भारतीय लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक लोकसभा अध्यक्ष का पद है। यह वह पद है जो सदन की कार्यवाही को संचालित करता है और संसद में नियमों का पालन सुनिश्चित करता है। इस पद के लिए चुनाव बहुत ही दुर्लभ होते हैं क्योंकि परंपरागत रूप से, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच सहमति से लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चयन किया जाता है। लेकिन इस बार, दशकों बाद, लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है क्योंकि बीजेपी-नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और कांग्रेस-नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई है।-Om Birla poltical news
इस चुनाव में कांग्रेस ने कोडिकुन्निल Suresh को अपने उम्मीदवार के रूप में पेश किया है जबकि बीजेपी ने ओम बिड़ला को नामांकित किया है। यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय राजनीति में दलों के बीच बढ़ते तनाव और विभाजन को दर्शाता है। इससे कई सवाल उठते हैं: क्या यह चुनाव भारतीय लोकतंत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा? क्या विपक्ष इस बार अपना उम्मीदवार सफलतापूर्वक चुनवा पाएगा? और सबसे महत्वपूर्ण, लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुने गए व्यक्ति का भारतीय संसद की कार्यप्रणाली पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।
लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण घटना है। परंपरागत रूप से, लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चयन सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच सहमति से किया जाता है। लेकिन इस बार, दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बन पाई, जिसके कारण चुनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है। –Om Birla poltical news
कांग्रेस ने कोडिकुन्निल Suresh को लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए अपने उम्मीदवार के रूप में नामांकित किया है। Suresh कांग्रेस के सांसद और कांग्रेस संसदीय दल के मुख्य सचेतक हैं। Suresh का जन्म कोडिकुन्निल, तिरुवनंतपुरम में हुआ था। उन्हें पहली बार 1989 में लोकसभा के लिए चुना गया था और उसके बाद उन्होंने 1991, 1996 और 1999 के आम चुनावों में लगातार चार बार अडूर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की। हालांकि, उन्हें 1998 और 2004 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था।
2009 में, Suresh ने मावेलिकरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की, लेकिन केरल उच्च न्यायालय ने उनके जाति प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए उनकी जीत को शून्य घोषित कर दिया। बाद में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया। 2018 में, Suresh को केरल प्रदेश कांग्रेस समिति यानि KPCC का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने श्रम और रोजगार राज्य मंत्री के रूप में भी सेवा दी है और वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति AICC के सचिव भी रह चुके हैं।-Om Birla poltical news
दूसरी तरफ बीजेपी ने ओम बिड़ला को अपने उम्मीदवार के रूप में पेश किया है। बिड़ला वर्तमान में लोकसभा अध्यक्ष हैं और उनके पास कम से कम 293 सांसदों का समर्थन है। उनके मुकाबले इंडिया ब्लॉक के पास 233 सदस्य हैं। रिपोर्टों के अनुसार, तीन स्वतंत्र सदस्य विपक्ष का समर्थन कर सकते हैं। तृणमूल कांग्रेस, जो इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है, ने Suresh की नामांकन प्रक्रिया में सलाह नहीं लेने पर निराशा व्यक्त की है।
वैसे लोकसभा अध्यक्ष का पद भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पद सदन की कार्यवाही को संचालित करने, बहस को नियंत्रित करने, और संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है। लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है और वे संसद की गरिमा और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं। –Om Birla poltical news
इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव केवल तीन बार हुआ है – 1952, 1967, और 1976 में। इस बार, सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के बीच सहमति न बन पाने के कारण चुनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।
आपको बता दे कि लोकसभा अध्यक्ष पद के चुनाव का यह घटनाक्रम कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। आइए, इस घटनाक्रम का विस्तार से विश्लेषण करें।
बीजेपी और कांग्रेस के बीच बढ़ती असहमति और तनाव को इस चुनाव ने उजागर किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है।
हालाँकि लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इससे संसद में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है। ऐसे में विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में कोडिकुन्निल Suresh की नामांकन से यह संदेश जाता है कि विपक्ष भी संसदीय प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तथा लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव संसदीय गरिमा को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि संसद की कार्यवाही निष्पक्ष और व्यवस्थित हो।
इसी तरह लोकसभा अध्यक्ष पद का चुनाव भारतीय संसदीय इतिहास में दुर्लभ घटनाओं में से एक है। 1952 में, जब पहला लोकसभा चुनाव हुआ, तब भी लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ था। 1967 और 1976 में भी ऐसा ही हुआ।
इन चुनावों का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। 1952 में, गणेश वासुदेव मावलंकर को लोकसभा का पहला अध्यक्ष चुना गया था। उनका कार्यकाल भारतीय संसदीय प्रक्रियाओं के लिए मानक स्थापित करने में महत्वपूर्ण था।
1967 में, नीलम संजीव रेड्डी को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। उनका कार्यकाल संसदीय नियमों और प्रक्रियाओं के पालन के लिए महत्वपूर्ण था।
1976 में, बलिराम भगत को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। उनका कार्यकाल भी भारतीय संसद के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ।
तो इस तरह लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। यह न केवल संसदीय प्रक्रियाओं को सशक्त बनाता है, बल्कि लोकतंत्र की मूलभूत सिद्धांतों को भी मजबूत करता है।
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