भारतीय संसद में शपथ ग्रहण के दौरान धार्मिक उद्घोष और राजनीतिक विवादों का माहौल सदैव ही चर्चा का विषय रहता है। हाल ही में लोकसभा में सांसदों के शपथ ग्रहण के दूसरे दिन ऐसा ही एक घटनाक्रम देखने को मिला, जब भारतीय जनता पार्टी के ‘जय श्री राम’ के नारों ने माहौल को गरमा दिया। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी ने अयोध्या फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र से अपने सांसद का प्रदर्शन करते हुए भाजपा के उत्साह को कुछ ठंडा कर दिया। वहीं, आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी द्वारा फिलिस्तीन का समर्थन करने से एक नया विवाद खड़ा हो गया। -Religious Parliament news
यह घटनाक्रम कई सवाल उठाता है – क्या संसद में धार्मिक उद्घोषों का स्थान होना चाहिए? क्या यह संविधान के खिलाफ है? ऐसे उद्घोषों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव क्या हो सकता है? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए हमें इस पूरे मुद्दे की गहराई में जाना होगा।
नमस्कार आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़। –Religious Parliament news
पिछले दिनों लोकसभा में सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान धार्मिक उद्घोषों और राजनीतिक नाटकों का सिलसिला जारी रहा। भाजपा के ‘जय श्री राम’ के नारों ने माहौल को गरमा दिया। यह नारे विशेषकर उस समय जोर पकड़ गए जब AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ ग्रहण के बाद फिलिस्तीन का समर्थन किया। इससे भाजपा के सदस्यों में नाराजगी फैल गई और विवाद बढ़ गया।
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब ओवैसी ने शपथ लेने के बाद फिलिस्तीन का समर्थन किया। भाजपा की सांसद शोभा करंदलाजे और उनके साथी इस पर आपत्ति जताते हुए विरोध करने लगे। हालांकि, अध्यक्ष राधा मोहन सिंह ने स्पष्ट किया कि केवल शपथ ही रिकॉर्ड में जाएगी और सदस्यों से शांति बनाए रखने का आग्रह किया।
शपथ ग्रहण के दौरान भाजपा के सदस्यों ने ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए। जब ओवैसी का नाम पुकारा गया, तो भाजपा के सदस्य इस तरह के नारे लगाकर उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की। इसके जवाब में सपा के सांसद धर्मेंद्र यादव ने ‘जय अवधेश’ का नारा लगाकर माहौल को हल्का कर दिया, जिससे सदन में हंसी-ठिठोली का माहौल बन गया।-Religious Parliament news
इसके अलावा, मणिपुर से आए सांसद अल्फ्रेड केन-एनगाम आर्थर और बिमोल अकोइजम के शपथ ग्रहण के दौरान विपक्ष ने “मणिपुर, मणिपुर” के नारों के साथ “न्याय चाहिए” की मांग की। यह नारे मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए लगाए गए थे।
आपको बता दे कि इस घटनाक्रम का विश्लेषण करने के लिए हमें कई पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। सबसे पहले, संसद में धार्मिक उद्घोषों का स्थान और इसका संविधान पर प्रभाव। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन संसद जैसे संस्थान में धार्मिक नारों का उपयोग संवेदनशील मुद्दा बन सकता है।
हालाँकि संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि संसद में धार्मिक नारों का उपयोग उचित है। संसद एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान है, जहां सभी धर्मों के लोगों का सम्मान होना चाहिए। धार्मिक नारों का उपयोग संविधान की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ हो सकता है।-Religious Parliament news
वही भाजपा द्वारा ‘जय श्री राम’ के नारों का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया गया। यह नारे उनके समर्थकों को खुश करने और विपक्ष को चुनौती देने के लिए लगाए गए। वहीं, ओवैसी द्वारा फिलिस्तीन का समर्थन भी एक राजनीतिक चाल थी, जिससे वे अपने समर्थकों का ध्यान आकर्षित कर सके।
वैसे इस प्रकार के धार्मिक उद्घोष समाज में विभाजन को बढ़ावा दे सकते हैं। इससे धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक हो सकता है। संसद में इस तरह की घटनाएं देश के आम नागरिकों के बीच भी तनाव पैदा कर सकती हैं।
आपको बता दे कि धार्मिक नारों का संसद में उपयोग कोई नई बात नहीं है। भारतीय राजनीति में धार्मिक उद्घोषों का इतिहास पुराना है। भाजपा ने हमेशा से ही ‘जय श्री राम’ के नारे का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया है।
1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान ‘जय श्री राम’ का नारा प्रमुखता से उभरा। इस नारे ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत पहचान दिलाई। हालांकि, इस नारे ने समाज में ध्रुवीकरण भी बढ़ाया और कई बार हिंसक घटनाएं भी हुईं।
ओवैसी का फिलिस्तीन का समर्थन भी इसी प्रकार का एक उदाहरण है, जहां धार्मिक मुद्दों का राजनीतिकरण किया गया। ओवैसी ने अपने मुस्लिम समर्थकों को ध्यान में रखते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया, जिससे वे उनके बीच अपनी लोकप्रियता बनाए रख सके।
इसी तरह भारत में राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक नारों का उपयोग कई बार हुआ है।
जैसे 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान ‘जय श्री राम’ के नारों का व्यापक उपयोग हुआ। इस आंदोलन ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान दिलाया, लेकिन इससे देश में सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ा।
वैसे हाल के वर्षों में गौ रक्षा के नाम पर कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां धार्मिक नारों का उपयोग कर हिंसा को बढ़ावा दिया गया।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध के दौरान धार्मिक नारों का उपयोग हुआ। मुस्लिम समुदाय ने ‘ला इलाहा इलल्लाह’ जैसे नारों का उपयोग किया, जिससे धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ा।
तो इस तरह संसद में धार्मिक नारों का उपयोग संवेदनशील मुद्दा है। यह संविधान की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ हो सकता है और समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है। राजनीतिक दलों को अपने समर्थकों को खुश करने के लिए धार्मिक नारों का उपयोग करने से बचना चाहिए।
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