अभी तक आपने Nitish Kumar के राजनितिक गठबंधनों को जाना है आज कि इस कड़ी में हम उनके बारे में और भी जानकारिया सांझा करेंगे। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
Nitish Kumar और इस गठबंधन का उद्देश्य था कि बिहार में विकास, सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जाए, और बीजेपी की जो नीतियां बिहार के लोगों के हितों के विरुद्ध थीं, उनका विरोध किया जाए। लेकिन, इस गठबंधन में शुरू से ही कुछ अंतरंग विवाद रहे, जो धीरे-धीरे बाहर आने लगे। जैसे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच व्यक्तिगत और राजनीतिक मतभेद, जो कई मुद्दों पर जाहिर हुए, जैसे कि नोटबंदी, राष्ट्रपति चुनाव, गोरक्षा, दारूबंदी, आरक्षण , लालू प्रसाद यादव के परिवार के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, जिनमें तेजश्वी यादव और तेज प्रताप यादव भी शामिल थे। इन आरोपों के चलते, सीबीआई और आयकर विभाग ने उनके घरों और दफ्तरों पर छापेमारी की, और उन्हें अदालत में पेश करने का आदेश दिया।
जिसकी वजह से Nitish Kumar ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को राजद के साथ साझा मंच पर नहीं जाने का निर्देश, जिससे उनके बीच की दूरी और बढ़ गई। साथ ही राजद के द्वारा अपने कार्यक्रमों और रैलियों में बीजेपी और मोदी के खिलाफ तीखी आलोचना करना, जिससे नीतीश कुमार को असहज महसूस हुआ, क्योंकि वे मोदी के प्रति अपनी पुरानी दुश्मनी को भूल चुके थे, और उनके साथ कुछ मुद्दों पर सहमत भी थे। इसके अलावा राजद के द्वारा अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को नीतीश कुमार के नेतृत्व और नीतियों को चुनौती देने का आदेश, जिससे उनके बीच का विश्वासघात बढ़ गया।
इन सबके बीच, बीजेपी ने Nitish Kumar को अपने साथ लाने के लिए कई बार प्रयास किए, और उन्हें अपना पुराना साथी बताया। बीजेपी ने यह भी कहा कि अगर नीतीश कुमार एनडीए में वापस आते हैं, तो वे उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करेंगे, और उनके साथ मिलकर बिहार का विकास करेंगे।
इस पूरे मामले में Nitish Kumar का रुख बेहद अनिश्चित रहा है। वे अपने गठबंधन साथियों के साथ अक्सर टकराव में रहे हैं, और उन्होंने अपनी पार्टी को भी अलग रखा है। वे अपने नेतृत्व को बचाने के लिए कई बार अपने पाले को बदलते रहे हैं, और उनके फैसलों को विकास और भ्रष्टाचार के नाम पर जुस्टिफाई करने की कोशिश करते रहे। लेकिन, उनके इस राजनीतिक खेल ने उन्हें ना तो अपने साथियों का समर्थन दिलाया, और ना ही जनता का विश्वास।
आपको बता दे कि बिहार में महागठबंधन का अंत जुलाई 2017 में हुआ, जब नीतीश कुमार ने अपने उपमुख्यमंत्री तेजश्वी यादव को इस्तीफा देने की मांग की, जिसे लालू यादव ने खारिज कर दिया। इसके बाद, Nitish Kumar ने अपनी सरकार को खत्म कर दिया, और फिर से एनडीए में शामिल होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाई। इस फैसले से उन्हें गठबंधन के अन्य साथियों का विरोध और जनता का आक्रोश झेलना पड़ा। उन्हें गद्दार, दलबदलू और विश्वासघाती के रूप में देखा गया।
इसके बाद, बिहार में राजनीतिक स्थिति में कई बदलाव हुए। लालू यादव को चारा घोटाले में कई बार सजा हुई, और वे जेल में बंद हो गए। उनके बेटे तेजश्वी यादव ने आरजेडी का नेतृत्व संभाला, और उन्होंने Nitish Kumar के खिलाफ तेज विपक्ष की भूमिका निभाई। उन्होंने बीजेपी और एनडीए के खिलाफ भी जन आंदोलन चलाए, और उनके नीतियों को आलोचना की। उन्होंने कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और अन्य छोटे-बड़े दलों के साथ मिलकर गठबंधन बनाया, जिसका उद्देश्य था कि बीजेपी और एनडीए को बिहार में हराया जाए।
इस दौरान, Nitish Kumar की सरकार में भी कई समस्याएं आईं। उनके साथी बीजेपी ने उन्हें कई मुद्दों पर दबाव डाला, जैसे कि नागरिकता संशोधन कानून, राम मंदिर, आरक्षण, दारूबंदी आदि। उन्हें अपनी पार्टी के कुछ विधायकों और मंत्रियों को भी बदलना पड़ा, जो उनके खिलाफ बोल रहे थे। उन्हें अपने विकास के नारों को भी बदलना पड़ा, जो जनता को प्रभावित नहीं कर रहे थे। उन्हें अपने पूर्व साथियों के आरोपों का भी जवाब देना पड़ा, जो उन्हें विश्वासघाती और दलबदलू कह रहे थे।
इस प्रकार, बिहार में महागठबंधन का इतिहास एक रोचक और रोमांचक राजनीतिक कहानी है, जिसमें Nitish Kumar का मुख्य किरदार है। जो अपने राजनीतिक जीवन को बचाने के लिए कभी भी गठबंधन बदलने को तैयार रहे हैं, और उन्होंने अपने विचारों और सिद्धांतों को भी लचीला बनाया है। उन्होंने अपने विरोधियों को भी अपने साथ लाने की कोशिश की है, लेकिन उन्हें उनका साथ नहीं मिला है। उन्होंने अपने अनुभव और लोकप्रियता का भी फायदा उठाया है, लेकिन उन्हें जनता का भरोसा बनाए रखने में असफलता हुई है।
बिहार में महागठबंधन का भविष्य अभी भी अनिश्चित है, क्योंकि उसमें शामिल दलों के बीच अंतर मत और घर्षण बरकरार है। नीतीश कुमार को अपने गठबंधन साथियों के साथ समन्वय बनाने में कठिनाई हो रही है, और वे अपने नेतृत्व को भी खो रहे हैं। उनके विपक्ष में तेजश्वी यादव ने अपनी ताक़त बढ़ाई है, और वे उन्हें चुनौती दे रहे हैं। बीजेपी और एनडीए का भी दबाव बढ़ा है, और वे उन्हें अपनी शर्तों पर लाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस तरह,Nitish Kumar का राजनीतिक भविष्य भी अनिश्चित है, और वे अपने फैसलों के लिए जिम्मेदार होंगे। वे अपने राजनीतिक खेल को जारी रख सकते हैं, या फिर अपने गठबंधन को मजबूत बनाने के लिए कुछ नए कदम उठा सकते हैं। वे अपने विकास के नारों को भी नए रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं, या फिर अपने भ्रष्टाचार के आरोपों को साफ़ कर सकते हैं। वे अपने विरोधियों के साथ समझौता कर सकते हैं, या फिर उनके खिलाफ और तेज़ हो सकते हैं। वे अपने नेतृत्व को बचाने के लिए अपने स्थान को फिर से बदल सकते हैं, या फिर अपने स्थान पर कायम रह सकते हैं।
बिहार में महागठबंधन का इतिहास एक रोचक और रोमांचक राजनीतिक कहानी है, जिसमें Nitish Kumar का मुख्य किरदार है। वे अपने राजनीतिक जीवन का अंतिम अध्याय लिखने के लिए तैयार हैं, या फिर अपनी कहानी को एक नया मोड़ देने के लिए।
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