पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने Haryana Chief Minister नयाब सिंह सैनी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र, राज्य सरकार और चुनाव आयोग को किया नोटिस जारी।-Legal Tangle in Political Arena news
क्या राजनीतिक नियुक्तियां हमेशा संविधान के अनुरूप होती हैं? क्या लोकतंत्र में नियमों का पालन हो रहा है या यह सिर्फ एक खेल है? आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज़।-Legal Tangle in Political Arena news
हाल ही में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक बहस के लिए मंच तैयार किया है, जिसमें Haryana Chief Minister के रूप में नयाब सिंह सैनी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र, राज्य सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किए गए हैं। अधिवक्ता जगमोहन सिंह भट्टी द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में आरोप लगाया गया है कि सैनी के नेतृत्व में बनी नई हरियाणा सरकार “अवैध और लोकतंत्र पर धोखा” है। भट्टी ने सैनी की नियुक्ति के कारण हरियाणा विधानसभा के सदस्य संख्या की संवैधानिक रूप से अनुमत सीमा 90 से अधिक होने सहित कई आधारों पर कथित अवैधता की रूपरेखा प्रस्तुत की है। उन्होंने सैनी के साथ नियुक्त किए गए पांच नए कैबिनेट मंत्रियों की वैधता पर भी सवाल उठाया है।
आपको बता दे कि भट्टी द्वारा उठाए गए एक मामले में महत्वपूर्ण आपत्ति यह है कि सैनी कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से एक सिटिंग सांसद के रूप में “लाभ के पद” पर आसीन थे, जब उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। भट्टी का तर्क है कि यह संविधान के प्रावधानों और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन करता है।
इस याचिका के जवाब में, उच्च न्यायालय ने केंद्र, हरियाणा सरकार, चुनाव आयोग और हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस जारी किए। नयाब सिंह सैनी ने पिछले सप्ताह मनोहर लाल खट्टर और उनके कैबिनेट मंत्रियों के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद नए मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।
इस घटनाक्रम के बाद, राजनीतिक और कानूनी जगत में व्यापक चर्चा शुरू हो गई है। लोकतंत्र में नियुक्तियों की प्रक्रिया और उसके संवैधानिक आधार को लेकर विभिन्न मत और विचार सामने आ रहे हैं। एक ओर जहां कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नियुक्तियों में संविधान के प्रति अनुरूपता अत्यंत आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे राजनीतिक खेल के रूप में देख रहे हैं।
‘लाभ के पद’ की अवधारणा के आधार पर, यह मामला भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों को छूता है। इसका उद्देश्य विधायिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना और सरकारी शक्तियों के बीच विभाजन को बनाए रखना है। इस मामले में संदेह कि बात ये है कि सैनी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय ‘लाभ के पद’ पर आसीन थे, जो कि संविधान के अनुच्छेद 191(1) और 102(1) के अनुसार वैध नहीं है।
इस प्रकरण की तुलना सोनिया गांधी के 2006 में लोकसभा सीट से इस्तीफे से की जा रही है, जब उन पर ‘लाभ के पद’ पर होने का आरोप लगा था। उस समय, सोनिया गांधी सांसद के साथ-साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी थीं, जो कि एक कैबिनेट मंत्री के पद के समकक्ष था।
इस मामले में आगे की सुनवाई 30 अप्रैल को निर्धारित है, जिसमें केंद्र, राज्य सरकार, चुनाव आयोग और हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष को अपना जवाब देना है। इस बहस का नतीजा न केवल हरियाणा की राजनीति पर, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डाल सकता है।
अगली वीडियो में, हम ‘लाभ के पद’ की अवधारणा और इसके भारतीय राजनीति पर प्रभावों की गहराई से चर्चा करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि इस तरह के मामले कैसे भारतीय लोकतंत्र की नींव को प्रभावित करते हैं और इसके लिए नियमों और नीतियों में क्या बदलाव की आवश्यकता है। इस विषय पर आपके विचार क्या हैं? क्या आपको लगता है कि नियमों का पालन हो रहा है, या यह सिर्फ राजनीतिक खेल है? हमें अपनी राय बताएं। नमस्कार, आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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