Shani Markesh: वैदिक ज्योतिष में “मारकेश” शब्द का अर्थ होता है-मृत्यु या मृत्यु समान कष्ट देने वाला ग्रह. यह ग्रह व्यक्ति की कुंडली में ऐसे भावों का स्वामी होता है जो जीवन की समाप्ति से जुड़ी संभावनाएं दर्शाते हैं. परंपरागत रूप से द्वितीय और सप्तम भाव को मारक भावमाना जाता है और इन भावों के स्वामी ग्रहों को मारकेश कहा जाता है.
मारकेश की दशा या अंतर्दशा आने पर व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या सामाजिक स्तर पर गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है. सभी दशाओं में यह ग्रह मृत्यु का कारण नहीं बनता, लेकिन यह स्वास्थ्य में गिरावट, दुर्घटना, रोग या जीवन में अत्यंत कठिन समय का कारण अवश्य बन सकता है. कुंडली में शुभ योगों, ग्रहों की दृष्टियों और बल के अनुसार यह प्रभाव घट या बढ़ सकता है.
शनि मारकेश के क्या प्रभाव होते हैं?
शनि को एक क्रूर ग्रह माना गया है, लेकिन इसका स्वभाव न्यायप्रिय और कर्मफल देने वाला है. जब शनि कुंडली में द्वितीय या सप्तम भाव का स्वामी होकर मारकेश बनता है तो यह अत्यंत शक्तिशाली और घातक हो सकता है, विशेष रूप से जब यह नीच राशि में हो या पाप ग्रहों से दृष्ट हो.
शनि की मारकेश दशा में व्यक्ति को निम्न प्रकार के प्रभाव हो सकते हैं:-
- लंबे समय तक चलने वाली बीमारियां जैसे गठिया, हड्डियों से संबंधित रोग, रीढ़ की हड्डी की समस्या या अवसाद.
- भारी मानसिक तनाव, अकेलापन और सामाजिक दूरी.
- जीवन में विलंब, बाधा और हानि– विशेषकर विवाह, करियर और आर्थिक मामलों में.
- रोग, शत्रु, और न्यायिक झगड़े बढ़ सकते हैं.
- कभी-कभी यह मृत्यु के समीप ले जाने वाला समय भी हो सकता है, विशेषतः जब अन्य ग्रह भी सहयोग कर रहे हों, जैसे अष्टमेश या द्वादशेश की दृष्टि या इनके साथ युति अथवा दृष्टि संबंध होना.
कब कष्ट नहीं देता शनि का मारक प्रभाव
यदि शनि उच्च राशि (तुला) में हो, योगकारक हो, या शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो, तो यह मृत्यु नहीं देता, बल्कि दीर्घायु और अनुभवों से परिपक्वता देता है. इसके अलावा और भी अन्य योग हैं जिनमें शनि धन वृद्धि, प्रतिष्ठा आदि बढ़ा देता है और न्यायवादी बनाता है.
चार लग्नों पर शनि की मारकेश की स्थिति
धनु लग्न (Sagittarius Ascendant): धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय और तृतीय भाव का स्वामी होता है. द्वितीय भाव मारक भाव होने के कारण शनि यहां मुख्य मार्केश बनता है. तृतीय भाव साहस, प्रयास और छोटे भाई-बहनों का होता है. इस लग्न में शनि की दशा या अंतर्दशा में धन का नुकसान, पारिवारिक कलह, कंठ और वाणी से संबंधित रोग हो सकते हैं. शनि यदि नीच का हो (मेष में), या अष्टम/द्वादश भाव में हो, तो यह जीवन के लिए भी संकटकारी हो सकता है. यदि शनि उच्च का हो (तुला में), या शुभ दृष्टियों में हो, या सम राशि में हो तो व्यक्ति संघर्ष के बावजूद बच निकलता है और समय के साथ स्थिरता और निरंतर बढ़ोतरी प्राप्त करता है.
मकर लग्न (Capricorn Ascendant): मकर लग्न में शनि स्वयं लग्न का स्वामी है और द्वितीय भाव का भी स्वामी होता है. इस स्थिति में शनि आंशिक रूप से मार्केश बनता है. क्योंकि शनि लग्नेश भी है, यह पूर्णतः घातक नहीं माना जाता. यदि शनि अशुभ भावों में हो या नीच का हो, तो यह शरीर को दुर्बल बना सकता है, आंखों या दांतों से संबंधित रोग, तथा पारिवारिक तनाव ला सकता है. परंतु यदि यह उच्च का हो, केंद्र या त्रिकोण में हो, या शुभ दृष्टियों से युक्त हो, तो यह व्यक्ति को दीर्घायु और परिपक्व दृष्टिकोण वाला बनाता है. शनि यहां संतुलित भूमिका निभाता है.
कर्क लग्न (Cancer Ascendant): कर्क लग्न के लिए शनि सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी होता है, जिससे यह अत्यंत घातक ग्रह बनता है. सप्तम भाव एक प्रमुख मारक भाव है और अष्टम भाव जीवन की समाप्ति से जुड़ा है. इस स्थिति में शनि की दशा व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, साझेदारी, स्वास्थ्य और आयु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. यह मृत्यु कारक ग्रह बन सकता है यदि अन्य अशुभ ग्रहों का साथ हो. विशेषकर अगर यह नीच का हो, छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो दुर्घटनाएं, ऑपरेशन, और दीर्घकालिक रोगों की संभावना रहती है. यह सबसे अधिक सावधानी की मांग करने वाली स्थिति होती है.
सिंह लग्न (Leo Ascendant): सिंह लग्न में शनि षष्ठ और सप्तम भाव का स्वामी होता है. सप्तम भाव के स्वामी के रूप में यह मार्केश होता है और षष्ठ भाव से रोग और शत्रुता का संकेत देता है. इस स्थिति में शनि वैवाहिक जीवन में अशांति, स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां और कार्यस्थल पर तनाव उत्पन्न कर सकता है. यदि शनि कमजोर हो या पाप दृष्ट हो, तो जीवन में दुर्घटनाओं और रोगों की संभावना बढ़ जाती है. यदि शनि उच्च का हो या शुभ ग्रहों से युक्त हो, तो व्यक्ति संघर्ष करके सफलता पा सकता है, लेकिन मानसिक और शारीरिक थकावट रह सकती है.
शनि मारकेश उपाय
जब शनि ग्रह कुंडली में मारकेश की भूमिका निभाता है, तो कुछ उपाय करने से इसके कष्टकारी प्रभाव को कम किया जा सकता है. जैसे:
शनि मंत्र का जाप:
- “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः”रोज़ाना 108 बार जाप करना लाभकारी होता है, विशेषकर शनिवार को.
- दशरथकृत शनि स्तोत्र.
- पीपल के पेड़ के नीचे सांय काल को दीपक जलाना.
हनुमान चालीसा का पाठ:
- शनि से बचने के लिए हनुमान जी की उपासना श्रेष्ठ मानी जाती है.
- मंगलवार और शनिवार को विशेष लाभ होता है.
शनि दान:
- शनिवार को काले तिल, काली उड़द, लोहे का सामान, छाता या जूते दान करें.
- पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं और जल अर्पित करें.
महामृत्युंजय मंत्र का जाप:
- कठिन समय में या रोग की दशा में इस मंत्र का जाप विशेष फलदायी होता है.
संयमित जीवन शैली:
- संयम, ईमानदारी और सेवा भाव अपनाएं। शनि कर्म का ग्रह है, यह सत्कर्मों से शीघ्र प्रसन्न होता है.
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि जब मारकेश बनता है, तो वह जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण और गहरे प्रभाव छोड़ता है. यह ग्रह जहां एक ओर जीवन की कठिनतम परीक्षाएं लाता है, वहीं दूसरी ओर आत्मबोध, संयम और दीर्घकालिक विकास भी देता है. इसके प्रभाव को केवल डरकर नहीं, बल्कि समझकर, कर्म सुधार कर और उचित उपाय करके संतुलित किया जा सकता है. धनु, मकर, कर्क और सिंह लग्नों में शनि की स्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव देती है, परंतु यदि यह मार्केश बनता है तो व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए, विशेष रूप से शनि की दशा, अंतरदशा या साढ़ेसाती में.
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