देश में लागू हुआ one country, one election का प्रस्ताव तो जानें कैसे होंगे चुनाव ?
- क्या है ‘one country, one election’
one country, one election का मुद्दा काफी पुराना है, लेकिन केंद्र की बीजेपी सरकार 2024 के चुनाव से पहले इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। one country, one election के अंतर्गत लोकसभा (भारतीय संसद के निचले सदन) और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। जिसका मतलब है कि पूरे देश में चुनाव एक ही चरण में कराए जाएंगे। मौजूदा समय की बात की जाए तो हर पांच साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए हर 3 से 5 साल में चुनाव होते हैं। तो आइये इस रिपोर्ट के जरिए जानते हैं कि क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव और क्या होगा इससे फायदा ?
- क्या होगा फायदा?
इस कानून को बनाने के लि सरकार ने जिस समिति का गठन किया है, उसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर तर्क दिया जाता है कि इस कानून से चुनाव में होने वाले खर्च पर कमी आएगी। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो साल 2019 के लोकसभा चुनावों में करीब- करीब 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव कराने वाला चुनाव आयोग का खर्च और चुनाव में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों का खर्च शामिल है। इसके साथ ही एक साथ चुनाव कराने के समर्थकों का कहना है कि इससे संपूर्ण देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षमता बढ़ेगी। हालांकि, पीएम मोदी कह चुके हैं कि एक देश, एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी
क्या है कानून में संशोधन की आवश्यकता
एक राष्ट, एक चुनाव को लेकर कानूनी दांव पेंच भी उलझे से नजर आते हैं। भले ही 1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में इसका समर्थन किया गया हो, लेकिन 2018 में लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट सामने आई थी। जिसमें सुझाव के तौर पर देश में दो फेज में चुनाव कराने की राय दी गई थी। इस मामले पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बताया था कि देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन का जिक्र किया गया था।
विपक्ष कर रहा आलोचना
केंद्र सरकार ने जहां एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर कमेटी का गठन किया है, वहीं विपक्षी दल सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस, मपका, सपा, समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए इसे संघवाद के लिए खतरा बताया है।
My opinion
one country, one election को लेकर बहस नई नहीं हैं, इससे पहले भी अटल बिहार और सोनिया गांधी के बीच साल 2003 में इस कानून को लेकर सहमति बन गई थी. लेकिन जैसे ही साल 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनी ये मुद्दा कहीं गुम हो गया. अब एक बार फिर 2024 के चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार कानून को लेकर एक्शन मूड में हैं. बहरहाल अब देखना होगा कि क्या विपक्षी गठबंधन के सामने केंद्र की भाजपा इस कानून को पास करा पाएगी और अगर कानून पास हुआ तो भारत के लिए ये कितना फायदेमंद होगा?
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