सरकारी तंत्र में दबता उत्तराखंड का पर्यटन -uttarakhand latest update
पर्यटन को बचाने के लिए सरकार की पहल
रोज़गार की खातिर पलायन की और बढ़ता उत्तराखंड
वीओ—मैं देवभूमि उत्तराखंड बोल रही हूँ…. अपने छलनी सीने पर लगाए जा रहे कथित विकास के नासूर बनते दाग़ों को बेबसी से लाचार होकर भोग रही हूँ… मैं साक्षी हूँ सत्य सनातन के आध्यात्मिक अस्तित्व की…मुझे सौभाग्य मिला हुआ हैं चार धाम को अपने आग़ोश म़े सजाने, संवारने और तपस्वियों के तप को निखारने का…मैंने भारत भूमि युगे-युगे को पूरी ईमानदारी से सदियों तक जिया हैं… मेरे पहाड़ों की जड़ों से निकलने वाले जल में अमृत की शक्ति रही.. मेरे जंगलों ने पेड़-पौधों की शक्ल में हमारे आयुर्वेद को औषधियों के प्रचुर भंड़ार दिये… मेरी कुदरती फ़िज़ा ने लाईलाज रोगों को बिना दवा के ठीक करने की दैवीय शक्तियों का न केवल संचय किया बल्कि अपनी शुद्ध आबोहवा से उन्हें ठीक भी किया हैं… समय का पहिया बहुत तेज़ी से लगातार घूम रहा है और मेरे विशाल आंचल में सुकून से जीने वाले ज़र्रे – ज़र्रे के वज़ूद को कभी बिजली के नाम पर तो कभी सड़क के नाम पर तो कहीं सीमेंट कांक्रीट के आधुनिक विकास के नाम पर नेस्तनाबूद कर रहा हैं… मैं अपनी अकूत विरासत को बचाने के लिये तड़प रही हूँ….. सिसक रही हूँ… केदारनाथ में मैंने अपने रखवाले लोकतंत्र के चुने हुए मालिक बनते जा रहे नौकरों को लगातार समझाया लेकिन उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगी थी और जब पुरातन को सनातन से छीनने पर आमादा स्वार्थी आधुनिक विकास नहीं थमा तो अपना प्रकृति से टूटता नाता देख मुझे अपनी तीसरी आंख खोलनी पड़ी और मानव जनित कभी माफ़ नहीं की जाने वाली ग़लतियों का नतीजा विनाश लीला के साथ दिखाना पड़ा-uttarakhand latest update
मैं देश ही नहीं दुनिया के लोगों को अपनी ओर चुंबकीय ताक़त से खींचने का माद्दा रखती हूँ… मेरे गढ़वाल की गगनचुंबी पहाड़ियों साहसी सैलानियों का सैलाब लाती हैं तो कुमाऊं की वादियों असंख्य आंखों में हमेशा के लिये समा जाती हैं। मेरी सुरम्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाली तमाम कथित विकास की योजनाओं के बीच मेरी संतानों में शुमार मसूरी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और नैनीताल और टिहरी, चौबटिया, औली, पौड़ी, भीमताल, उत्तरकाशी, जौनसार, धनौल्टी सैलानियों की आंखों का नूर बन चुके है… -uttarakhand latest update
मुझ देवभूमि की प्राकृतिक सुंदरता शिवानी के उपन्यासों में जी रही हैं तो सुमित्रा नंदन पंत की कविता में मेरे पहाड़ अपने रोमांच का जलवा बिखेर रहे हैं…
वैसे तो मैं पर्यटन मेरी रगों में बहता हैं लेकिन धर्म…संस्कृति… प्रकृति… और साहस का भंड़ार इसकी शोभा में चार चांद लगाता रहा हैं… मैं चाहती हूं कि मेरी सरकार जनता के साथ मिलकर ऐसा विकास करें जिससे मेरी विरासत और पहचान भी बरकरार रहे और मेरा विकास भी गतिमान की गति से होता रहे….मेरी दिली ख़्वाहिश है कि पीढ़ियों से मेरी रक्षा कर रहे मेरे अपने सुदूर पहाड़ों पर बसे लोग भी अपनी जड़ों से जुड़े रहे और उन्हें रोज़गार की खातिर पलायन नहीं करना पड़े…. मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरे लोग और सरकार विकास की अंधी दौड़ में उतना ही दौड़े जितने से मुझ देवभूमि पर प्रकृति की देवी नाराज़ नहीं हो और मेरी प्राचीन मर्यादा आज कल और आज हमेशा बनी रहे…
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Question—
आपके हिसाब से उत्तराखंड की बदलती परिस्तिथि के मुख्या कारण क्या हैं ?
उत्तराखंड के पलायन के मुख्या कारन क्या है ?
सरकार की नीतिया उत्तराखंड को कितना बचा रही हैं ?
उत्तराखंड में आती आपदाएँ और चार धाम में होते विनाश किस ओर इशारा करते हैं ?
उत्तराखंड की चार धाम में होती परेशानियों के वैज्ञानिक नजरिया क्या हो सकता है