supreme court news
क्या है वोटों का हिसाब-किताब रखने वाला फॉर्म 17C
चुनाव आयोग इसे सार्वजनिक करने से कतरा रहा है
ADR ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी याचिका
फॉर्म 17C की स्कैन की कॉपी अपलोड करने की मांग
विपक्षी दल लगातार उठा रहे चुनाव आयोग से सवाल
फॉर्म 17C में क्या है… क्यों इसे लेकर इन दिनों सियासत हो रही है.. और आखिर क्यों चुनाव आयोग इसे सार्वजनिक करने से कतरा रहा है… आज के इस वीडियो में हर इस मुद्दे को विस्तार से बताएंगे और समझाएंगे कि आखिर ये पूरा विवाद क्या है.. नमस्कार आप देख रहे हैं AIRR NEWS…. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग यानि ECI के अंतिम तौर पर वोटिंग डेटा जारी करने से संबंधित सुनवाई रोक दी है.. –supreme court news
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को डेटा पब्लिश करने का आदेश देने से इनकार कर दिया। दरअसल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR ने अपनी याचिका में मांग की थी कि चुनाव आयोग मतदान होने के 48 घंटे के अंदर हर पोलिंग बूथ पर डाले गए वोटों का आंकड़े जारी करे.. एडीआर ने अपनी याचिका में फॉर्म 17C की स्कैन की हुई कॉपी भी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने की मांग की थी.. दरअसल ये विवाद इसलिए शुरू हुआ क्योंकि मतदान के बाद आयोग ने जो आंकड़े जारी किए थे, वो काफी बाद में जारी किए जाने वाले अंतिम मतदाता प्रतिशत से काफी अलग हैं..-supreme court news
अब आपको बताते हैं कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में क्या दलील दी है… सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर चुनाव आयोग ने बताया कि वेबसाइट पर हर मतदान केंद्र के मतदान का आंकड़ा सार्वजनिक करने से चुनावी मशीनरी में भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है.. ये मशीनरी पहले ही लोकसभा चुनावों के लिए काम कर रही है.. विपक्षी दलों की ओर से मतदान प्रतिशत की जानकारी देरी से दिए जाने पर भी सवाल उठाए गए थे.. चुनाव आयोग ने ऐसे आरोपों को भी खारिज किया है…
वहीं फॉर्म 17C को सार्वजनिक न करने पर आयोग ने क्या कहा ये भी आपको बताते हैं…चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में फॉर्म 17C को न दिए जाने के बारे में कहा कि पूरी जानकारी देना और फॉर्म 17C को सार्वजनिक करना वैधानिक फ्रेमवर्क का हिस्सा नहीं है… इससे पूरे चुनावी क्षेत्र में गड़बड़ी हो सकती है। इन आंकड़ों की तस्वीरों को मॉर्फ यानी उससे छेड़छाड़ की जा सकती है.. इसे लेकर सियासत भी हो रही है.. कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने 23 मई को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि चुनाव आयोग का जवाब अजीबोगरीब और एक तरह से कुतर्क है..
आयोग बच रहा है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है और दिखाता है कि चुनाव आयोग का झुकाव एकतरफ़ा है.. चुनाव आयोग का कहना है कि डेटा के साथ छेड़छाड़ होगी। कोई फोटो मॉर्फ कर सकता है, ऐसे तो फिर कोई भी डेटा अपलोड नहीं हो सकता.. आपको अब फॉर्म 17C के बारे में बताते हैं जिस पर सियासत हो रही है..चुनाव संचालन अधिनियम, 1961 के मुताबिक चुनाव के दौरान वोटरों के आंकड़े दो फॉर्मों में भरे जाते हैं। पहले फॉर्म को 17A कहते हैं। जिसमें हर बूथ पर मतदान अधिकारी हर मतदाता की हर डिटेल्स दर्ज करते हैं और रजिस्टर पर साइन भी होता है। इसके बाद फॉर्म 17C को मतदान के आखिर में भरा जाता है।
फॉर्म 17C में पोलिंग स्टेशन का नाम और नंबर, इस्तेमाल होने वाले EVM का आईडी नंबर, उस खास पोलिंग स्टेशन के लिए कुल योग्य वोटरों की संख्या और हर वोटिंग मशीन में दर्ज वोट जैसी जानकारियां होती हैं…इसके तहत वोटों का हिसाब किताब रखा जाता है..चुनाव संचालन कानून, 1961 के नियम 49S और 56C के मुताबिक, मतदान खत्म होने पर प्रिसाइडिंग ऑफिसर फॉर्म 17C में दर्ज वोटों का लेखा-जोखा तैयार करता है.. ये काम वोटिंग की प्रक्रिया खत्म होने के तुरंत बाद ही करना होता है। फॉर्म 17C के दो हिस्से होते हैं। पहले हिस्से में कितने वोट पड़े इसका हिसाब होता है। वहीं दूसरे हिस्से में कितने वोटर्स थे और उनमें से कितने वोट दिया, इसका हिसाब होता है। चूंकि पहला हिस्सा मतदान के दिन ही भरा जाता है, इसीलिए इसे सार्वजनिक करने की मांग विपक्ष कर रहा है..
अब इससे चुनाव आयोग क्यों कतरा रहा है ये सवाल है.. दरअसल, चुनाव आयोग फॉर्म 17C को ऑनलाइन पब्लिश करने से इसलिए भी कतरा रहा है कि देश भर में सभी बूथों के डेटा अलग-अलग पब्लिश करने में काफी मुश्किलें आ सकती हैं.. वहीं हर बूथ पर एजेंट के लिए फॉर्म 17C लेना मुश्किल है.. एक निर्वाचन क्षेत्र में करीब 2,000 से 3,000 बूथ होते हैं। इतने बूथ पर एक उम्मीदवार के एजेंट होने संभव नहीं है.. फॉर्म 17C की एक प्रति प्राप्त करने के लिए एक उम्मीदवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र में 2,000 पोलिंग एजेंट रखने की जरूरत पड़ेगी.. छोटे दलों और कई निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए सभी बूथों पर पोलिंग एजेंट रखना बेहद मुश्किल काम होगा… अब एक सवाल ये है कि फॉर्म 17C को क्यों जरूरी माना जा रहा है…
फॉर्म 17C में डेटा का इस्तेमाल उम्मीदवारों द्वारा ईवीएम गणना के साथ मिलान करके मतगणना के दिन नतीजों को सत्यापित करने के लिए किया जाता है.. अगर डेटा में कोई खामी मिलती है तो कोर्ट में याचिका भी दायर की जा सकती है… वहीं बीते चुनावों में मतदान के पूरे आंकड़े जारी किए थे. पिछले चुनावों में किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों की पूर्ण संख्या जारी की गई। तब इसे लेकर कोई सवाल नहीं उठा..इस बार कई दिन बाद अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने पर सवाल उठे हैं… वहीं कपिल सिब्बल ने भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि डाले गए वोट अपलोड क्यों नहीं हो रहे..
राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कहा है कि अगर गिने गए वोट अपलोड किए जाते हैं तो डाले गए वोट क्यों नहीं? ऐसे आयोग पर हम कैसे भरोसा करें! कपिल सिब्बल ने तंज कसते हुए कहा है कि अब हमें भगवान के पास ही जाना होगा, मोदी ही भगवान हैं…
अब मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा ये आपको बताते हैं.. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर और कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में बूथों पर मतों की संख्या संबंधित फॉर्म 17C की स्कैन कॉपी अपलोड करने संबंधी याचिका दाखिल की थी.. इस याचिका में मांग की गई कि चुनाव आयोग मतदान में मतों की कुल गिनती की संख्या मतदान खत्म होने के तुरंत बाद वेबसाइट पर जारी करे.. इसी तरह की खबरों की अपड़ेट के लिए आप जुड़े रहिए AIRR NEWS के साथ…
TAGSdelay voter turnout,voter turnout delay,dy chandrachud strict on delay voter turnout,supreme court,supreme court news,election commission,dy chandrachud,what is form 17c,cji chandrachud,dy chandrachud news,cji chandrachud news,dy chandrachud on rajiv kumar,cec rajeev kumar,cji news,law news,चुनाव आयोग,सीजेआई,सुप्रीम कोर्ट#airr news