New Criminal Law Bills: An Analysis of the Indian Judicial System – AIRR News
नए आपराधिक New Criminal Law : भारतीय न्यायिक प्रणाली का एक विश्लेषण – एआईआरआर न्यूज़
नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
लोकसभा में पेश किए गए तीन नए New Criminal Law बिल, जो भारतीय दंड संहिता , दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने का प्रयास हैं, देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार लाने का दावा करते हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने इन बिलों को पेश करते हुए कहा कि ये बिल भारत की भारतीयता, संविधान और जनता की चिंता को दर्शाते हैं। लेकिन क्या ये बिल वास्तव में न्याय की प्रक्रिया को आसान, तेज और सुशासित बनाने में सक्षम हैं? या फिर ये बिल नागरिकों के मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता और विविधता को खतरे में डालते हैं?
इन बिलों का मुख्य उद्देश्य आपराधिक कानूनों को आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाना है। इन बिलों में कुछ नए प्रावधान और परिभाषाएं शामिल कि गई है , जैसे आतंकवाद की परिभाषा को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में अब वो सभी कार्य आएंगे, जो देश की संप्रभुता, अखंडता या एकता को खतरे में डालते हैं, या जो देश के विरुद्ध युद्ध करने या देश को विभाजित करने का उद्देश्य रखते हैं, या जो जनता में आतंक फैलाने के लिए हिंसा, उग्रवाद, बम विस्फोट, हत्या, अपहरण, आगजनी या अन्य अवैध साधनों का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, आतंकवादी संगठनों के साथ संपर्क, सहयोग, आर्थिक सहायता, प्रचार, भर्ती या प्रशिक्षण देना या लेना भी आतंकवाद के अंतर्गत आएगा। अब आतंकवाद के लिए न्यूनतम सजा 5 वर्ष और अधिकतम सजा मृत्यु दंड है।
इसी तरह राजद्रोह का नाम बदला गया है। भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह का नाम देशद्रोह में बदल दिया गया है। देशद्रोह के तहत वो सभी कार्य आएंगे, जो देश के विरुद्ध युद्ध करने, देश को विभाजित करने, देश की संप्रभुता, अखंडता या एकता को खतरे में डालने, देश के विरोध में विदेशी शक्तियों के साथ मिलने, देश के विरोध में शासन को बदलने या अवरुद्ध करने, देश के विरोध में दंगा, विद्रोह, बगावत या अन्य अवैध साधनों का इस्तेमाल करने का उद्देश्य रखते हैं। देशद्रोह के लिए न्यूनतम सजा 7 वर्ष और अधिकतम सजा मृत्यु दंड की गई है।
BNSS में हिरासत के इस्तेमाल पर कुछ बदलाव किए गए हैं। अब पुलिस आरोपियों को 15 नहीं 90 दिन कस्टडी में रख सकेगी, जो कि आपराधिक प्रक्रिया को तेज करने का एक प्रयास माना जाता है।
आपको बता दे की भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में अभी लाखो आपराधिक मामले लंबित है और इन्ही लंबित मामलो के त्वरित निपटारे के लिए BNS में कुछ अन्य उपाय भी शामिल किये गए हैं, जैसे कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाहों का सुनवाई, अपराधों के लिए न्यायिक पुनरावलोकन की अवधि को कम करना, अपराधों के लिए न्यायिक प्रतिबंध की अवधि को बढ़ाना, आरोपियों को बेल पर रिहा करने के लिए नए नियम बनाना, आदि।
इसके अलावा नागरिक अधिकारों का संरक्षण भी महत्वपूर्ण बिंदु है और इसके लिए BNS में नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए कुछ प्रावधान भी जोड़े गए हैं।
जैसे अब अपराधी और अभियोगी को समान अधिकार और सुविधाएं मिलेंगी, जैसे कि वकील की सेवा, गवाहों को पूछताछ करने का अधिकार, न्यायिक प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार, आदि।
जिसके तहत अब अपराधी को न्यायिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार होगा, जिसके तहत वह अपने वकील का चयन कर सकेगा, अपने वकील को अपने आरोपों की जानकारी दे सकेगा, अपने वकील के साथ निजी बातचीत कर सकेगा, अपने वकील को अपने लिए गवाहों को बुलवा सकेगा। साथ ही अब अपराधी के साथ मानवीय व्यवहार किया जाएगा, जिसके तहत उसे अपमानजनक, अत्याचारी या अनुचित व्यवहार का शिकार नहीं होने दिया जाएगा, उसे अपने धर्म, जाति, लिंग, वर्ग, भाषा, राजनीति, विचार या अन्य आधारों पर भेदभाव नहीं किया जाएगा, उसे अपनी सेहत, सुरक्षा और पोषण का ध्यान रखा जाएगा, उसे अपने परिवार, दोस्तों या अन्य लोगों से संपर्क करने की अनुमति दी जाएगी।
आपको बता दे कि इन बिलों को पेश करने का मुख्य तर्क यह है कि ये बिल भारत की New Criminal Law प्रणाली को आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाएंगे। लेकिन क्या ये बिल वास्तव में इस उद्देश्य को पूरा कर पाएंगे? या फिर ये बिल नागरिकों के मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता और विविधता को खतरे में डालते हैं? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें इन बिलों के कुछ पहलुओं को आलोचनात्मक रूप से देखना होगा।
आपको बता दे कि इस संसोधन में आतंकवाद की परिभाषा को विस्तारित करने का उद्देश्य ये लगता है कि आतंकवाद के खिलाफ अधिक सख्ती से कार्रवाई की जा सके। लेकिन यह परिभाषा इतनी व्यापक और अस्पष्ट है कि इसके तहत किसी भी तरह के विरोध, आंदोलन, आक्रोश, असंतोष या अलगाववाद को आतंकवाद के रूप में दर्शाया जा सकता है। इससे नागरिकों के अधिकारों को दबाया जा सके। इसके अलावा राजद्रोह का नाम देशद्रोह में बदलने का उद्देश्य यही है कि देश के विरुद्ध किए गए किसी भी कार्य को गंभीरता से लिया जाए। लेकिन यह नाम बदलने से क्या फर्क पड़ेगा? क्या राजद्रोह और देशद्रोह में कोई अंतर है? क्या राजद्रोह का नाम बदलने से देश की सुरक्षा बढ़ जाएगी? या फिर यह एक नाममात्र का बदलाव है, जो देश के विरोध में बोलने वालों को डराने का एक तरीका है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें राजद्रोह के इतिहास और वर्तमान की परिस्थिति को देखना होगा।
1857 की क्रांति के बाद भारतीयों को शांत रखने का एक उपाय राजद्रोह का कानून, भारत में 1860 में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया था। इस कानून के तहत, किसी भी तरह के राजा, रानी, रियासत, सरकार या शासन के विरुद्ध युद्ध करने वालो की मदद करने, उनका समर्थन करने, उनके लिए चंदा इकट्ठा करने, उनके लिए शस्त्र उठाने, उनके लिए विद्रोह करने, उनके लिए बगावत करने, उनके लिए दंगा फैलाने, उनके लिए अवैध साधनों का इस्तेमाल करने, आदि को राजद्रोह के रूप में माना जाता था। राजद्रोह के लिए न्यूनतम सजा कालापानी और अधिकतम सजा फांसी थी। इस कानून के तहत, अनेक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, राजनेताओं, कवियों, पत्रकारों, विद्वानों, आदि को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार, जेल, या फांसी की सजा दी गई।
वर्तमान भारत में राजद्रोह का कानून अभी भी लागू है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में शामिल है। इस कानून के तहत, किसी भी तरह के शासन, सरकार, राष्ट्र, राज्य, विधान, न्याय, आदि के विरुद्ध घृणा, अवज्ञा, असंतोष, असहमति, आलोचना, विरोध, आंदोलन, आक्रोश, आदि को राजद्रोह के रूप में माना जाता है। राजद्रोह के लिए न्यूनतम सजा 3 वर्ष और अधिकतम सजा उम्रकैद या मृत्यु दंड है। इस कानून के तहत, अनेक भारतीय नागरिकों, राजनेताओं, समाजसेवियों, कवियों, पत्रकारों, विद्यार्थियों, शिक्षकों, आदि को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार, जेल, या उम्रकैद की सजा दी गई है।
बाकि इन बिलों के प्रभाव को समझने के लिए हमें इन बिलों के फायदे और नुकसानो की तुलना करनी होगी।
सबसे पहले इन बिलों के समर्थको ने जो फायदे बताये गए हैं जो कि इन बिलो से New Criminal Law को आधुनिक, सरल और प्रभावी बना दिए गए है। ये बिल आतंकवाद, देशद्रोह और अन्य गंभीर अपराधों के खिलाफ अधिक सख्ती से कार्रवाई करने की क्षमता बढ़ाते हैं। ये बिल न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, न्यायिक पुनरावलोकन, न्यायिक प्रतिबंध, बेल, आदि के माध्यम से नए नियम और उपाय प्रस्तुत करते हैं। ये बिल नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए अपराधी और अभियोगी के बीच समानता, अपराधी के लिए न्यायिक सहायता, अपराधी के लिए मानवीय व्यवहार, आदि के प्रावधानो को जोड़ते हैं।
वैसे इनके आलोचक इन बिलों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता और विविधता के लिए खतरा मानते हैं। क्योंकि ये बिल आतंकवाद और देशद्रोह की परिभाषा को इतना व्यापक और अस्पष्ट बनाते हैं कि इसके तहत किसी भी तरह के विरोध, आंदोलन, आक्रोश, असंतोष या अलगाववाद को आतंकवाद या देशद्रोह के रूप में दर्शाया जा सकता है। ये बिल शासन, सरकार, राष्ट्र, राज्य, विधान, न्याय, आदि के विरुद्ध घृणा, अवज्ञा, असंतोष, असहमति, आलोचना, विरोध, आंदोलन, आक्रोश, आदि को राजद्रोह के रूप में मानते हैं। ये बिल नागरिकों को अपनी राय, विचार, भावना, अभिव्यक्ति, संघर्ष, आदि को व्यक्त करने से रोकते हैं। ये बिल नागरिकों को अपने धर्म, जाति, लिंग, वर्ग, भाषा, राजनीति, विचार, आदि के आधार पर भेदभाव, अत्याचार, अपमान, आदि का शिकार होने का डर बनाए रखते हैं।
तो ये थी हमारी आज की खास वीडियो जिसमे हमने लोकसभा में पेश किए गए तीन नए क्रिमिनल लॉ बिलों का विस्तृत अवलोकन किया है। हमने इन बिलों में क्या नया है के साथ ही इन बिलों का इतिहास और वर्तमान परिस्थिति, इन बिलों के फायदे और नुकसान, आदि के बारे में जानकारी सांझा की है। हमने यह भी जाना है कि ये बिल किस प्रकार से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित करेंगे। हमारा निष्कर्ष यह है कि ये बिल New Criminal Law को आधुनिक, सरल और प्रभावी बनाने का प्रयास करते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों, स्वतंत्रता और विविधता को खतरे में डालते हैं। इसलिए, हमें इन बिलों को समझने, चर्चा करने और सुधारने की जरूरत है, ताकि हम एक न्यायपूर्ण, समावेशी और विकासशील भारत का निर्माण कर सकें। हमें उम्मीद है कि आपको यह वीडियो पसंद आया होगा। अगर आपके पास इस विषय पर कोई विचार या प्रश्न हैं, तो कृपया कमेंट सेक्शन में हमें बताएं। और हां, अगर आपने अभी तक AIRR न्यूज़ चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है, तो कृपया सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं, ताकि आप हमारे नए वीडियो की सूचना प्राप्त कर सकें। धन्यवाद
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