भारत के शिक्षा तंत्र में NCERT की पुस्तकें हमेशा से एक महत्वपूर्ण स्थान रखती आई हैं। इन पुस्तकों को बनाने और सुधारने की प्रक्रिया में कई विद्वानों और शिक्षाविदों का योगदान होता है। हाल ही में, NCERTद्वारा प्रकाशित राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों में कुछ बदलाव किए गए हैं, जिन पर मुख्य सलाहकारों सुहास पाल्शिकर और Yogendra Yadav ने गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि इन पुस्तकों में बिना उनकी अनुमति के किए गए परिवर्तनों के चलते वे अपने नाम को इन पुस्तकों से हटाना चाहते हैं, और यदि ऐसा नहीं होता है तो वे कानूनी कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं।-NCERT Political Books update
इन परिवर्तनों ने ना केवल शिक्षाविदों को, बल्कि आम जनता को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह परिवर्तन वास्तव में आवश्यक थे या फिर ये राजनीतिक एजेंडे के तहत किए गए थे। क्या यह हमारे बच्चों की शिक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्या ऐसे परिवर्तन छात्रों के लिए फायदेमंद हैं या वे उन्हें भ्रामक सूचनाओं की ओर धकेल रहे हैं? आइए, इन सभी सवालों जवाब ढूंढते है। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।-NCERT Political Books update
NCERTद्वारा कक्षा 9 से 12 तक के राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख बदलावों ने विशेषकर सुर्खियाँ बटोरी हैं। सबसे पहले, इन बदलावों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण विवाद उभरकर आया जब इन पुस्तकों के मुख्य सलाहकारों सुहास पाल्शिकर और Yogendra Yadav ने NCERTको पत्र लिखकर अपनी असहमति जताई और अपने नामों को इन पुस्तकों से हटाने की मांग की।-NCERT Political Books update
आपको बता दे कि कक्षा 11 की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक में धर्मनिरपेक्षता के अध्याय में वोट बैंक राजनीति पर एक खंड को पुनः लिखा गया है। पिछले सत्र तक, छात्रों को सिखाया जाता था कि वोट बैंक राजनीति अल्पसंख्यकों के पक्ष में काम नहीं करती है। परन्तु अब छात्रों को सिखाया जाएगा कि भारत में राजनीतिक पार्टियाँ “अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देती हैं” वोट बैंक राजनीति के तहत, जो “अल्पसंख्यक तुष्टीकरण” की ओर ले जाती है। NCERTने इस परिवर्तन को “भारतीय धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिक आलोचना” के रूप में प्रस्तुत किया है।-NCERT Political Books update
वही कक्षा 12 की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक से बाबरी मस्जिद के विध्वंस से संबंधित घटनाओं का उल्लेख हटा दिया गया है। अब पुस्तक में मस्जिद का नाम भी नहीं लिया गया है, बल्कि इसे श्रीराम के जन्मस्थान पर बनी तीन गुंबदों वाली संरचना के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
ऐसे में सुहास पाल्शिकर और Yogendra Yadav, जिन्होंने इन पुस्तकों के मूल संस्करणों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने इन परिवर्तनों पर अपनी गहरी आपत्ति जताई है। उन्होंने NCERTको लिखे अपने पत्र में कहा है कि इन पुस्तकों में किए गए परिवर्तन “अनैतिक, अवैज्ञानिक और अवैध” हैं और यह छात्रों के गुणवत्ता शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी कहा कि NCERTको उनके नाम का उपयोग किए बिना इन पुस्तकों को प्रकाशित करने का कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं है।
आपको बता दे कि NCERTकी राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों में किए गए ये बदलाव केवल शिक्षाविदों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव हमारे समाज और शिक्षा प्रणाली पर पड़ता है। ये बदलाव सिर्फ सामग्री को बदलने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह छात्रों की विचारधारा और सोच को भी प्रभावित करते हैं।
अब NCERTके बदलावों पर उठे विवाद ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शिक्षा का राजनीतिकरण किस हद तक हो सकता है। यह एक चिंताजनक स्थिति है जब शिक्षा को राजनीतिक एजेंडे के तहत तोड़ा-मरोड़ा जाता है।
हालाँकि सुहास पाल्शिकर और Yogendra Yadav जैसे विद्वानों की भूमिका और उनके विरोध ने इस विवाद को और भी गंभीर बना दिया है। ये व्यक्ति केवल शिक्षाविद ही नहीं हैं, बल्कि उनका व्यापक प्रभाव भी है और उनका विरोध इस बात का संकेत है कि परिवर्तन कितना गंभीर और विवादास्पद है।
वैसे शिक्षा का राजनीतिकरण कोई नई बात नहीं है। इतिहास में कई बार शिक्षा को राजनीतिक हितों के तहत मोड़ा गया है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है क्योंकि यह छात्रों की सोच को प्रभावित करता है और उन्हें सही जानकारी से वंचित करता है।
ऐसे में NCERTकी पुस्तकों में किए गए बदलावों का व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। ये बदलाव छात्रों की सोच को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें भ्रामक सूचनाओं की ओर धकेल सकते हैं। इसके अलावा, यह शिक्षाविदों और विद्वानों के बीच एक असंतोष का कारण बन सकता है, जो शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
आपको बता दे कि भारतीय इतिहास की पुस्तकों में पहले भी कई बार परिवर्तन किए गए हैं, जो अक्सर विवाद का कारण बने हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने एजेंडे के तहत इतिहास को मोड़ा है और यह छात्रों के लिए भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है।
नागरिक शिक्षा की पुस्तकों में भी कई बार परिवर्तन किए गए हैं, जिससे छात्रों को लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती है। यह भी एक चिंता का विषय है क्योंकि यह छात्रों की सोच को प्रभावित करता है।
इसके अलावा साहित्यिक पुस्तकों में भी कई बार परिवर्तन किए गए हैं, जिससे छात्रों को साहित्य के वास्तविक महत्व और मूल्य से वंचित किया जाता है। यह भी एक चिंता का विषय है क्योंकि यह छात्रों की सोच और विचारधारा को प्रभावित करता है।
तो इस तरह हमने जाना कि NCERT की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तकों में किए गए परिवर्तन शिक्षा के क्षेत्र में एक गंभीर चिंता का विषय हैं। यह परिवर्तन न केवल छात्रों की सोच को प्रभावित करते हैं, बल्कि यह शिक्षा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। शिक्षाविदों और विद्वानों का विरोध इस बात का संकेत है कि यह परिवर्तन कितना गंभीर है। सरकार और संबंधित अधिकारियों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और इसे हल करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए।
नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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