Pakistan condition will not improve even after getting loan from IMF it has to repay trillions of rupees loan in 2 years

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पाकिस्तान (Pakistan) को इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) से एक बार फिर राहत की उम्मीद मिली है. IMF ने पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर से अधिक का नया बेलआउट पैकेज मंजूर किया है. यह कोई पहला मौका नहीं है, पाकिस्तान ने 1958 से अब तक कुल 24 बार IMF का दरवाज़ा खटखटाया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि बार-बार कर्ज लेने के बाद भी पाकिस्तान की आर्थिक हालत सुधर क्यों नहीं रही?

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का पुराना पैटर्न

1947 में देश बनने के बाद से ही पाकिस्तान लगातार आर्थिक संकटों का सामना कर रहा है. 1947, 1965 और 1971 में भारत से हुए युद्ध, बांग्लादेश का अलग होना और आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता इसकी आर्थिक कमजोरी के बड़े कारण रहे हैं. पाकिस्तान को पहला IMF बेलआउट 1958 में मिला था. तब से लेकर 2024 तक, हर तीसरे साल उसने औसतन एक नया बेलआउट लिया है.

भारत-पाक तनाव के बीच बेलआउट पर सवाल

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया. ऐसे माहौल में पाकिस्तान को IMF से बेलआउट मिलना कई सवाल खड़े करता है. हालांकि IMF का कहना है कि यह निर्णय मौजूदा तनाव से पहले ही लिया गया था, लेकिन इस तरह की मदद की समयबद्धता पर बहस छिड़ गई है.

आंकड़े बताते हैं, पाकिस्तान की स्थिति गंभीर है

2024 के IMF और वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार-

पाकिस्तान का करेंट अकाउंट बैलेंस- -0.5 फीसदी GDP

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)- 0.6 फीसदी GDP

कुल विदेशी भंडार (सोना सहित)- 12.98 बिलियन डॉलर

दूसरे देशों से तुलना कीजिए

भारत के पास रिजर्व- 569.54 बिलियन डॉलर

बांग्लादेश के पास रिजर्व- 46.17 बिलियन डॉलर

अफगानिस्तान के पास रिजर्व- 9.75 बिलियन डॉलर

श्रीलंका के पास रिजर्व- 6.05 बिलियन डॉलर

पाकिस्तान का बढ़ता विदेशी कर्ज

IMF के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर नाइजल क्लार्क ने बेलआउट के बाद कहा, “पाकिस्तान का कर्ज तब तक टिकाऊ माना जा सकता है, जब तक सरकार सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन अगर नीतियों में चूक हुई या बाहरी फंडिंग रुकी, तो मुद्रा संकट और प्राइवेट सेक्टर में गिरावट तय है.” IMF ने इस बार सुधारों पर खास ज़ोर दिया है, खासकर टैक्स सुधार, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और सरकारी खर्चों का प्रबंधन.

आतंकवाद और सेना पर भारी खर्च

विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के पास बार-बार बेलआउट लेने का कारण सिर्फ आर्थिक नीतियों की विफलता नहीं है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं में जनता की भलाई का न होना भी है. आर्थिक सुधारों और बुनियादी सेवाओं की बजाय, सेना और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले ढांचों पर ज़्यादा खर्च किया जा रहा है.

2025 से 2027 के बीच पाकिस्तान पर 130 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकाने का दबाव है. वहीं आने वाले दो वर्षों में पाकिस्तान को IMF, अन्य वैश्विक एजेंसियों और बैंकों को लगभग 130 बिलियन लौटाने हैं, जिसमें से 2025 में ही 30 बिलियन डॉलर और 2027 में 100 बिलियन डॉलर का भुगतान बकाया है. यह आंकड़ा IMF द्वारा दी गई सहायता से कहीं ज़्यादा बड़ा है.

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