Modi Government: 10 Years, Farmers’ Issues, Achievements, Challenges and the Future of India

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Modi सरकार का 10 साल का कार्यकाल 26 मई 2014 से शुरू हुआ, जब भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में देश के विकास, सुरक्षा, सामाजिक न्याय, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को बेहतर बनाने के लिए कई योजनाओं और कदम उठाए। लेकिन क्या ये सब काफी थे? क्या मोदी सरकार जनता की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा कर पाई? क्या मोदी सरकार ने जनता के मुद्दों को अनदेखा कर दिया? आइए इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए मोदी सरकार के 10 सालों के कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों और तथ्यों को देखते हैं। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़। 

भारत में बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है, जिसका सीधा असर देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर पड़ता है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में बेरोजगारी को कम करने के लिए कई पहलें की, जैसे कि मुद्रा योजना, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, और आत्मनिर्भर भारत अभियान। लेकिन क्या इन योजनाओं का असर देखने को मिला? क्या बेरोजगारी का स्तर कम हुआ? आइए आंकड़ों की जुबानी जानते हैं।

 मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, यानि 2014 से 2019 तक, भारत में बेरोजगारी का स्तर लगातार बढ़ता रहा। बेरोजगारी के आकड़ो के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर 2014 में 4.9 प्रतिशत थी, जो 2018 में 6.1 प्रतिशत तक बढ़ गई, जो 45 सालों के सबसे उच्च स्तर पर थी।  इसके अलावा, 2019 में भारत में 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं, जिसमें से 33 लाख युवा थे। बेरोजगारी के इस बढ़ते स्तर के पीछे कई कारण थे, जैसे कि नोटबंदी, GST, कम निवेश, कम उत्पादन, कम मांग, और कोरोना महामारी।

इसके बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, यानि 2019 से 2024 तक, भारत में बेरोजगारी का स्तर और भी बढ़ गया। वर्तमान आकड़ो के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 2020 में 7.1 प्रतिशत थी जो 2021 में 8.1 प्रतिशत तक पहुंच गयी। इसके अलावा, 2020 में भारत के 12.2 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं, जिसमें से 7.5 करोड़ गरीब और 4.7 करोड़ मध्यम वर्ग के लोग थे। बेरोजगारी के इस बढ़ते स्तर के पीछे कई कारण थे, जैसे कि कोरोना महामारी, लॉकडाउन, आर्थिक मंदी, कम उद्यमिता, कम रोजगार के अवसर, और कम स्किल।

 इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि मोदी सरकार के 10 सालों में भारत में बेरोजगारी का स्तर निरंतर बढ़ता रहा है, जिससे देश के लाखों लोगों को आर्थिक और सामाजिक तंगी का सामना करना पड़ा है। मोदी सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया है, लेकिन उनका परिणाम अभी तक देखने को नहीं मिला है। बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है, जिसका सीधा असर जनता के मनोबल, आत्मविश्वास, और राजनीतिक रुख पर पड़ता है। अगर मोदी सरकार ने इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल नहीं किया, तो यह 2024 के लोकसभा चुनावों में उनके लिए एक बड़ी बाधा बन सकता है।

इसके अलावा किसानों की आत्महत्या एक ऐसा मुद्दा है, जिसका सीधा असर देश की खेती, खाद्य सुरक्षा, और ग्रामीण विकास पर पड़ता है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या को रोकने के लिए कई पहलें की, जैसे कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, और कृषि सुधार कानून। 

लेकिन क्या इन पहलों का असर देखने को मिला है? 

क्या किसानों की आत्महत्या का स्तर कम हुआ? आइए आंकड़ों की जुबानी जानते हैं।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में, यानि 2014 से 2019 तक, भारत में किसानों की आत्महत्या का स्तर कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ गया। भारत में किसानों की आत्महत्या की संख्या 2014 में 12,360 थी, जो 2019 में 13,261 तक पहुंच गई। इसके अलावा, 2014 से 2019 तक, भारत में कुल 65,457 किसानों ने अपनी जान दे दी, जिसका मतलब है कि हर दिन 30 किसानों ने आत्महत्या की। किसानों की आत्महत्या के इस बढ़ते स्तर के पीछे कई कारण थे, जैसे कि महंगा ऋण, बाजार में फसलों की कम कीमत, बीज, उर्वरक, और कीटनाशकों का महंगा होना, बिजली की कमी, सिंचाई की समस्या, फसल बीमा की कमी, और न्यायिक और सरकारों की अनदेखी। 

इसके बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, यानि 2019 से 2024 तक, भारत में किसानों की आत्महत्या का स्तर कम होने की बजाय और भी बढ़ गया। आकड़ो के अनुसार भारत में किसानों की आत्महत्या की संख्या 2020 में 10,281 थी, जो 2021 में 11,379 तक पहुंच गई। इसके अलावा, 2020 में भारत में 5,563 खेतिहर मजदूरों ने भी आत्महत्या की, जिसका मतलब है कि हर दो घंटे में एक खेतिहर मजदूर ने आत्महत्या की।  किसानों की आत्महत्या के इस बढ़ते स्तर के पीछे कई कारण थे, जैसे कि कोरोना महामारी, लॉकडाउन, आर्थिक तनाव, कृषि कानूनों का विरोध, बाजार में फसलों की अनिश्चित कीमत, और बढ़ता ऋण बोझ।

इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि मोदी सरकार के 10 सालों में भारत में किसानों की आत्महत्या का स्तर लगातार बढ़ता रहा है, जिससे देश के लाखों किसानों और उनके परिवारों को आर्थिक और मानसिक दुःख का सामना करना पड़ा है। मोदी सरकार ने इस मुद्दे को हल करने के लिए कई योजनाओं और कानूनों का ऐलान किया है, लेकिन उनका लाभ किसानों तक पहुंचने में असफल रहा है। किसानों की आत्महत्या एक ऐसा मुद्दा है, जिसका सीधा असर देश की खेती, खाद्य सुरक्षा, और ग्रामीण विकास पर पड़ता है। अगर मोदी सरकार ने इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल नहीं किया, तो यह 2024 के लोकसभा चुनावों में उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

मोदी सरकार की एक और पहल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जिसके तहत, हर वर्ष 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता किसानों को तीन किस्तों में दी जाती है। इस योजना का उद्देश्य किसानों की आय में वृद्धि करना और उनके ऋण बोझ को कम करना है। लेकिन इस योजना का लाभ केवल वही किसान प्राप्त कर सकते हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर तक की जमीन है। इसके अलावा, इस योजना के तहत दी जाने वाली राशि काफी कम है, जो किसानों की आर्थिक स्थिति में कोई बड़ा अंतर नहीं ला सकती है। 

वही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को उनकी फसलों की विफलता, बारिश की कमी या अधिकता, बाढ़, सूखा, आदि से होने वाले नुकसान का मुआवजा दिलवाने में इतनी सफल नहीं हुई जितने की इसके दावे किये जाते है। वैसे इस योजना का उद्देश्य किसानों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाना है। लेकिन इस योजना का लागू होना काफी धीमा और असमान है। कुछ विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में इस योजना का लाभ नहीं पहुंचाया जा रहा है, जबकि कुछ राज्यों में इस योजना को खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा, किसानों को इस योजना के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है, जिससे वे इसका लाभ उठा नहीं पाते हैं। 

आपको बता दे कि, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जिसके तहत, किसानों को सिंचाई की सुविधा प्रदान की जाती है, जिससे वे अपनी फसलों को पानी की कमी से बचा सकते हैं। इस योजना का उद्देश्य किसानों की फसलों की उपज में वृद्धि करना और उनकी आय में बढ़ोतरी करना है। लेकिन इस योजना का निष्पादन काफी कमजोर और अनियमित है। कुछ राज्यों में इस योजना के तहत बनाए गए सिंचाई प्रोजेक्ट्स की गुणवत्ता और प्रभावशीलता कम है, जबकि कुछ राज्यों में इस योजना के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। इसके अलावा, किसानों को इस योजना के बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं है, जिससे वे इसका लाभ ले नहीं पाते हैं।

कृषि सुधार कानूनों के तहत किसानों को अपनी फसल को किसी भी व्यक्ति, संगठन या कॉर्पोरेट के साथ अनुबंध के आधार पर बेचने या उगाने की आजादी मिलती है। इससे किसानों को अपनी फसल की कीमत और उपज का अनुमान पहले से ही पता चल जाता है, जिससे वे अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। इसके अलावा, इन कानूनों के तहत, किसानों को अपनी फसल को किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में बिना किसी रोक-टोक के बेचने की अनुमति मिलती है, जिससे वे अपने लिए सबसे अच्छा बाजार चुन सकते हैं। इससे किसानों को आपदा के समय में भी आर्थिक सहारा मिलती है।

लेकिन इन कानूनों का विरोध करने वाले किसानों का मानना है कि ये कानून उनके हितों के विपरीत हैं। उनके अनुसार, इन कानूनों से केंद्र सरकार ने उन्हें बाजार की अनियंत्रित शक्तियों के हवाले कर दिया है, जो उनकी आय और अधिकारों को खतरे में डाल सकती हैं। वे इन बातों का दावा करते हैं कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था को खत्म करने का इरादा है, जिससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी नहीं मिलेगी।

एमएसपी वह कीमत है, जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है, जिससे किसानों को अपनी लागत से अधिक कमाई हो सके। यदि एमएसपी की गारंटी नहीं होगी, तो किसानों को अपनी फसल को बाजार के अनिश्चित और अस्थिर दामों पर बेचना पड़ेगा, जिससे उनकी आय में घाटा हो सकता है।

इन कानूनों से किसानों को बड़े कॉर्पोरेट के सामने कमजोर बनाया जा रहा है, जो उनकी फसल को कम दामों पर खरीदने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों का बर्गनिंग पावर कम हो जाएगा, और वे अपने अधिकारों और मांगों के लिए संघर्ष करने में असमर्थ हो जाएंगे। इसके अलावा, इन कानूनों में किसानों को किसी भी विवाद के मामले में न्याय पाने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिससे वे अन्याय का शिकार हो सकते हैं।

इन कानूनों से किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि वे अपनी फसल को अनुबंध के आधार पर उगाने या बेचने के लिए मजबूर हो सकते हैं। इससे वे अपनी पसंद की फसल नहीं उगा पाएंगे, और उनकी फसल की गुणवत्ता और विविधता पर भी प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, इन कानूनों से किसानों को अपनी जमीन को खोने का भय भी है, क्योंकि वे अपनी जमीन को किराये पर देने या बेचने के लिए मजबूर हो जायेंगे। 

इन कानूनों के विरोध में किसानों ने देश भर में विभिन्न तरीकों से आंदोलन किया है। उन्होंने राजधानी दिल्ली की ओर चलने का फैसला किया और दिल्ली के आस-पास के कई बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन किया। उन्होंने अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार से बातचीत की, लेकिन बातचीत असफल रही।

इसी के साथ, हमारा आज का वीडियो समाप्त होता है। आशा करते हैं कि आपको हमारा वीडियो पसंद आया होगा, और आपने इससे कुछ नया और जानकारीपूर्ण सीखा होगा। अगर आपको हमारा वीडियो अच्छा लगा, तो कृपया इसे लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करें, और हमारे चैनल को अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी शेयर करें। नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।

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