अलग

हम अपने आस-पास सुनते रहते हैं जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बारे में…ये दवाएं कौन सी होती हैं..ब्रांडेड दवाओं से ये कितनी अलग होती हैं…और सबसे बड़ी बात ये कि क्या मरीज़ों पर इनका असर भी अलग-अलग होता है…दाम  में कितना फर्क होता है? आज हम आपको अपने इस वीडियो में इन सभी सवालों का जवाब लेकर आए हैं जो आप सभी जानना चाहते हैं…

सस्ते और महंगे का खेल दवाओं के बाजार में भी साफ दिखता है…आमतौर पर ब्रांडेड दवाएं महंगी होती हैं जबकि जेनेरिक दवाएं सस्ती…प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में जेनेरिक दवाएं ही होती हैं और इनका दावा है कि जन औषधि स्टोर में दवाएं 90 फीसदी तक सस्ती हैं…जेनेरिक दवाएं सस्ती होने के कारण लोग उसकी क्वालिटी और उसके पावर पर शक करने लगते हैं…इसकी पुष्टि डॉक्टर भी करते हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि लोगों को महंगी दवाएं लिख दीजिए तो वह खुशी-खुशी इसे ले लेते हैं लेकिन अगर मरीज़ों को सस्ती दवाएं लिखिए तो फिर उन्हें लगता है कि डॉक्टर साहब ने ठीक से देखा नहीं या फिर उन्होंने जो दवाई लिखी है वो फायदा नहीं करेगी…और सबसे बड़ी बात कि जब कोई डॉक्टर किसी मरीज़ को जेनेरिक दवा लिखता है जो सस्ती होती हैं तो मरीज़ उस डॉक्टर की काबीलियत पर भी शक करने लगता है जो नहीं करना चाहिए। डॉक्टर्स का कहना है कि लोगों को जेनेरिक दवाओं की सच्चाई पता नहीं होती है। 

फार्मेसी बिजनस में जेनेरिक दवाएं उन दवाओं को कहा जाता है जिनका कोई अपना ब्रांड नाम नहीं होता है…वो अपने असली सॉल्ट नेम से मार्केट में बेची और पहचानी जाती है यानि जिन सॉल्ट से ये दवाएं बनी होती हैं जेनेरिक दवाओं का नाम भी वहीं होता है। जेनेरिक दवा बनाने वाली कुछ कंपनियों ने अपना ब्रांड नाम भी डेवलप कर लिया हे। तब भी ये दवाएं काफी सस्ती होती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये जेनेरिक दवाओं की श्रेणी में आते हैं। सरकार भी जेनेरिक दवाओं को प्रोमोट कर रही है। प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना इसी की कड़ी है। इस परियोजना के तहत देश भर में जेनेरिक दवाओं के स्टोर खोले जा रहे हैं। 
जेनरिक दवाओं का असर भी ब्रांडेड दवाओं के समान ही होता है…क्योंकि इन दवाओं में भी वही सॉल्ट होता है जो ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं में होता है…यानि ये कि अगर कोई मरीज़ ब्रांडेड दवाई खा रहा है और कोई मरीज़ जेनेरिक तो दोनों को समान फायदा होगा। जेनेरिक दवाओं का नाम भी अक्सर वही होता है जिससे वो बनी होती है…इसके चलते केमिस्ट जेनेरिक दवाओं में प्रयोग होने वाले सॉल्ट्स की पूरी जानकारी रखते हैं और वे ग्राहकों को इसके बारे में बता भी सकते हैं। दवाई का नाम इनकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है। इसी तरह जेनेरिक दवाईयों की पहचान के लिए इंटरनेट पर सॉल्ट नेम के माध्यम से खोज की जा सकती है। इसके साथ ही जेनरिक दवाओं की कीमतें ब्रांडेड नाम वाली दवाओं की तुलना में बेहद कम होती हैं लेकिन उनका असर उतना ही होता है

क्या होती है जेनेरिक दवा, ब्रांडेड दवाओं से ये कितनी अलग

हम अपने आस-पास सुनते रहते हैं जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बारे में…ये दवाएं कौन सी होती हैं..ब्रांडेड दवाओं से ये कितनी अलग होती हैं…और सबसे बड़ी बात ये कि क्या मरीज़ों पर इनका असर भी अलग-अलग होता है…दाम  में कितना फर्क होता है? आज हम आपको अपने इस वीडियो में इन सभी सवालों का जवाब लेकर आए हैं जो आप सभी जानना चाहते हैं…

सस्ते और महंगे का खेल दवाओं के बाजार में भी साफ दिखता है…आमतौर पर ब्रांडेड दवाएं महंगी होती हैं जबकि जेनेरिक दवाएं सस्ती…प्रधानमंत्री जन औषधि योजना में जेनेरिक दवाएं ही होती हैं और इनका दावा है कि जन औषधि स्टोर में दवाएं 90 फीसदी तक सस्ती हैं…जेनेरिक दवाएं सस्ती होने के कारण लोग उसकी क्वालिटी और उसके पावर पर शक करने लगते हैं…इसकी पुष्टि डॉक्टर भी करते हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि लोगों को महंगी दवाएं लिख दीजिए तो वह खुशी-खुशी इसे ले लेते हैं लेकिन अगर मरीज़ों को सस्ती दवाएं लिखिए तो फिर उन्हें लगता है कि डॉक्टर साहब ने ठीक से देखा नहीं या फिर उन्होंने जो दवाई लिखी है वो फायदा नहीं करेगी…और सबसे बड़ी बात कि जब कोई डॉक्टर किसी मरीज़ को जेनेरिक दवा लिखता है जो सस्ती होती हैं तो मरीज़ उस डॉक्टर की काबीलियत पर भी शक करने लगता है जो नहीं करना चाहिए। डॉक्टर्स का कहना है कि लोगों को जेनेरिक दवाओं की सच्चाई पता नहीं होती है। 

फार्मेसी बिजनस में जेनेरिक दवाएं उन दवाओं को कहा जाता है जिनका कोई अपना ब्रांड नाम नहीं होता है…वो अपने असली सॉल्ट नेम से मार्केट में बेची और पहचानी जाती है यानि जिन सॉल्ट से ये दवाएं बनी होती हैं जेनेरिक दवाओं का नाम भी वहीं होता है। जेनेरिक दवा बनाने वाली कुछ कंपनियों ने अपना ब्रांड नाम भी डेवलप कर लिया हे। तब भी ये दवाएं काफी सस्ती होती हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये जेनेरिक दवाओं की श्रेणी में आते हैं। सरकार भी जेनेरिक दवाओं को प्रोमोट कर रही है। प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना इसी की कड़ी है। इस परियोजना के तहत देश भर में जेनेरिक दवाओं के स्टोर खोले जा रहे हैं। 
जेनरिक दवाओं का असर भी ब्रांडेड दवाओं के समान ही होता है…क्योंकि इन दवाओं में भी वही सॉल्ट होता है जो ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं में होता है…यानि ये कि अगर कोई मरीज़ ब्रांडेड दवाई खा रहा है और कोई मरीज़ जेनेरिक तो दोनों को समान फायदा होगा। जेनेरिक दवाओं का नाम भी अक्सर वही होता है जिससे वो बनी होती है…इसके चलते केमिस्ट जेनेरिक दवाओं में प्रयोग होने वाले सॉल्ट्स की पूरी जानकारी रखते हैं और वे ग्राहकों को इसके बारे में बता भी सकते हैं। दवाई का नाम इनकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है। इसी तरह जेनेरिक दवाईयों की पहचान के लिए इंटरनेट पर सॉल्ट नेम के माध्यम से खोज की जा सकती है। इसके साथ ही जेनरिक दवाओं की कीमतें ब्रांडेड नाम वाली दवाओं की तुलना में बेहद कम होती हैं लेकिन उनका असर उतना ही होता है

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