Operation Blue Star : ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41 वीं बरसी, Golden Temple में लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे | 41st anniversary of Operation Blue Star, slogans of Khalistan Zindabad raised in Golden Temple

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‘एक झंडे के तले अपनी मांगों की लड़ाई लड़ें’

कौम के नाम संदेश में कहा कि सिख एक झंडे के तले अपनी मांगों की लड़ाई लड़ें। इसके साथ सिख बंदियों और बलवंत सिंह राजोआना की रिहाई की बात करें। अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार जसबीर सिंह रोडे ने कहा कि केंद्र सरकार के पास आज तक यह जवाब नहीं है कि सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर पर हमला क्यों किया गया। खालिस्तान जिंदाबाद के नारे पर कहा कि आज के दिन यह नारा लगना कोई नहीं बात नहीं है।

जत्थेदार ने नहीं किया लोगों को सम्मानित

ऑपरेशन ब्लू स्टार में अकाल तख्त की इमारत को हुए भारी नुकसान के बाद 1998-99 में एक नई इमारत का निर्माण किया गया था। तब से यह पहली बार है कि अकाल तख्त के जत्थेदार ने सिख समुदाय को संबोधित नहीं किया और न ही ऑपरेशन के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों को सम्मानित किया।

दूसरी ओर, सरबत खालसा के नाम से आयोजित सिखों के समागम के दौरान नियुक्त अकाल तख्त के कार्यवाहक स्वयंभू समानांतर जत्थेदार ध्यान सिंह मंड ने अकाल तख्त परिसर के भीतर से समुदाय को अपना संबोधन दिया। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने उन सिख परिवारों को सम्मानित किया, जिन्होंने इस ऑपरेशन में अपने प्रियजनों को खो दिया था।

क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार

अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों की उपस्थिति और जरनैल सिंह भिंडरावाले की गतिविधायां बढ़ने के कारण पंजाब में तनाव में बढ़ रहा था। भिंडरावाले ने 1983 में अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया। उसने सिखों के लिए अलग संप्रभु राष्ट्र की मांग की। पंजाब में अस्थिरता को बढ़ावा दिया। 1 जून 1984 को, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब को सेना के हवाले कर दिया और ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई। इसका उद्देश्य स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकवादियों को खत्म करना था। 5 जून 1984 की शाम को सेना की कार्रवाई शुरू हुई। 6 जून को सेना ने टैंकों का सहारा लिया। 7 जून की सुबह ऑपरेशन समाप्त हुआ। सेना ने इस ऑपरेशन में भिंडरावाले को मार गिराया।

भिंडरावाले की मौत के बाद उसका परिवार

जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत के बाद उसकी पत्नी बिबी प्रीतम कौर ने अपने बेटों को सामान्य जीवन देने की कोशिश की। बच्चों को हिंसा और विवादों से दूर रखा। उन तक खालिस्तान आंदोलन की आंच नहीं आने दी। इशर सिंह और इंद्रजीत सिंह ने भी अपने पिता की तरह उग्रवादी या धार्मिक नेतृत्व की भूमिका निभाने में रुचि नहीं दिखाई। भिंडरावाले के परिवार पर सरकार और खुफिया एजेंसियों की कड़ी नजर थी। यदि उनके बेटों ने खालिस्तान आंदोलन में हिस्सा लेने की कोशिश की होती, तो उन पर तुरंत कार्रवाई हो सकती थी।

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