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देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़े बदलाव की मांग ने हमेशा से ही सुर्खियां बटोरी हैं। पिछले लंबे समय से सरकार और विपक्ष स्वास्थ्य सेवा सुधारों पर आमने-सामने रहे हैं। इसी कड़ी में, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक बार फिर मोदी सरकार पर स्वास्थ्य क्षेत्र का कुप्रबंधन करने का आरोप लगाया है। लेकिन क्या आप भी मानते है कि वाकई मोदी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र का कुप्रबंधन किया है? क्या कांग्रेस का ‘रूठ टु हेल्थ’ चुनावी वादा वास्तव में लागू हो पाएगा? और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में बदलाव के लिए क्या रणनीति अपनाई जा सकती है?-Modi government news
आइये इस रणनीति को समझते है। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र का पूरी तरह से कुप्रबंधन किया है और इसे नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख विफलताओं में से एक बताया है। रमेश ने दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में सुधार कर इस कथित कुप्रबंधन का समाधान करेगी।-Modi government news
‘स्वास्थ्य का अधिकार’ लाने के कांग्रेस के चुनावी वादे को दोहराते हुए, रमेश ने कहा कि कांग्रेस घोषणापत्र सभी के लिए स्वास्थ्य के अधिकार की गारंटी देता है जो स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य बीमा की बढ़ती लागत को देखते हुए समय की मांग है। रमेश ने ट्विटर पर लिखा, “स्वास्थ्य क्षेत्र का पूर्ण कुप्रबंधन मोदी सरकार के 10 वर्षों के अन्याय काल की विफलताओं की लंबी सूची का हिस्सा है। 4 जून को, कांग्रेस पार्टी के सभी के लिए स्वास्थ्य के अधिकार की गारंटी से हर भारतीय आश्वस्त हो सकता है।”
कांग्रेस नेता ने स्वास्थ्य बीमा को 18 प्रतिशत जीएसटी स्लैब में रखने के लिए भी सरकार की आलोचना की और कहा कि 63 प्रतिशत से अधिक भारतीयों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारे न्याय पत्र में हर भारतीय के लिए स्वास्थ्य के सार्वभौमिक अधिकार की गारंटी दी गई है। इस स्वास्थ्य के अधिकार के केंद्र में हर नागरिक के लिए 25 लाख रुपये का स्वास्थ्य कवरेज है।”
राज्यसभा सांसद ने इन क्रांतिकारी स्वास्थ्य सेवा गारंटियों की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि “अदूरदर्शी मोदी सरकार” ने स्वास्थ्य बीमा पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगा दिया है, जिससे आम आदमी के लिए भुगतान करना असंभव हो गया है।
कांग्रेस नेता ने कहा, “अदूरदर्शी मोदी सरकार ने स्वास्थ्य बीमा पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया है। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में मुद्रास्फीति की तुलना में 4 गुना अधिक वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य सेवा की लागत में उद्योग संस्था PHDCCI के अनुसार प्रति वर्ष 18-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।”
उन्होंने आगे कहा, “केवल पिछले 6 वर्षों में 10 लाख रुपये के स्वास्थ्य कवर की लागत में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 90 करोड़ से अधिक भारतीयों के पास किसी भी तरह का स्वास्थ्य बीमा नहीं है।”
आपको बता दे कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र ‘न्याय पत्र’ में अस्पताल, क्लीनिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां, औषधालय और स्वास्थ्य शिविर जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में सार्वभौमिक और निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा का वादा किया है; निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा में जांच, निदान, उपचार, सर्जरी, दवाएं, पुनर्वास और उपशामक देखभाल शामिल है।
पार्टी ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के लिए 25 लाख रुपये तक के कैशलेस बीमा के राजस्थान मॉडल को लागू करने का भी वादा किया है।
बाकि कांग्रेस के ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ वादे की कई आलोचनाएं हुई हैं। कुछ आलोचकों का तर्क है कि इस तरह का वादा वोट हासिल करने के लिए किया गया था और वास्तव में लागू नहीं किया जा सकेगा। अन्य लोगों का सुझाव है कि इतने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने से सरकार पर वित्तीय बोझ पड़ेगा।
हालाँकि, घोषणापत्र का समर्थन करने वालों का तर्क है कि यह समय की मांग है। वे इंगित करते हैं कि स्वास्थ्य सेवा की लागत लगातार बढ़ रही है और कई भारतीयों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है। उनका मानना है कि ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ कांग्रेस घोषणापत्र में एक क्रांतिकारी कदम है जो सभी भारतीयों के लिए बेहतर स्वास्थ्य और भलाई सुनिश्चित करेगा।
ऐसे में कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मोदी सरकार पर स्वास्थ्य क्षेत्र के कुप्रबंधन के आरोप और पार्टी के ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ वादे ने भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की स्थिति पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है।
आपको बता दे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 0.8 डॉक्टर हैं, जो विश्व औसत 1.8 का आधा है।
वही राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का लक्ष्य प्रति 1,000 लोगों पर डॉक्टरों की संख्या को 2025 तक 1 तक बढ़ाना है। जबकि हकीकत में भारत में प्रति 1,000 लोगों पर केवल 1.5 अस्पताल के बिस्तर हैं, जो विश्व औसत 2.7 से बहुत कम है।
वर्ष 2017-18 में, भारत की कुल जीडीपी का केवल 1.28% स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया गया।
जबकि मोदी राज से पहले 2014-15 में, भारत में 35% आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा था। 2018-19 में, यह संख्या घटकर 28% हो गई। क्योंकि स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम में मुद्रास्फीति की तुलना में 4 गुना अधिक वृद्धि हुई है। जोकि प्रति वर्ष 18-20 प्रतिशत ले करीब है।
ऐसे में हम मान सकते है कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मोदी सरकार पर स्वास्थ्य क्षेत्र के कुप्रबंधन के आरोप ने सार्वजनिक बहस छेड़ दी है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ लाने का वादा किया है। घोषणापत्र की कई आलोचनाएं हुई हैं, लेकिन इसके समर्थक तर्क देते हैं कि यह समय की मांग है। यह देखना बाकी है कि क्या कांग्रेस अपने वादे को पूरा कर पाएगी और क्या ‘स्वास्थ्य का अधिकार’ भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सकारात्मक बदलाव लाएगा।
नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।