One Nation, One Election: A New Chapter in Indian Democracy
एक राष्ट्र, एक चुनाव: Indian Democracy में एक नया अध्याय
नमस्कार
भारत में चुनाव का मौसम कभी खत्म नहीं होता है। हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा के चुनाव होते हैं, जिनमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तकराव होता है। इसके अलावा, पांच साल में एक बार लोकसभा का चुनाव होता है, जिसमें देश के सभी राज्यों के मतदाता अपने वोट देते हैं। इन चुनावों के दौरान, देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन और सुरक्षा पर असर पड़ता है। चुनावी अभियान, आदर्श आचार संहिता, चुनावी खर्च, चुनावी नतीजे और गठबंधनों का खेल देश के लोकतंत्र की तस्वीर बनाते हैं।
इसी तस्वीर को बदलने का प्रयास कर रहे हैं कुछ राजनीतिक और सामाजिक दल, जो एक देश, एक चुनाव की मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही दिन या एक ही चरण में कराए जाएं, जिससे चुनावों की आवृत्ति, खर्च, बोझ और प्रभाव को कम किया जा सके। इनका दावा है कि इससे देश के विकास और Indian Democracy को बल मिलेगा।
आपको बता दे कि इस विचार को पहली बार वर्ष 1983 में चुनाव आयोग ने उठाया था, जब वह लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को समकालीन बनाने का सुझाव देते हुए कहा था कि इससे चुनावी व्यवस्था को सुगम और सरल बनाया जा सकता है। इसके बाद भी इस विषय पर कई बार चर्चा हुई है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र सरकार इस नीति को लागू करने के लिए जोर दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नीति का समर्थन करते हुए कहा है कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
इस नीति के समर्थकों के अनुसार एक देश, एक चुनाव के अनेक फायदे हैं, जिसमे चुनाव की वित्तीय लागत कम होने के साथ साथ देश का बजट संतुलित होगा। देश में चुनाव एक बार में ही होने से शासन को अधिक समय और अवसर मिलेंगे। जिससे नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए, चुनाव के दौरान प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा, जिससे उनकी कार्यप्रणाली में सुधार होगा। चुनाव के दौरान देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, जैसे कि पेट्रोल, डीजल और गैस के दामों में उछाल, बाजारों में अशांति, जनता के हितो से जुड़े मामले आदि।चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का आपसी सहयोग और समझौता बढ़ेगा, जिससे देश की राजनीतिक व्यवस्था में स्थिरता और विश्वसनीयता आएगी।चुनाव के दौरान मतदाताओं का उत्साह और जागरूकता बढ़ेगी, जिससे चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी और पारदर्शिता बढ़ेगी।
इसके विपरीत, इस नीति के विरोधीयों के अनुसार, एक देश, एक चुनाव के चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभाव बढ़ जाएगा, जिससे राज्यों की स्थानीय मुद्दों, विशेषताओं, विविधताओं और आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाएगा। चुनाव के दौरान राज्य सरकारों की स्वायत्तता और जिम्मेदारी पर प्रभाव पड़ेगा, जिससे उनका लोकतंत्र के प्रति समर्पण कम होगा। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का आपसी टकराव और विरोध बढ़ेगा, जिससे देश की राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता और अविश्वसनीयता आएगी। चुनाव के दौरान मतदाताओं का भ्रम और भ्रष्टाचार बढ़ेगा, जिससे चुनावी प्रक्रिया में अभिव्यक्ति और निष्पक्षता कम होगी।चुनाव के दौरान देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, बल्कि नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि पेट्रोल, डीजल और गैस के दामों में बढ़ोतरी, बाजारों में अस्थिरता, साथ ही जनता से जुड़े मामले आदि।
इस प्रकार, एक देश, एक चुनाव नीति एक ऐसी विचारधारा है, जिसके बारे में देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वर्गों में विभिन्न मत हैं। इस नीति को लागू करने के लिए संविधान, लोकतंत्र के प्रतिनिधित्व का अधिकार और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में कुछ बदलाव की जरूरत होगी, जिसके लिए सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति बनाई है, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। इस नीति के बारे में चर्चा करने के लिए, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक ‘अनौपचारिक’ बैठक हुई , जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों और अधिकारियों ने हिस्सा लिया ।
इस बैठक में, इस नीति के पक्ष और विपक्ष के तर्कों का समीक्षा किया गया , और इसके लागू होने की संभावना और चुनौतियों का आकलन किया गया । इस बैठक का उद्देश्य इस नीति को लेकर देश में चल रही विवाद को शांत करना और एक सहमति बनाना रहा।
आपको बता दे कि इस नीति के बारे में जनता का क्या विचार है, इसका पता लगाने के लिए चुनाव आयोग ने एक ऑनलाइन सर्वे शुरू किया है, जिसमें लोग अपनी राय दे सकते हैं। इस सर्वे का लिंक चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है। इस सर्वे का परिणाम अगले महीने जारी किया जाएगा।
इस प्रकार, “एक देश, एक चुनाव” नीति का विचार Indian Democracy में एक नया अध्याय खोल सकता है। इसके लागू होने से पहले, इसके प्रभावों और परिणामों का गहन अध्ययन और विचारविमर्श आवश्यक है। इसके लिए, सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, विशेषज्ञों और नागरिकों को इसमें सहभागी होना होगा। चुनाव आयोग का ऑनलाइन सर्वे इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे जनता की राय जुटाई जा सकती है। इसके परिणामों का इंतजार है। इसके अलावा, इस बैठक में इस नीति के बारे में और अधिक चर्चा कि होगी । इसके नतीजे और प्रभावों को देखते हुए, इस नीति के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाएगा। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए, हमारे साथ बने रहें।
धन्यवाद।
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