Chhattisgarh के हसदेव वनों को बचाने के लिए नागरिकों ने एक मार्च का आयोजन किया है, जिसका समर्थन सम्युक्त किसान मोर्चा ने भी किया है। यह मार्च 7 जनवरी को हसदेव अरंड वन क्षेत्र में होगा, जहां कोयले के खनन के लिए लाखों पेड़ों को काटा जा रहा है। इस वन क्षेत्र में केंद्रीय भारत के अंतिम अविभाजित वन प्रदेशों में से एक है, जिसमें विविध प्राणी और वन्य जीवों का निवास है। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़। -The Story of Forest
हसदेव अरंड वन क्षेत्र Chhattisgarh के कोरबा, सरगुजा और सुरजपुर जिलों में फैला हुआ है। इसका कुल क्षेत्रफल 1,70,000 हेक्टेयर है। इस वन क्षेत्र में गोंड, ओरांव और अन्य आदिवासी समुदाय रहते हैं, जो वन और कृषि पर निर्भर हैं। इस वन क्षेत्र में 82 प्रकार के पक्षी, 167 प्रकार के वनस्पति, जिनमें से 18 लुप्तप्राय हैं, और लुप्तप्राय तितली प्रजातियां पाई जाती हैं। इस वन क्षेत्र में हाथियों, बाघों और अन्य जंगली जानवरों का आवास और प्रवासी मार्ग है। इस वन क्षेत्र को भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद ने “केंद्रीय भारत का सबसे बड़ा अविभाजित वन क्षेत्र, जिसमें शुद्ध साल और सागवान के वन हैं” के रूप में वर्णित किया है। इस वन क्षेत्र में हसदेव नदी बहती है, जो महानदी नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। इस वन क्षेत्र में हसदेव अरंड कोयला क्षेत्र भी है, जिसमें 23 कोयला खण्ड हैं।
इस वन क्षेत्र में कोयले के खनन के लिए केंद्र सरकार ने 2010 में इसे “नो-गो” क्षेत्र मतलब वर्जित घोषित किया था, यानी कि इसमें कोई भी खनन नहीं होगा। लेकिन सिर्फ एक साल बाद, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस वन क्षेत्र में एक कोयला खण्ड के लिए खनन की अनुमति दे दी। यह कोयला खण्ड पर्सा ईस्ट और केटे बासन के नाम से जाना जाता है, जिसे राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को सौंपा गया है। जबकि इस खनन परियोजना को अडानी समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है।
आपको बता दे कि इस खनन परियोजना के विरोध में वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदायों ने लंबे समय से आंदोलन किया है। उन्होंने अपने ग्राम सभाओं में खनन के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं। उन्होंने अपने वन अधिकार के तहत वन क्षेत्र को अपना घोषित किया है। उन्होंने अपने जीवन, आजीविका और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष किया है। उन्होंने कई बार खनन के खिलाफ धरना, प्रदर्शन और जनसुनवाई करके अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने अपने अधिकारों के लिए न्यायालय में भी याचिका दायर की है।
इस खनन परियोजना के कारण वन क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुंचेगा। इससे वन की जैव विविधता, जलवायु, मृदा, हवा और वन्य जीवों को खतरा होगा। इससे वन में रहने वाले आदिवासी समुदायों का जीवन और आजीविका भी प्रभावित होगा। इससे वन के साथ-साथ आस-पास के क्षेत्रों के लोगों को भी पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि हसदेव अरंड वन क्षेत्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अनमोल पर्यावरणीय धरोहर है, जिसे बचाना हमारा कर्तव्य है। इस वन क्षेत्र में कोयले के खनन की अनुमति देना एक बड़ी गलती होगी, जिससे न केवल वन को, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों और जीवों को भी नुकसान होगा। हमें इस वन को अपने स्वार्थ के लिए नष्ट नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे संरक्षित और संवर्धित करना चाहिए। हमें इस वन के लिए लड़ने वाले आदिवासी समुदायों का समर्थन करना चाहिए, जो इसे अपना घर मानते हैं। हमें इस वन को अपनी पीढ़ियों को विरासत के रूप में देना चाहिए, जो इसकी सुरक्षा और समृद्धि का ध्यान रखेंगी।
वन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, वे हमें न केवल ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, बल्कि अन्य जीवनवर्धक संसाधनों का भी स्रोत होते हैं। वन ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत होते हैं। एक अनुमान के अनुसार, वन पृथ्वी पर उत्पादित ऑक्सीजन का लगभग 50% उत्पादन करते हैं। एक पूरी तरह से विकसित वृक्ष एक वर्ष में दस लोगों द्वारा श्वसन के दौरान शोषित ऑक्सीजन के बराबर ऑक्सीजन उत्पन्न कर सकता है। यद्यपि, वन ऑक्सीजन का नेट योगदान शून्य के आसपास होता है क्योंकि वृक्ष ऑक्सीजन का उपयोग भी करते हैं। आज की तारीख में, हम फिर से हमारे पर्यावरण से छेड़छाड़ हो रही है। विकास के नाम पर, हम अपने वनों, नदियों, पहाड़ों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर रहे हैं। हमें इसे रोकने के लिए एकजुट होना होगा। हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जन आंदोलन चलाने होंगे। हमें साइलेंट वैली आंदोलन से प्रेरणा लेनी होगी। हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी आवाज उठानी होगी। हमें अपने भविष्य के लिए लड़ना होगा। धन्यवाद। आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।