भारत के प्रधानमंत्री Narendra Modi के कार्यकाल के 9 साल पूरे होने के साथ ही उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है. कोरोना महामारी, अर्थव्यवस्था में मंदी, किसान आंदोलन, सामाजिक असमानता और साम्प्रदायिक तनाव जैसे मुद्दों ने उनकी चुनौतियों को बढ़ा दिया है। 2024 में होने वाले आम चुनाव में उन्हें अल्पसंख्यक, दलित, मजदूर, किसान और बेरोजगारों के वोटों को जीतने के लिए मेहनत करनी होगी। क्या वे इन वर्गों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा कर पाएंगे? क्या उनके पिछले 10 सालों के कामों का लोगों को फायदा हुआ है? क्या वे अपने विरोधियों को पीछे छोड़ पाएंगे? इन सवालों के जवाब जानने के लिए देखिए हमारा विशेष कार्यक्रम। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।
आज हम बात करेंगे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के 9 साल की सफलताओं और असफलताओं के बारे में। प्रधानमंत्री मोदी 2014 में अच्छे दिन का वादा करके सत्ता में आए और 2019 में उन्होंने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया। उन्होंने देश में कई बड़े बदलाव लाने का प्रयास किया, जैसे कि जन-धन योजना, उज्ज्वला योजना, स्वच्छ भारत अभियान, आयुष्मान भारत योजना, नोटबंदी, GST, आर्टिकल 370 का खात्मा, राम मंदिर निर्माण, चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद, और कोरोना वैक्सीनेशन। लेकिन क्या इन सब कामों से देश की जनता को लाभ मिला है? क्या इन कामों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक न्याय, और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत हुई है?
इसके बारे में हम आपको कुछ तथ्य और आँकड़े बताएंगे, जो मोदी सरकार के कार्यकाल का विश्लेषण करने में मदद करेंगे। हम अर्थव्यवस्था, रोजगार, निर्यात, गरीबी, सामाजिक न्याय, साम्प्रदायिक सद्भाव, राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान देंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
अर्थव्यवस्था
मोदी सरकार के 9 साल में अर्थव्यवस्था का हाल क्या रहा उसे हम कुछ आकड़ो से समझेंगे। मोदी सरकार ने 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डॉलर बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन कोरोना महामारी ने इसे दूर कर दिया है। अब तक भारत की जीडीपी 3 लाख करोड़ डॉलर से कम है, जो 2014 में 2.03 लाख करोड़ डॉलर थी। भारत की जीडीपी वृद्धि दर भी 2014-15 में 7.4% से 2019-20 में 4% तक गिर गई, जो 11 साल का सबसे कम स्तर है। कोरोना के कारण 2020-21 में जीडीपी में 7.3% की गिरावट आई, जो 40 साल का सबसे बुरा प्रदर्शन है। मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी, GST, बढ़ती मुद्रास्फीति, तेल के दामों का उछाल, निवेश में कमी और लॉकडाउन जैसे आर्थिक झटके पड़े हैं।
रोजगार
मोदी सरकार के 9 साल में रोजगार की स्थिति भी बेहद निराशाजनक रही है। मोदी सरकार ने हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था, लेकिन बीते दशक में हर साल केवल 43 लाख नौकरियाँ ही पैदा हुईं, 2017-18 में बेरोज़गारी बीते 45 सालों में सबसे अधिक यानी 6.1% पर थी। CMIE के हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार यह दर तब से अब तक लगभग दोगुनी हो चुकी है। 2021 की शुरुआत से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गँवा चुके हैं, और 7.5 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा पर पहुँच चुके हैं, जिसमे 10 करोड़ का एक तिहाई मध्यम वर्ग का शामिल है। मोदी सरकार के कार्यकाल में मैन्युफ़ैक्चरिंग की नौकरियाँ बीते पाँच सालों में आधी हो चुकी हैं।
निर्यात
मोदी सरकार के 9 साल में भारत का निर्यात भी काफ़ी नहीं बढ़ पाया है। मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य था कि भारत वैश्विक उत्पादन का पावरहाउस बने और अपने निर्यात को बढ़ाए। लेकिन इस पहल का असर निर्यात पर ज्यादा नहीं दिखा। भारत का निर्यात 2014-15 में 310 अरब डॉलर था, जो 2019-20 में 314 अरब डॉलर तक पहुँचा। यानी कि 5 साल में केवल 4 अरब डॉलर का इजाफा हुआ। कोरोना के कारण 2020-21 में निर्यात में 7% की गिरावट आई और यह 291 अरब डॉलर पर आ गया। भारत का निर्यात अपने विकास दर से काफ़ी पीछे है। भारत का निर्यात जीडीपी का 19.8% हिस्सा है, जबकि चीन का 32.1%, वियतनाम का 107.4% और बांग्लादेश का 29.4% है। भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए अपनी उत्पादन योग्यता, उत्पाद की गुणवत्ता, विभिन्न बाजारों में प्रवेश और व्यापार अनुबंधों को सुधारने की ज़रूरत है।
भारत का निर्यात अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले कम है, क्योंकि भारत की उत्पादन लागत उच्च है, भारत की व्यापार नीति अनुकूल नहीं है, भारत के पास विश्वसनीय और विविध उत्पाद नहीं हैं, और भारत को वैश्विक व्यापार में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है। भारत के निर्यात को बढ़ाने के लिए, मोदी सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं, जैसे भारत को विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन निर्यातक बनाने का प्रयास करना। भारत ने कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभाई है और अब तक 95 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की है। भारत का वैक्सीन निर्यात 2021 में 3.6 अरब डॉलर का होने का अनुमान है।
इसका अलावा भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वोकल फॉर लोकल अभियान का उद्देश्य है कि भारतीय उपभोक्ता और उद्यमी अपने देश के उत्पादों को प्राथमिकता दें और भारत की लोकल ब्रांड्स को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाएं। इससे भारत की उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धा और निर्यात बढ़ने की उम्मीद है।
मोदी सरकार का एक और कदम है, भारत को विश्व के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा बाजार में बढ़ाने का प्रयास करना। भारत ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को 2022 तक 175 गीगावाट से बढ़ाकर 2023 तक 450 गीगावाट कर दिया है। भारत ने इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) की स्थापना की है, जो 121 देशों का एक संघ है, जो सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। भारत का नवीकरणीय ऊर्जा निर्यात 2021 में 1.5 अरब डॉलर का होने का अनुमान है।
गरीबी
मोदी सरकार के 9 साल में गरीबी को कम करने के लिए कई पहल की गईं, जैसे जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत योजना, किसान सम्मान निधि योजना आदि। इन योजनाओं का उद्देश्य था कि गरीबों को बैंकिंग, ऊर्जा, स्वास्थ्य और कृषि सुविधाएं प्रदान की जाएं। इन योजनाओं के कारण कुछ हद तक गरीबी में कमी आई, लेकिन यह कमी पर्याप्त नहीं थी। विश्व बैंक के अनुसार, 2014 में भारत में 17.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, जो 2019 में 13.4 करोड़ तक घट गए। यानी कि 5 साल में 3.7 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। लेकिन कोरोना के कारण गरीबी में फिर से वृद्धि हुई। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के अनुसार, 2020 में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए। यानी कि एक साल में 9.6 करोड़ लोग गरीबी में फंस गए। भारत की गरीबी दर 2019 में 9.2% थी, जो 2020 में 15.3% हो गई। इसका मतलब है कि हर सात में से एक भारतीय गरीब है। भारत में गरीबी को कम करने के लिए अपनी आय को बढ़ाने, रोजगार को पैदा करने, शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट को बढ़ावा देने और सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता को विस्तारित करने की ज़रूरत है।
इसके लिए मोदी सरकार ने गरीब कल्याण रोजगार अभियान शुरू लिया। इस अभियान का उद्देश्य है कि कोरोना महामारी के कारण शहरों से गांवों में लौटे श्रमिकों को रोजगार दिया जाए। इस अभियान के तहत 116 जिलों में 25 कार्यों को चुना गया है, जिनमें खेती, वनिकी, जल संरक्षण, गांवीय आवास, डिजिटल भुगतान आदि शामिल हैं। इस अभियान के लिए सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है।
मोदी सरकार की दूसरी योजना है, गरीब कल्याण अन्न योजना जिसका उद्देश्य है कि कोरोना महामारी के कारण आर्थिक तंगी में आए गरीबों को गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अन्न देना शुरू करना। इस योजना का उद्देश्य है कि कोरोना महामारी के कारण आर्थिक तंगी में आए गरीबों को मुफ्त में अनाज उपलब्ध कराया जाए। इस योजना के तहत, 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो चना मुफ्त में दिया जाता है। इस योजना को अब तक तीन बार बढ़ाया गया है। इस योजना के लिए सरकार ने 2.27 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है।
तीसरी योजना के जरिये मोदी सरकार ने श्रमिकों को मनरेगा के माध्यम से रोजगार के अवसर देना सुरु किया। इस अभियान के तहत, श्रमिकों को उनके गांवों में ही रोजगार के अवसर दिए जाते हैं, जिससे वे अपने परिवारों का पालन-पोषण कर सकें। इस अभियान के तहत, 2020-21 में 110.74 करोड़ श्रमिक दिवस बनाए गए और 1.66 लाख करोड़ रुपये का खर्च हुआ। इस अभियान के लिए 2021-22 में 73 हजार करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था। जबकि वर्तमान के आकड़े सरकार ने पेश नहीं किये है।
जीडीपी
GDP या ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट एक देश की अर्थव्यवस्था का मापदंड है, जो एक निश्चित अवधि में उस देश में उत्पादित सभी सामान और सेवाओं का मूल्य बताता है। GDP की वृद्धि दर एक देश की आर्थिक प्रगति को दर्शाती है। मोदी सरकार 2014 में जब सत्ता में आई, तो भारत की GDP की वृद्धि दर 6.4% थी, जो 2016-17 में 8.3% तक पहुँच गई। लेकिन उसके बाद यह धीरे-धीरे घटती गई और 2019-20 में 4% तक आ गई। कोरोना महामारी के कारण 2020-21 में यह -7.3% तक गिर गई, जो भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक संकट था। 2021-22 में RBI ने भारत की GDP की वृद्धि दर का अनुमान 9.5% रखा है, जो कोरोना के दूसरे लहर के बाद घटाया गया है। हालाँकि आगे के आकड़े उपलब्ध नहीं है।
महंगाई
महंगाई या मुद्रास्फीति एक देश की मुद्रा की क्रयशक्ति में गिरावट को दर्शाती है, जो वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि के रूप में प्रकट होती है। महंगाई को मापने के लिए CPI या कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स का उपयोग किया जाता है, जो एक औसत उपभोक्ता के खर्च को दर्शाता है। RBI का लक्ष्य है कि CPI इंफ्लेशन को 4% के आसपास रखना, जिसमें +/- 2% का तोल है। मोदी सरकार के कार्यकाल में महंगाई में उतार-चढ़ाव रहा है, जिसमें कई कारक शामिल हैं, जैसे कि तेल के दाम, खाद्यान्न की कमी, करेंसी बन्दी, GST, कोरोना महामारी आदि। 2014 में महंगाई दर 6.4% थी, जो 2015 में 4.9% तक गिर गई। 2016 में यह 4.5% तक घट गई, लेकिन 2017 में यह 3.6% तक बढ़ गई। 2018 में यह 3.4% तक घट गई, लेकिन 2019 में यह 4.8% तक बढ़ गई। 2020 में यह 6.6% तक पहुँच गई, जो RBI के लक्ष्य सीमा से ऊपर थी। 2021 में RBI ने महंगाई दर का अनुमान 5.7% रखा था , जो अभी भी उच्च है।
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