Nawaz Sharif and India-Pakistan Relations: Can the 2024 Pakistan Elections Bring Change?
नवाज़ शरीफ़ और भारत-पाकिस्तान संबंध: क्या 2024 पाकिस्तान चुनाव बदलाव ला सकते हैं?
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध अब तक कभी भी सरल नहीं रहे हैं। दोनों देशों के बीच विभाजन, कश्मीर, आतंकवाद, युद्ध और परमाणु शक्ति के रूप में उभरने के कारण, दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव, विरोध और विश्वासघात का माहौल रहा है। हालांकि, इसके बावजूद, दोनों देशों के बीच शांति और सहयोग की आशा कभी भी मरी नहीं है। दोनों देशों के नेताओं ने कई बार बातचीत की कोशिश की है, लेकिन वे कभी भी स्थायी रूप से अपने मतभेदों को दूर नहीं कर पाए हैं। क्या 2024 में होने वाले पाकिस्तान के चुनावो से स्थिति में बदलाव आ सकता है?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की भूमिका एक अपवाद और एक उम्मीद के रूप में देखा जा सकता है। नवाज शरीफ ने अपने तीन अलग-अलग कार्यकालों में भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए कई पहल की हैं, जिनमें से कुछ सफल भी रही हैं। नवाज शरीफ के भारत के प्रति सकारात्मक रुख के पीछे के कारण, उनके इतिहास, उनके प्रभाव, उनके चुनौतियों और उनके भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण करने का प्रयास करते हुए, हम यह भी देखेंगे कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता का क्या महत्व है और इसके लिए कौन से कदम उठाए जा सकते हैं।
25 दिसंबर 1949 को लाहौर में एक धनी और प्रभावशाली इंडस्ट्रियलिस्ट परिवार में जन्मे नवाज शरीफ, जिनके पिता मुहम्मद शरीफ का इत्तेफाक ग्रुप नामक से एक बड़ा स्टील का कारोबार था। नवाज शरीफ की शिक्षा सेंट एंथोनी हाई स्कूल से हुई थी और उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी से कला और व्यवसाय की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। साथ ही, लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की । नवाज शरीफ की शादी 1970 में कुलसुम नवाज हुई। उनके चार बच्चे हैं – मरियम, हसन, हुसैन और असमा।
नवाज शरीफ ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1976 में उस समय में पंजाब के मुख्यमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के निजी सचिव के रूप में की। उन्होंने 1981 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग में शामिल होकर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई। उन्होंने 1985 में पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाला और 1988, 1990 और 1997 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकालों में आर्थिक विकास, विदेश नीति, व्यापार, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पर्यावरण, न्याय, राष्ट्रीय सुरक्षा और परमाणु शक्ति के क्षेत्रों में कई योजनाओं और पहलों की शुरुआत की।
नवाज शरीफ के भारत के प्रति सकारात्मक रुख पर हमेशा ही पाकिस्तान में संदेह की नजरो से देखा जाता रहा है। ऐसा ही कुछ हुआ था 1999 में जब नवाज शरीफ ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लाहौर घोषणा की शुरुआत की, जिसमें दोनों देशों ने अपने बीच शांति, सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए संकल्प लिया। इस घोषणा के तहत, दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को शालीनता से हल करने, आतंकवाद को रोकने, व्यापार और संचार को बढ़ाने, सांस्कृतिक और खेल के क्षेत्रों में सहयोग करने और परमाणु अस्त्रों के प्रयोग को रोकने के लिए समझौते किए। यह घोषणा दोनों देशों के बीच एक नई उम्मीद का संकेत था, लेकिन पाकिस्तान के कुछ असामाजिक तत्वों ने 1999 में कारगिल युद्ध से नाकाम कर दिया।
इसके बाद नवाज शरीफ ने 2015 में भी नरेंद्र मोदी के साथ उफ़ा घोषणा की शुरुआत की, जिसमें दोनों देशों ने अपने बीच विश्वास और समझौते को बहाल करने का इरादा जताया। इस घोषणा के तहत, दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को वार्ता के माध्यम से हल करने, आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई करने, व्यापार और संचार को आसान बनाने, बंधुता और भाईचारे को बढ़ाने और परमाणु अस्त्रों के नियंत्रण के लिए सहयोग करने के लिए पहल की। यह घोषणा दोनों देशों के बीच एक नया अध्याय खोलने का आश्वासन देने वाली थी, लेकिन इसे पहले की तरह 2016 में पठानकोट और उरी हमलों ने बिगाड़ दिया।
आपको बता दे कि Nawaz Sharif के भारत के प्रति सकारात्मक रुख को हमेशा कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। जिसमे नवाज शरीफ का अपने देश की सेना और खुफिया एजेंसियों के दबाव और हस्तक्षेप का सामना करना रहा , जो भारत के साथ शांति और सहयोग को बाधित करने के लिए हर संभव प्रयास करती रही हैं। नवाज शरीफ को दो बार परवेज मुशर्रफ और एक बार खाकान अब्बासी के द्वारा प्रधानमंत्री से हटा दिया गया, ताकि शांति वार्ता सफल ना हो, इस सब के पीछे सेना का हाथ माना जाता है।
इसके अलावा Nawaz Sharif को अपने देश के कुछ राजनीतिक और धार्मिक दलों के विरोध और आलोचना का भी सामना करना पड़ा है, जो भारत को दुश्मन और खतरा मानते हैं और उसके साथ किसी भी तरह की बातचीत और समझौते को देशद्रोह के बराबर समझते हैं। इनमें जमात-ए-इस्लामी, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-लब्बाइक या राह-ए-हक की तरह के संगठन शामिल हैं, जो भारत के खिलाफ आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
Nawaz Sharif को अपने देश की जनता के भारत के प्रति अस्वीकार और अविश्वास का भी सामना करना पड़ा है, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद, युद्ध, हमले और घटनाओं के कारण बना हुआ है। Nawaz Sharif को अपनी जनता को भारत के साथ शांति और सहयोग के फायदे और आवश्यकता को समझाने में कठिनाई होती रही है।
इन सबसे अलग हाल ही में शरीफ के भारत के प्रति सकारात्मक रुख पर दिए भाषण और आगामी चुनाव में भविष्य की सम्भावनाओ कि बात करे तो नवाज शरीफ के भारत के प्रति सकारात्मक रुख का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि वे दोनों देशों के बीच शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए एक आवश्यक और वांछनीय व्यक्ति बनेगे। यदि Nawaz Sharif फिर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनते हैं और भारत के साथ अपने सकारात्मक रुख को बरकरार रखते हैं, तो वे दोनों देशों को अपने बीच के विवादों और तनावों को कम करने, अपने आर्थिक और सामाजिक रिश्तों को मजबूत करने, अपने क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ाने और अपने लोगों को एक बेहतर जीवन और भविष्य देने में मदद कर सकते हैं।
साथ ही Nawaz Sharif के भारत के प्रति सकारात्मक रुख की एक और संभावना यह है कि वे दोनों देशों को अपने परमाणु अस्त्रों के नियंत्रण और घटाव के लिए एक साझा जिम्मेदारी और लक्ष्य बना सकते हैं। यदि Nawaz Sharif और भारत के नेतृत्व में दोनों देशों के बीच एक विश्वसनीय और निष्पक्ष वार्ता शुरू होती है, तो वे अपने परमाणु अस्त्रों को कम करने, उनके प्रयोग को रोकने, उनके सुरक्षा और निरीक्षण को सुधारने और उनके निपटान के लिए एक वैश्विक समझौते में शामिल होने के लिए सहमत हो सकते हैं। यह दोनों देशों के लिए एक बड़ा कदम होगा, जो उनके बीच के आपसी विश्वास को बढ़ाएगा और उनके क्षेत्र में एक परमाणु युद्ध की संभावना को कम करेगा।
एक तीसरी संभावना यह भी है कि वे दोनों देशों को अपने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक साथ काम करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। यदि नवाज शरीफ और भारत के नेतृत्व में दोनों देशों के बीच एक खुला और ईमानदार संवाद होता है, तो वे अपने आतंकवादी संगठनों और उनके शाखाओं को पहचानने, उनके नेटवर्क को तोड़ने, उनके फंडिंग और हथियारों को रोकने, उनके शिकारों और पीड़ितों को न्याय और सहायता देने और उनके आगे के हमलों को रोकने के लिए सहयोग कर सकते हैं। यह दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जो उनके लोगों की सुरक्षा और खुशहाली के लिए जरूरी है।
इस प्रकार, Nawaz Sharif के भारत के प्रति सकारात्मक रुख का विश्लेषण करने के बाद, हम यह कह सकते हैं कि वे दोनों देशों के बीच शांति, सहयोग और विकास के लिए एक उम्मीद की किरण हैं। यदि वे अपने रुख को निरंतर रखते हैं और अपने बीच के विश्वास और समझौते को बढ़ाते हैं, तो वे अपने लोगों को एक बेहतर जीवन और भविष्य देने में सक्षम होंगे।
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