Maharashtra में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन इंडिया का गठन हुआ है, जिसमें कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी शामिल हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के गठबंधन एनडीए को हराना है। इस गठबंधन की सबसे चर्चित बात यह है कि शिवसेना और कांग्रेस जो कभी एक-दूसरे के घोर विरोधी थे, अब एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस वीडियो में हम इस गठबंधन के पीछे के कारण, इसकी चुनौतियां और इसके परिणामों पर चर्चा करेंगे। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़। -The Rise of Opposition Alliance
शिवसेना और कांग्रेस के बीच का गठबंधन एक अनोखा और अनौपचारिक साझेदारी है, जिसका आधार राजनीतिक आवश्यकता और राज्य के विकास का दावा है। दोनों दलों के बीच कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ है, बल्कि एक अनुबंध है, जिसमें दोनों ने एक-दूसरे के साथ सहयोग करने का वादा किया है।
आपको बता दे कि, शिवसेना यूबीटी ने 2019 में भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ा था, जब उसे मुख्यमंत्री पद का अधिकार नहीं मिला था। उसने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी (MVA) का गठन किया था, जिसमें उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया था। शिवसेना यूबीटी ने अपनी भगवा विचारधारा को छोड़कर, एनसीपी और कांग्रेस के साथ सामाजिक न्याय और विकास के मुद्दों पर ध्यान देने का दावा किया है।
वही कांग्रेस ने भी शिवसेना यूबीटी के साथ गठबंधन करने का फैसला अपनी राजनीतिक आवश्यकता के कारण किया है। कांग्रेस को पता है कि वह अकेले महाराष्ट्र में भाजपा और एनडीए के खिलाफ लड़ने में सक्षम नहीं है। इसलिए, वह शिवसेना यूबीटी और एनसीपी के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह समझाया है कि शिवसेना यूबीटी के साथ गठबंधन करना राज्य के विकास और लोकतंत्र के लिए जरूरी है।
इसी तरह एनसीपी शरद पवार गुट ने भी शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का समर्थन किया है, क्योंकि वह भी अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखना चाहता है। एनसीपी ने 2019 में अपने अंदर एक विभाजन देखा था, जब अजित पवार ने भाजपा के साथ गठबंधन करने का फैसला किया था, लेकिन बाद में उसने अपना फैसला बदल दिया था। एनसीपी को पता है कि यदि वह शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस के साथ नहीं रहता है, तो वह राज्य में अपनी पहचान खो देगा। एनसीपी ने अपने नेता शरद पवार की राजनीतिक चतुराई और अनुभव का इस्तेमाल करके इस गठबंधन को संभालने में मदद की है।
लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी शिवसेना और कांग्रेस के बीच राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर कई मतभेद हैं। शिवसेना एक हिंदुत्ववादी और मराठी आस्था वाली पार्टी है, जबकि कांग्रेस एक सेक्युलर और बहुजनवादी पार्टी है। दोनों पार्टियों को अपने कार्यकर्ताओं और वोटरों को इस गठबंधन को स्वीकार करने में कठिनाई हुई है। दोनों पार्टियों ने अपने अपने मुद्दों को लेकर समझौता करना पड़ा है।
अब इस गठबंधन में सबसे बड़ा मुद्दा सीट शेयरिंग का रहेगा। महाराष्ट्र में कुल 48 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से शिवसेना यूबीटी ने 23, कांग्रेस ने 22 और एनसीपी ने 10 सीटों का दावा किया है। इसके अलावा, वंचित बहुजन आघाड़ी VBA के नेता प्रकाश अंबेडकर ने भी 8 सीटों का दावा किया है। इससे ज्यादा सीटों का दावा करने के कारण, इस गठबंधन में कई बार विवाद और टकराव हुए हैं। अंततः, इन पार्टियों ने एक समन्वय समिति बनाकर इस मुद्दे को हल करने की कोशिश की है।
दूसरी तरफ इस गठबंधन का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी एनडीए है, जिसमें भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं। एनडीए ने अपने विकास के कार्यों, केंद्र सरकार की योजनाओं और मोदी की लोकप्रियता का झंडा लहराते हुए इस गठबंधन को चुनौती दी है। एनडीए ने इस गठबंधन को अस्थिर, असंगत और असिद्ध होने का आरोप लगाया है। एनडीए ने अपनी एकजुटता और नेतृत्व का दिखावा करके इस गठबंधन को नाकाम बनाने का प्रयास किया है।
आपको बता दे कि, इस गठबंधन का क्या परिणाम और निष्कर्ष निकलेगा इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है, क्योंकि यह एक नया और अनोखा गठबंधन है, जिसमें विभिन्न विचारधारा और रुझान वाली पार्टियां एक साथ आई हैं। इस गठबंधन का मुख्य उद्देश्य भाजपा को महाराष्ट्र में रोकना और अपने आप को सत्ता में बनाए रखना है। इस गठबंधन की चुनौती यह है कि वह अपने अंदर के मतभेदों और विरोधों को कैसे सुलझाता है और जनता की उम्मीदों पर कैसे खरा उतरता है।
इस गठबंधन का परिणाम आने वाले लोकसभा चुनाव में दिखाई देगा। इस गठबंधन को अपने वोटरों को एक साथ रखने और एनडीए के विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। –Maharashtra