भारत के इतिहास में कानूनी सुधार हमेशा एक संवेदनशील और विवादास्पद विषय रहा है। खासकर जब ये सुधार उन कानूनों से जुड़े हों जो देश के आपराधिक न्याय प्रणाली का आधार बनाते हैं। पश्चिम बंगाल में हाल ही में तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने तीन नए आपराधिक कानूनों, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की समीक्षा के लिए एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया है।-West Bengal News
यह कदम कई सवालों को जन्म देता है कि क्या एक राज्य सरकार केंद्रीय कानूनों की समीक्षा कर सकती है? क्या इन नए कानूनों का प्रभाव वाकई इतना महत्वपूर्ण है कि उनके लागू होने से पहले उनकी समीक्षा की जाए? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या इन कानूनों के लागू होने से पश्चिम बंगाल की आपराधिक न्याय प्रणाली में कोई वास्तविक सुधार होगा?-West Bengal News
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पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में तीन नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के लिए एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति सेवानिवृत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और पश्चिम बंगाल लोकायुक्त अशिम कुमार रॉय के नेतृत्व में काम करेगी। इसके अन्य सदस्यों में तृणमूल कांग्रेस के मंत्री मलॉय घटक और चंद्रिमा भट्टाचार्य, सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता संजय बसु, पश्चिम बंगाल के महाधिवक्ता और कोलकाता पुलिस आयुक्त शामिल हैं। पुलिस महानिदेशक इस समिति के संयोजक के रूप में कार्य करेंगे।-West Bengal News
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को इन कानूनों के कार्यान्वयन को स्थगित करने के लिए लिखा था, लेकिन उनकी चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए, राज्य ने इन कानूनों की समीक्षा के लिए इस समिति का गठन करने का निर्णय लिया।
समिति को शिक्षाविदों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, अनुसंधान सहायकों और अन्य कानूनी विशेषज्ञों के साथ परामर्श करने की शक्ति होगी और यह जनता की राय भी ले सकती है। इसे तीन महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस समिति के उद्देश्यों के बारे में तत्काल रिपोर्ट मांगी है। राज्यपाल ने यह भी कहा है कि पश्चिम बंगाल को एक राज्य के भीतर राज्य या “केला गणराज्य” में नहीं बदला जा सकता।
आपको बता दे कि भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में समय-समय पर कई सुधार किए गए हैं। औपनिवेशिक काल से चले आ रहे आपराधिक कानूनों को बदलने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। भारतीय दंड संहिता (IPC), भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) जैसे कानूनों को बदलने की आवश्यकता महसूस की गई, क्योंकि वे ब्रिटिश शासनकाल के दौरान बनाए गए थे और वर्तमान समय की जरूरतों के हिसाब से अप्रासंगिक हो गए थे।
ऐसे में पश्चिम बंगाल सरकार ने तीन नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है। यह कदम तब उठाया गया जब केंद्र सरकार ने राज्य की चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया और इन कानूनों को लागू कर दिया।
वैसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 (2) के अनुसार, राज्यों को समवर्ती सूची के किसी भी मामले पर कानून बनाने की शक्ति है। इसका मतलब यह है कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों में कुछ संशोधन कर सकती हैं, बशर्ते वे संविधान के दायरे में रहें।
वही बीजेपी नेता और अधिवक्ता प्रियंका टिबरेवाल ने इस कदम की आलोचना की और कहा कि कोई भी राज्य देश के कानूनों को नहीं बदल सकता। उनका कहना है कि अगर राज्यों को कानूनों में परिवर्तन की अनुमति दी गई, तो इससे पूरे देश में कानूनी अराजकता फैल जाएगी।
बाकि राज्य सरकार ने इन कानूनों के कार्यान्वयन को स्थगित करने की मांग इसलिए की क्योंकि उन्हें लगता है कि ये कानून राज्य की परिस्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों को जल्दबाजी में लागू किया गया है और इन पर व्यापक विचार-विमर्श नहीं हुआ है।
हालाँकि पश्चिम बंगाल के बाद तमिलनाडु दूसरा राज्य है जिसने इन कानूनों की समीक्षा के लिए समिति का गठन किया है। तमिलनाडु सरकार का भी मानना है कि इन कानूनों के कार्यान्वयन से पहले उनकी समीक्षा की जानी चाहिए। अन्य राज्यों ने भी इन कानूनों के बारे में अपनी चिंताएं जताई हैं। कई राज्य सरकारें मानती हैं कि इन कानूनों का प्रभाव उनके राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली पर पड़ सकता है और इसलिए उनकी समीक्षा की जानी चाहिए।
ऐसे में केंद्र सरकार का मानना है कि ये नए कानून देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार लाने के लिए आवश्यक हैं। उनका कहना है कि ये कानून मौजूदा समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं और इनका उद्देश्य आपराधिक मामलों के निपटान को तेज करना है।
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Extra : “पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून समीक्षा”
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