Supreme Court Reserves Verdict on Bail Pleas of Shoma Sen and Jyoti Jagtap in Bhima Koregaon Case | AIRR News
भीमा कोरेगांव मामले में शोमा सेन और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा | एआईआरआर समाचार
नमस्कार
“Bhima Koregaon मामले में गिरफ्तार शोमा सेन और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। इन दोनों को नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और कबीर कला मंच की सदस्य होने के साथ-साथ नक्सलवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। आइए, इस मामले को हम विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।“
Bhima Koregaon मामले में गिरफ्तार शोमा सेन और ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है। इन दोनों को नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और कबीर कला मंच की सदस्य होने के साथ-साथ नक्सलवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। इन्हें अवैध गतिविधियों का रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है।
आपको बता दे कि शोमा सेन ने अपनी बिगड़ती तबीयत के आधार पर तुरंत अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि उनका अपराध में शामिल होना निर्णायक रूप से अभी खारिज नहीं किया जा सकता है।
इसके बाद Bhima Koregaon मामले में कथित रूप से शामिल ज्योति जगताप के बारे में सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ जिसका नेतृत्व न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस कर रहे है, ने कहा कि ज्योति जगताप की जमानत याचिका को भी 10 जनवरी के बाद ही संभवतः जनवरी के तीसरे सप्ताह में आने वाले बुधवार को सुनेगी।
आपको बता दे कि, भीमा कोरेगांव मामला 2018 के शुरुआत में हुई एक हिंसा के संबंध में है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत और कई लोगों के घायल होने की घटना हुई थी। इस हिंसा का कारण बताया गया था कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एलगार परिषद नामक एक सम्मेलन में जो उकसाने वाले दिए गए भाषण।
वैसे इस सम्मलेन में कबीर कला मंच के सदस्यों ने भी भाग लिया था। अगर हम पुणे पुलिस कि माने तो, इस सम्मेलन को नक्सलवादी संगठनों ने संचालित किया था। पुलिस के बाद,इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने संभाल ली थी।
अब तक इस मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से एक फादर स्टैन स्वामी ने जेल में ही दम तोड़ दिया था। दो अन्य आरोपी सुधा भारद्वाज और वरवरा राव को जमानत मिल चुकी है, जबकि बाकी अभी भी जेल में हैं।
शोमा सेन और ज्योति जगताप कि बात करे तो इन पर नक्सलवादी गतिविधियों में शामिल होने के अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने भीमा कोरेगांव में हुए युद्ध की वर्षगांठ के अवसर पर दलितों को भड़काने का प्रयास किया था। उन्हें यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में नक्सलवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अन्य आरोपियों के साथ मिलकर एक साज़िश रची थी।
भीमा कोरेगांव मामला सुरु से ही विवादित है , क्योंकि इसमें गिरफ्तार सभी व्यक्तियों का सम्बन्ध सामाजिक गतिविधियों से या पत्रकारिता से है।
आपको बता दे कि इस मामले में आरोपियों में से रोना विल्सन जो कि दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता है।नागपुर के एक जाने माने वकील और दलित अधिकारों के लिए लड़ने वाले अधिवक्ता सुरेंद्र गडलिंग का नाम भी इन आरोपियों में शामिल है। इसके अलावा एक युवा ग्रामीण विकास कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों का समर्थक महेश रौत को भी आरोपी बनाया गया है।
शुरेश धवले जो एक दलित कवि और लेखक, जिन्होंने अपनी कविताओं और लेखों के माध्यम से सामाजिक अन्याय का विरोध किया था ।
सुरेंद्र गडलिंग की तरह अरुण फेरारा,वर्णन गोंसाल्वेस भी वकील और एक लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन का सदस्य रहा है, जिन्होंने गरीबों और शोषितों के लिए न्याय की मांग की है।
कश्मीर के मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने वाले गौतम नवलक्हा एक पत्रकार और एक मानवाधिकार विशेषज्ञ है , जिन्होंने कश्मीर, नक्सलवाद और अन्य मुद्दों पर लिखा था ।
जाने माने विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और एक लोकप्रिय लेखक हन्य बाबू और अनंद तेल्टुमडे, जिन्होंने दलित आंदोलन, जाति और धर्म के बारे में लिखा है।
ऐसे सुधीर धवले भी है जो एक दलित कवि और एलगार परिषद के संस्थापक सदस्य थे ।
इन सभी आरोपियों पर ये आरोप लगाया गया है कि उन्होंने भीमा कोरेगांव में हुए हिंसा को भड़काने के लिए एक साजिश रची थी, जिसमें देश के प्रधानमंत्री की हत्या करने का भी इरादा था। उन्हें यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में नक्सलवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अन्य आरोपियों के साथ मिलकर एक संगठित गुट बनाया था।
आपको बता दे कि इन सभी गिरफ्तार व्यक्तियों के दावों या इन पर लगे आरोपों में कितनी सच्चाई है , इस पर कोई कुछ नहीं कह सकता है, लेकिन इतने दिनों बाद भी इस मामले में अभी तक कोई चार्जशीट पेश ना करना और आरोपियों को जेल में रखे जाने के मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार विशेषज्ञों और आम जनता के बीच एक तेज विवाद चल रहा है।
क्योंकि इन आरोपियों का कहना है कि वे निर्दोष हैं और उन पर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं। वे कहते हैं कि उनका कोई भी संबंध नक्सलवादी संगठनों से नहीं है और वे सिर्फ अपने सामाजिक और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि उन पर लगाए गए आरोप उनकी आवाज को दबाने का एक प्रयास है। कुछ लोग इसे एक न्याय की लड़ाई मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे एक राष्ट्रविरोधी साजिश का नतीजा समझते हैं।
बाकि इस मामले में अंतिम निर्णय आना अभी बाकी है, लेकिन इसके पीछे की कहानी और इसके प्रभाव को समझना जरूरी है। इसलिए, हमने आपके लिए ये सारी जानकारिया लेकर आये है। जिसमें हमने इस मामले के बारे में सभी पहलुओं का विस्तार से वर्णन किया है।।
धन्यवाद्
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