केरल में राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव बढ़ चला है क्योंकि राष्ट्रपति ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित तीन विधेयकों को अस्वीकार कर दिया है। जिनमें से एक विधेयक राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद से हटाने का प्रावधान था। लेकिन राष्ट्रपति ने केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 को मंजूरी दे दी, जिससे भ्रष्टाचार निरोधक अधिकारी की शक्तियों में कटौती हुई, और सरकार को लोकायुक्त की रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार मिला।the role of governor in kerala
लेकिन क्या आप जानते हैं कि केरल में राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव की वजह सिर्फ यही है या कुछ और? क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रपति ने कौन से विधेयकों को अस्वीकार किया है और कौन से विधेयक को मंजूरी दी है? क्या आप जानते हैं कि इन विधेयकों का केरल की राजनीति, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अगर नहीं, तो आइए हम आपको इस विषय पर विस्तार से बताते हैं।the role of governor in kerala
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इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब केरल के राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान ने पिछले दो साल में राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों को अपनी मंजूरी नहीं दी और उन्हें राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। इन विधेयकों में से तीन विधेयक उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों से संबंधित थे, जिनका उद्देश्य राज्यपाल की विश्वविद्यालयों में शक्तियों को कम करना, और सरकार को कुलपतियों की नियुक्ति में अधिक शक्ति देना था।the role of governor in kerala
राज्यपाल ने इन विधेयकों को अपनी मंजूरी न देकर, या राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करके, राज्य सरकार को नाराज कर दिया। राज्य सरकार ने पिछले साल नवंबर में राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, और विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकार न करने और देरी के मामले को उठाया। उस समय, राज्यपाल के पास आठ विधेयक लंबित थे।the role of governor in kerala
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के कार्यालय से कहा, कि वह एक समान मामले में पंजाब सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर अपने फैसले को देखे, जिसमें उच्चन्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि राज्यपाल विधायी प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सकते।
इसके बाद, राज्यपाल ने अपने पास लंबित आठ विधेयकों में से एक विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी। उन्होंने जो विधेयक मंजूर किया था, वह केरल जनस्वास्थ्य विधेयक था। शेष सात विधेयकों को उन्होंने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया।
इन सात विधेयकों में से राष्ट्रपति ने अब तक केवल एक विधेयक को मंजूरी दी है, जो केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 है। इस विधेयक के अनुसार, राज्य सरकार को लोकायुक्त की रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार मिल जाएगा, और लोकायुक्त की शक्तियों में कटौती होगी। इस विधेयक को मंजूरी देकर, राष्ट्रपति ने राज्य सरकार को एक राहत दी है, जो भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही है।
लेकिन राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अस्वीकार कर दिया है, जो राज्यपाल की भूमिका को कमजोर करने के लिए बनाए गए थे। इन विधेयकों में से एक विधेयक केरल विश्वविद्यालय विधि संशोधन विधेयक 2022 था, जिसमें राज्यपाल को विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति को पद से हटाने का प्रावधान था। इस विधेयक का उद्देश्य यह था कि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में सरकार को अधिक प्रभुत्व मिले, और राज्यपाल का कोई हस्तक्षेप न हो।
इसी तरह, दूसरा विधेयक विश्वविद्यालय विधि संशोधन विधेयक 2022 था, जिसमें कुलपति की नियुक्ति के लिए खोज समिति का विस्तार किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य यह था कि खोज समिति में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाई जाए, और राज्यपाल का कोई प्रतिनिधि न हो।
तीसरा विधेयक विश्वविद्यालय विधि संशोधन विधेयक 2021 था, जिसमें तकनीकी विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों के लिए अपीलीय ट्रिब्यूनल का प्रावधान और अन्य संशोधन किए गए थे। इस विधेयक का उद्देश्य यह था कि विश्वविद्यालयों के मामलों में राज्यपाल की अनुमति के बिना अपील की जा सके।
इन विधेयकों को अस्वीकार करके, राष्ट्रपति ने राज्यपाल की भूमिका को संरक्षित रखने का संकेत दिया है, और राज्य सरकार को एक झटका दिया है, जो राज्यपाल की शक्तियों को कम करने की कोशिश कर रही थी।
इन विधेयकों का केरल की राजनीति, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका विश्लेषण करने के लिए हम आपको कुछ तथ्य और आकड़े बताते हैं।
केरल में राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव का इतिहास काफी पुराना है। राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान ने कई बार राज्य सरकार की नीतियों और कार्यों को आलोचना की है, और उन्हें अनुचित और गैर कानूनी बताया है। राज्यपाल ने राज्य सरकार के खिलाफ कई मुद्दों पर अपनी आवाज उठाई है, जैसे कि शासन विधेयक, नागरिकता संशोधन कानून, गोवा बोर्डर विवाद, विधायकों के विश्वास मत, आदि। राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव को राजनीतिक दलों और विश्वविद्यालयों के छात्र संगठनों ने भी देखा है, जो राज्यपाल के विरोध या समर्थन में प्रदर्शन और हड़ताल करते रहे हैं।
राष्ट्रपति द्वारा तीन विधेयकों को अस्वीकार करने से, राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों में अधिक नियंत्रण पाने की योजना बिगड़ गई है। राज्य सरकार का दावा है कि इन विधेयकों का उद्देश्य विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्त और जिम्मेदार बनाना है, जबकि राज्यपाल का कहना है कि इन विधेयकों से विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता और विविधता पर असर पड़ेगा। राज्यपाल का मानना है कि विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद एक गौरवपूर्ण और निष्पक्ष पद है, जिसे राजनीतिक दबाव से दूर रखना चाहिए।
राष्ट्रपति द्वारा केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022 को मंजूरी देने से, राज्य सरकार को लोकायुक्त की रिपोर्ट को अनदेखा करने का अधिकार मिल गया है। इस विधेयक के विरोधी इसे एक भ्रष्टाचार का माध्यम मानते हैं, जिससे सरकार के अधिकारियों और नेताओं को बचाया जा सकता है। इस विधेयक के समर्थक इसे एक व्यवहारिक और आवश्यक कदम मानते हैं, जिससे सरकार को लोकायुक्त की रिपोर्ट को विचार करने और उसके अनुसार कार्रवाई करने का समय मिलेगा।
इन विधेयकों का केरल की राजनीति, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर एक लंबे समय तक का प्रभाव पड़ सकता है। इन विधेयकों के कारण, राज्यपाल और सरकार के बीच की अनबन और असहमति बढ़ सकती है, जो राज्य के विकास और सुशासन को प्रभावित कर सकती है। विश्वविद्यालयों में, शिक्षकों, छात्रों और कर्मचारियों के बीच विभिन्न मतों और विचारों का सामना हो सकता है, जो शैक्षणिक गतिविधियों और अनुसंधान को बाधित कर सकता है। सामाजिक जीवन में, लोगों के बीच विश्वास और भरोसा कम हो सकता है, जो लोकतंत्र और न्याय के सिद्धांतों को कमजोर कर सकता है।
इस प्रकार, हमने आपको केरल में राज्यपाल की भूमिका पर विवाद के बारे में बताया, जिसमें राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अस्वीकार कर दिया है, और एक विधेयक को मंजूरी दे दी है। हमें उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी, और आपको इस विषय पर अधिक जानने की इच्छा होगी। अगर इस विषय पर आपके कोई सवाल या सुझाव है, तो आप हमें बता सकते हैं। हम आपके सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे। नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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