नागा ‘योद्धा’ संन्यासी जिसकी सेना में थे 6000 नंगे बदन सैनिक और 40 तोपें
आपने दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक उत्सव कुंभ मेले में नागा साधुओं को देखा ही होगा। जाहिर है आपने इन्हें बिल्कुल नग्न, भस्म धारण किए हुए जटाधारी संन्यासी के रूप में देखा होगा। आज हम आपको एक ऐसे ही नागा सन्यासी अनूपगिरी गोसाईं के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका उल्लेख एक दुस्साहसी कमांडर के रूप में मिलता है। नागा साधु अनूपगिरी के पास जटाधारियों की एक प्राइवेट आर्मी थी जिसमें पैदल और घुड़सवार तथा तोपों से लैस नग्न योद्धा शामिल थे जो जंग के मैदान में धावा बोलते थे।
इतिहासकार विलियम आर पिंच ने अपनी किताब वॉरियर एसेटिक्स एंड इंडियन एम्पायर्स में लिखा है कि अनूपगिरी गोसाईं एक योद्धा संन्यासी थे। इतिहासकार पिंच के मुताबिक इन नागा सन्यासियों को सबसे बढ़िया घुड़सवार और पैदल सेना माना जाता था। अचानक धावा बोलने और बिल्कुल पास आकर हाथ से लड़ने वाले सैनिकों के रूप में नागाओं की अच्छी ख्याति थी।
जानकारी के लिए बता दें कि नागा संन्यासी अनूपगिरी और उनके भाई उमरावगिरी के नेतृत्व में सन 1700 ई. के अंत में तोप और रॉकेट से लैस संन्यासी सैनिकों की संख्या अचानक से बढ़ गई थी। चर्चित इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल के मुताबिक नागा सन्यासी सैनिकों के कमांडर अनूपगिरी गोसाई को मुग़लों ने ‘हिम्मत बहादुर’ के खिताब से नवाजा था।
नागा सन्यासी सैनिकों के कमांडर अनूपगिरी ने 1761 में पानीपत के युद्ध में मराठों के ख़िलाफ़ मुग़ल साम्राज्य और अफ़गानों की ओर से लड़े थे। इसके ठीक तीन साल बाद यानि 1764 ई. में बक्सर के युद्ध में वे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मुगलों के साथ जंग के मैदान में मौजूद थे।
दरअसल सन्यासी अनूपगिरी का उल्लेख 18वीं सदी के सबसे सफल भाड़े के सैनिक के रूप में मिलता है। उनके पास 6000 नंगे बदन सैनिकों और 40 तोपों वाली प्राइवेट आर्मी थी। एक जगह उल्लेख मिलता है कि पैदल और घोड़े पर सवार 10000 सन्यासियों वाली फौज, पांच तोपें, रसद से भरी असंख्य बैलगाड़ियां, टेंट और 12 लाख रुपये (जिनकी कीमत साल 2019 में तकरीबन 166 करोड़ रुपये) थे।
इतिहासकार पिंच के मुताबिक अनूपगिरी ने मुग़ल बादशाह शाह आलम समेत कई मुस्लिम शासकों के पक्ष में लड़ाई लड़ी। यहां तक कि उन्होंने 1761 में पानीपत के युद्ध में मराठों के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान बादशाह अहमद शाह अब्दाली की तरफ़ से जंग किया।
अनूपगिरी गोसाईं दावा करते थे कि उन्होंने मृत्यु को जीत लिया है। हांलाकि बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की विजय ने बंगाल और बिहार पर हुकूमत पक्की कर दी। इस युद्ध में अनूपगिरी बुरी तरह से घायल हुए थे, ऐसे उन्होंने अवध के गवर्नर शुजाउदौला को जंग के मैदान से भागने के लिए मना लिया।
बनारस शहर के जज थॉमस ब्रुक लिखते हैं कि उन्हें एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि अनूपगिरी गोसाई दो नाव में सवार रहने वाले व्यक्ति थे जो डूबने वाली नाव को हमेशा छोड़ने के लिए तैयार रहते थे।
गौरतलब है कि उत्तर भारत के महत्वपूर्ण प्रांत बुंदेलखंड में साल 1734 में जन्मे अनूपगिरी गोसाई अपनी ज़िंदगी के अंत में साल 1803 में अंग्रेज़ों के सामने मराठों की हार में अहम भूमिका निभाई और दिल्ली पर अंग्रेजों के कब्ज़े में मदद की।
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