West Bengal के राजनीतिक घमासान के बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया है। लेकिन क्या यह एक चुनावी चाल है, या एक आंदोलन की शुरुआत? क्या बंगाल की जनता को इससे कोई फायदा होगा, या नुकसान? क्या बीजेपी को इससे कोई चिंता होनी चाहिए, या यह एक बेकार की बात है?”Political Turmoil in West Bengal”
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए, आइए पहले जानते हैं कि ममता बनर्जी ने क्या कहा, और क्यों कहा।
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ममता बनर्जी ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि बंगाल की धैर्य और विनम्रता को इसकी कमजोरी नहीं समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि बोहिरागोतो जमीदारों को 10 मार्च को इसकी याद दिलानी होगी। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे 10 मार्च को ब्रिगेड ग्राउंड पर होने वाली जनगणना सभा में शामिल हों, जो बंगाल के अधिकारों के लिए लड़ने वाली जमीन पर एक ऐतिहासिक घटना होगी।”Political Turmoil in West Bengal”
ममता बनर्जी ने अपनी पोस्ट में बंगाल की गरिमा का जिक्र भी किया है, और कहा है कि बंगाल को केंद्र सरकार द्वारा MNREGA के फंड से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने बंगाल की सांस्कृतिक समृद्धि और धार्मिक सहिष्णुता की तारीफ की है, और कहा है कि बंगाल को बांटने और नुकसान पहुंचाने की कोशिशों के खिलाफ एकजुट होना होगा।
ममता बनर्जी ने पोस्ट में बंगाल के लिए एक सुरक्षित भविष्य के लिए लोगों की आवाज बनने का दावा किया है, और कहा है कि वे बिना लड़े नहीं छोड़ेंगे।”Political Turmoil in West Bengal”
इस पोस्ट को ममता बनर्जी ने तब लिखा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल के दौरे पर थे, और उन्होंने मेट्रो परियोजनाओं का उद्घाटन किया, साथ ही बरासात में महिलाओं की रैली को संबोधित किया।
मोदी ने अपने भाषण में टीएमसी सरकार को संदेशखाली मामले में दोषियों को बचाने का आरोप लगाया, और कहा कि बीजेपी महिलाओं के सशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने टीएमसी शासन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुए अत्याचारों की निंदा की, और टीएमसी नेताओं को लापरवाही और अपने हितों को महिलाओं के हितों से ऊपर रखने का आरोप लगाया।
संदेशखाली में तनाव की वजह टीएमसी के ताकतवर शेख शहजहान और उनके साथियों द्वारा यौन शोषण के आरोप थे, जिसके चलते उनकी गिरफ्तारी और बाद में रिमांड हुआ था।
मोदी वर्तमान में कई राज्यों के दौरे पर हैं, जिसमें West Bengal भी शामिल है, और उनका दौरा 4 मार्च से 6 मार्च तक चलेगा।
इस तरह के राजनीतिक विवादों का असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है, और यह जनता के वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। जनता के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय होता है, जब वे अपने नेताओं के वादों और कार्यों का मूल्यांकन करते हैं और तय करते हैं कि किसे अपना समर्थन देना है।
अंततः, यह जनता के हाथों में होता है कि वे इन राजनीतिक बयानबाजियों को किस तरह से देखते हैं और उनका जवाब कैसे देते हैं। चुनावी चाल हो या आंदोलन की शुरुआत, इसका फैसला जनता के वोट से होगा। चुनावी परिणाम ही बताएंगे कि बंगाल की जनता को इससे क्या फायदा होता है, और क्या बीजेपी को इससे चिंता होनी चाहिए।
इस बीच, West Bengal में लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी तेज हो रही हैं। चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान करने के लिए 7 मार्च को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया है।
चुनाव आयोग के अनुसार, लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई में कई चरणों में होंगे। साथ ही चुनाव आयोग ने कहा कि चुनाव के दौरान कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा, और मतदाताओं को थर्मल स्कैनिंग, सैनिटाइजर और मास्क की व्यवस्था की जाएगी।
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