लोकसभा चुनाव 2024 की समाप्ति नजदीक आ रही है और भारतीय राजनीति के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर सभी की निगाहें West Bengal पर टिकी हैं। एक ऐसा राज्य, जहां राजनीतिक तापमान हमेशा ऊंचा रहता है और जहां चुनावी मुकाबला हमेशा रोमांचक होता है। इस बार भी West Bengal के चुनावी रण में जबर्दस्त मुकाबला देखने को मिल रहा है। 1 जून को सातवें चरण की वोटिंग होनी बाकी है और 4 जून को यह तय हो जाएगा कि बंगाल की जनता ने किसे अपना प्रतिनिधि चुना है – नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली NDA को या ममता बनर्जी की TMC को। – west bengal electoral search 2024
वर्तमान चुनावी परिदृश्य में कई सवाल उभर कर सामने आते हैं कि क्या ममता बनर्जी की पार्टी TMC फिर से बंगाल में अपना दबदबा कायम रख पाएगी? क्या बीजेपी, जिसने पिछले चुनाव में यहां 18 सीटें जीती थीं, इस बार और बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी? क्या ममता बनर्जी का ‘मां, माटी और मानुष’ का नारा लोगों के दिलों में फिर से जगह बना पाएगा? क्या नरेंद्र मोदी का करिश्मा और बीजेपी की योजनाएं बंगाल के वोटरों को प्रभावित कर पाएंगी? इन सवालों के जवाब जल्द ही मिलेंगे, लेकिन इससे पहले आइए जानते हैं इस चुनाव की विस्तृत जानकारी। – west bengal electoral search 2024
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West Bengal की राजनीति का महत्व भारतीय चुनावी परिदृश्य में हमेशा से प्रमुख रहा है। इस बार भी 42 लोकसभा सीटों में से 33 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है और बाकी 9 सीटों के लिए 1 जून को मतदान होगा। इनमें दमदम, बारासात, बशीरहाट, जयनगर, मथुरापुर, डायमंड हार्बर, जादवपुर, कोलकाता नॉर्थ और कोलकाता साउथ शामिल हैं।
ममता बनर्जी की पार्टी TMC, जो West Bengal की सबसे बड़ी पार्टी है, ने इस बार सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पहले TMC ने INDIA अलायंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का मन बनाया था, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बन पाई। ऐसे में ममता बनर्जी ने ‘एकला चलो रे’ की रणनीति अपनाते हुए सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया। – west bengal electoral search 2024
बीजेपी, जो बंगाल में दूसरी बड़ी पार्टी है, ने भी सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। पार्टी के चुनावी कैंपेन की बागडोर ममता बनर्जी के धुर विरोधी शुभेंदु अधिकारी संभाल रहे हैं। वहीं, थर्ड फ्रंट में कांग्रेस, CPI(M) और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 2 सीटें और 5.7% वोट मिले थे, जबकि CPI(M) ने इस बार 22 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं और कांग्रेस ने 9 सीटों पर।
West Bengal की राजनीतिक तस्वीर बदलती रहती है और इस बार भी कई नए समीकरण देखने को मिल रहे हैं। 2014 के चुनाव में बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 17% था, जबकि TMC ने 34 सीटें जीती थीं और उसका वोट शेयर 39% था। लेफ्ट पार्टी का वोट शेयर 30% था और उसे 2 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 4 सीटें मिली थीं।
2019 में लेफ्ट का वोट बैंक बीजेपी की ओर ट्रांसफर हो गया, जिससे बीजेपी का वोट शेयर 17% से बढ़कर 41% हो गया और उसने 18 सीटें जीतीं। TMC की सीटें घटकर 22 रह गईं। कांग्रेस को 2 सीटें मिलीं और लेफ्ट का खाता ही नहीं खुला।
आपको बता दे कि West Bengal के चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण करते हुए हमें राजनीतिक इतिहास, प्रमुख घटनाओं और व्यक्तित्वों पर ध्यान देना होगा। ममता बनर्जी, जो पिछले 13 सालों से बंगाल की मुख्यमंत्री हैं, ने हमेशा बंगाल की अस्मिता और संस्कृति को चुनावी मुद्दा बनाया है। उनकी पार्टी TMC ने ‘मां, माटी और मानुष’ के नारे को जनमानस में गहराई से उतारा है। 2011 में ममता बनर्जी ने वाम मोर्चा के 34 साल के शासन को समाप्त कर सत्ता हासिल की थी।
बीजेपी के लिए बंगाल में जगह बनाना आसान नहीं रहा है। लेकिन 2019 के चुनाव में पार्टी ने 18 सीटें जीतकर यह साबित कर दिया कि वह बंगाल की Politics में एक महत्वपूर्ण ताकत बन गई है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति, शुभेंदु अधिकारी की मेहनत और केंद्रीय योजनाओं का प्रभाव बीजेपी को बंगाल में एक मजबूत दावेदार बना रहा है।
पिछले चुनावों में देखा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों ने बंगाल के मतदाताओं को ध्रुवीकृत किया है। बंगाल की 30% मुस्लिम आबादी के बीच यह मुद्दे खासे संवेदनशील हैं। बीजेपी ने इन मुद्दों को अपने पक्ष में भुनाने की पूरी कोशिश की है।
ममता बनर्जी की TMC ने भी अपनी वेलफेयर स्कीमों के जरिए मजबूत वोट बैंक तैयार किया है। विशेष रूप से महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है। ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले इन स्कीमों के फंड में इजाफा किया है, जिससे उन्हें चुनावी लाभ मिलने की संभावना है।
इतिहास के पन्नों में झांकते हुए हमें पता चलता है कि बंगाल में चुनावी मुकाबला हमेशा दिलचस्प रहा है। 1977 में वाम मोर्चा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था और उसके बाद 34 साल तक बंगाल पर राज किया। ममता बनर्जी ने 2011 में वाम मोर्चा के इस लंबे शासन को समाप्त किया और बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
2019 के चुनाव में बीजेपी की उभरती ताकत ने बंगाल की Politics को नया मोड़ दिया। बीजेपी ने TMC के मजबूत गढ़ में सेंध लगाई और 18 सीटें जीतकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। इस बार के चुनाव में भी बीजेपी ने अपने पुराने प्रदर्शन से बेहतर करने की योजना बनाई है।
भारतीय Politics में कई ऐसे चुनावी मुकाबले हुए हैं, जहां प्रमुख पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कई राज्यों में ऐसे मुकाबले हुए थे। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में बीजेपी और समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला था। महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बीच चुनावी संघर्ष देखने को मिला। बिहार में भी बीजेपी-जेडीयू और महागठबंधन के बीच मुकाबला हुआ।
तो इस तरह लोकसभा चुनाव 2024 का यह चुनावी मुकाबला न केवल West Bengal की Politics को प्रभावित करेगा, बल्कि राष्ट्रीय Politics पर भी इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच यह संघर्ष कई मायनों में दिलचस्प है। जहां ममता बनर्जी अपने ‘मां, माटी और मानुष’ के नारे के साथ चुनाव मैदान में हैं, वहीं नरेंद्र मोदी अपने विकास और योजनाओं के माध्यम से वोटरों को आकर्षित कर रहे हैं।
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