Parliamentary Suspension: Is it a Strategy to Weaken the Opposition? – AIRR News

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Parliamentary Suspension: Is it a Strategy to Weaken the Opposition? – AIRR News

Parliamentary Suspension: क्या यह विपक्ष को कमजोर करने की रणनीति है? – एआईआरआर न्यूज़

नमस्कार

आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे पर जिसने संसद के साथ साथ पुरे भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया है  कि “क्या सरकार और संसद के अध्यक्षों द्वारा विपक्ष के नेताओं का Parliamentary Suspension, सदन में विपक्ष को कमजोर और अपने पक्ष को प्रबल बनाने की रणनीति है?”

इस सवाल का उत्तर जानने के लिए, हमें इस घटना के पीछे की पृष्ठभूमि, इसके परिणाम और इसके आलोचकों और समर्थकों के तर्कों को समझना होगा। तो चलिए शुरू करते हैं

संसद के शीतकालीन सत्र में, सरकार ने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने का इरादा जताया था, जिनमें से कुछ विवादास्पद थे। इनमें से एक था भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक, 2023, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए कुछ धार्मिक समुदायों के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता था। विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान के धारा 14 और 15 के विरुद्ध है, जो सभी नागरिकों को समानता और भेदभाव के बिना अधिकार प्रदान करती है। विपक्ष ने यह भी कहा कि यह विधेयक देश की सांप्रदायिक एकता को खतरे में डालता है, क्योंकि यह नागरिकता को धर्म के आधार पर देता है।

इसके अलावा, विपक्ष ने संसद की सुरक्षा में चूक के मामले को लेकर भी सरकार पर हमला किया। 13 दिसंबर को, कुछ लोगों ने संसद के अंदर और बाहर हंगामा मचाया, जिसमें वे कनस्तरों से धुआं और रंगीन गैस छोड़ते हुए ‘तानाशाही नहीं चलेगी’ के नारे लगाये थे। विपक्ष ने इसे एक गंभीर सुरक्षा लापरवाही बताया और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे और बयान की मांग की।

आपको बता दे कि सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि विपक्ष बिना बात के हंगामा मचा रहा है, जिससे संसद की कार्यवाही में बाधा पैदा हो रही है। सरकार ने कहा कि विधेयकों को बहस के बाद ही पारित किया जा रहा है और विपक्ष को भी अपनी राय रखने का मौका दिया जा रहा है। सरकार ने यह भी कहा कि संसद की सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों की है और वे इस मामले में कार्रवाई कर रहे हैं।

इसके परिणाम स्वरुप विपक्ष के विरोध और सरकार के अड़े रहने के बीच, संसद में तनाव बढ़ता गया। 14 दिसंबर को, राज्यसभा में भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसके बाद विपक्षी सांसदों ने इस विधेयक को रोकने के लिए सदन में हंगामा मचाया और विधेयक के खिलाफ नारे लगाए। वे विधेयक को वापस लेने और इस पर जनमत संग्रह करने की मांग करते रहे। लेकिन सरकार ने अपनी बहुमत का फायदा उठाते हुए विधेयक को राज्यसभा में भी पारित कर दिया, जो पहले ही लोकसभा में पारित हो चुका था। इससे विपक्ष को एक बड़ा झटका लगा और वे इसे लोकतंत्र के लिए एक काले दिन की घोषणा करने लगे।

15 दिसंबर को ही , विपक्षी सांसदों ने अपने विरोध को और तेज कर दिया और सदन में अध्यक्ष के आसन पर जाकर बैठ गए। वे अपने हाथों में तख्तियां लेकर विधेयक को रद्द करने और गृह मंत्री को इस्तीफा देने की मांग करते रहे। इससे सदन की कार्यवाही बाधित हो गई और अध्यक्ष को सदन को बार-बार स्थगित करना पड़ा। अध्यक्ष ने विपक्षी सांसदों को अपनी सीटों पर जाने और शांति बनाए रखने का आग्रह किया, लेकिन वे इसकी परवाह नहीं किए। अध्यक्ष ने विपक्षी सांसदों को अनुशासनहीनता और सदन के नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और उन्हें चेतावनी दी।

इसके अगले दिन 16 दिसंबर को, विपक्षी सांसदों ने अपना विरोध जारी रखा और सदन में फिर से हंगामा मचाया और नारे लगाए। अध्यक्ष ने इसे असहिष्णुता और अक्षमता का प्रतीक बताया और विपक्षी सांसदों को तुरंत सदन से बाहर निकालने का आदेश दिया। लेकिन सांसदों ने इसका पालन नहीं किया और सदन में ही बैठे रहे।

17 दिसंबर के दिन अध्यक्ष ने विपक्षी सांसदों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और उन्हें सदन से निलंबित कर दिया। लोकसभा में 33 और राज्यसभा में 45 विपक्षी सांसदों को सदन के शेष दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया। इससे पहले भी 14 विपक्षी सांसदों को 13 दिसंबर को Parliamentary Suspension किया गया था। इस तरह, कुल 92 विपक्षी सांसदों को सदन से बाहर कर दिया गया, जो संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ था। इससे विपक्ष की ताकत आधी से भी कम हो गई और सरकार को अपनी मर्जी के अनुसार सदन में विधेयक पारित करने में आसानी हो गई।

आपको बता दे कि इस पर Parliamentary Suspension सांसदों और उनके समर्थको ने कहा कि सरकार ने अपने बहुमत और शक्ति का दुरुपयोग करते हुए विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश की है।  इसका मकसद केवल एक है विपक्ष की आवाज को दबाना और सरकार के द्वारा पेश किए गए विवादित बिलों को बिना चर्चा के पास करना। इसी सत्र में सरकार ने कई ऐसे बिल पास किए हैं जिनका सीधा असर देश की लोकतंत्र, संविधान और न्यायपालिका पर पड़ेगा। जैसे विधेयक संशोधन विधेयक, 2023 इस विधेयक के तहत, राष्ट्रपति को विधेयकों को अनुमोदित करने का अधिकार हासिल था , लेकिन अब राष्ट्रपति को किसी भी विधेयक को वापस भेजने या उसमें सुधार करने का अधिकार नहीं रहेगा। इससे सरकार को अपनी मर्जी के अनुसार कानून बनाने और लागू करने में आसानी होगी। दूसरा विवादित बिल न्यायपालिका संशोधन विधेयक, २०२३ है।  इस विधेयक के तहत, सरकार को उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति और बर्खास्तगी का अधिकार मिलेगा। इसका मतलब है कि सरकार को अपने हितों के अनुरूप जजों को चुनने और हटाने का अधिकार होगा। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ेगा।

इसी तरह संविधान संशोधन विधेयक, २०२३ भी इसी सूची में आता है , जिसके तहत, सरकार को संविधान के कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में परिवर्तन करने का अधिकार मिलेगा।

आपको बता दे की भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५ में में धार्मिक, जातीय, लिंग और जनजाति के आधार पर भेदभाव न करने का प्रावधान है। इस विधेयक के तहत, इस अनुच्छेद में एक नया उप-अनुच्छेद जोड़ा जाएगा, जिसमें लिखा होगा कि सरकार को अपने हितों के लिए किसी भी वर्ग को आरक्षण देने या न देने का अधिकार होगा। इसी तरह अनुच्छेद 19 है। इस अनुच्छेद में नागरिकों को अभिव्यक्ति, संघटन, समाचार-पत्र, रेडियो, टीवी और अन्य संचार माध्यमों का उपयोग करने का अधिकार है। इस विधेयक के तहत, इस अनुच्छेद में एक नया उप-अनुच्छेद जोड़ा जाएगा, जिसमें लिखा होगा कि सरकार को अपने हितों के लिए किसी भी संचार माध्यम को प्रतिबंधित, नियंत्रित या विनियमित करने का अधिकार होगा।

 आपको बता दे कि अनुच्छेद 32 जिसमे सभी भारतीय नागरिकों को संविधान के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। चाहे वो उल्लंघर सरकार के मंत्रियो ने किया हो या मुखिया प्रधान मंत्री ने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका कि जा सकती है के  इस अनुच्छेद को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा। इसका मतलब है कि नागरिकों को संविधान की रक्षा करने का कोई भी माध्यम नहीं रहेगा।

इन बिलों को पास करने के लिए सरकार ने संसद में अपनी बहुमत का फायदा उठाया है। विपक्ष के साथ चर्चा और समझौता की बजाय, सरकार ने उन्हें निलंबित करके उनकी आवाज को दबाने का प्रयास किया है। इससे न केवल संसद की गरिमा और मर्यादा को ठेस पहुंची है, बल्कि देश की लोकतंत्र और संविधान को भी खतरा है।

यह एक गंभीर मुद्दा है, जिसे हर नागरिक को समझना और इसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए। अगर हम इसे अनदेखा करते हैं, तो हम अपने आजादी और अधिकारों को खोने का जोखिम उठा रहे हैं। हमें एकजुट होकर इस तानाशाही का विरोध करना होगा, ताकि हमारा संविधान, न्यायपालिका और संसद सुरक्षित रहें।

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