कुवैत में भारतीय मजदूरों की हालत बदतर, कफाला सिस्टम बना रहा भारतीयों को गुलाम-kuwait building fire update

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kuwait building fire update

कुवैत में भारतीय मजदूरों की हालत बदतर

कफाला सिस्टम ने बना रखा है गुलाम

कुवैत की कुल आबादी का 21% भारतीय कामगार

आखिर क्यों होता है मजदूरों का शोषण ?

बिल्डिंग में आग से 40 से अधिक भारतीय मजदूरों की मौत-kuwait building fire update

कुवैत की एक इमारत में 12 जून को तड़के लगी भीषण आग में 50 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर हैं. इनमें 40 से अधिक भारत के नागरिक हैं. वे नाइट शिफ्ट के बाद लौटकर सो रहे थे. आग की वजह से ज्यादातर को संभलने तक का मौका नहीं मिला, न ही तंग जगह के चलते भाग सके. कुवैती सरकार का कहना है अधिकतर मौतें दम घुटने की वजह से हुईं. अब इस मामले में तेजी से कार्रवाई हो रही है, लेकिन कुवैत समेत किसी भी खाड़ी मुल्क की तस्वीर पाक-साफ नहीं. अक्सर इनपर आरोप लगता रहा है कि यहां पेशेवर, खासकर प्रवासी मजदूर अमानवीय हालातों में रहते हैं.. आज के वीडियो में हम आपको बताएंगे कि भारतीय कामगारों की वो कहानी जो आपको हैरान कर देगी..-kuwait building fire update

नमस्कार आप देख रहे हैं AIRR NEWS…सबसे पहले आपको गल्फ कंट्रीज के बारे में बताते हैं.. दरअसल जिन भी देशों के बॉर्डर फारस की खाड़ी से मिलते हैं, वे खाड़ी या गल्फ देश कहलाते हैं. इनमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात- ये 6 देश शामिल हैं. वैसे तो ईरान और इराक भी फारस की खाड़ी से कनेक्टेड हैं, लेकिन वे गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल का हिस्सा नहीं, न ही यहां काम करने ज्यादा भारतीय जाते हैं…

सत्तर के दशक में ऑइल बूम के बाद से भारत से काफी सारे लोग काम के लिए गल्फ जाने लगे. इनमें पेशेवर लोगों के अलावा मजदूर ज्यादा थे, जैसे इमारत बनाने वाले या इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने वाले… मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि लगभग 10.34 मिलियन NRI 200 से ज्यादा देशों में रह रहे हैं. इनमें यूएई में लगभग साढ़े 3 मिलियन, सऊदी अरब में 2.59 मिलियन, कुवैत में 1.02, कतर में 74 लाख, ओमान में 7 लाख, जबकि बहरैन में सवा 3 लाख भारतीय हैं.

गल्फ के अलावा सबसे ज्यादा देसी लोग अमेरिका में लगभग 1.28 मिलियन हैं. अब बात करते हैं कुवैत की. अग्निकांड वाले इस देश में कुछ समय पहले सार्वजनिक नागरिक सूचना प्राधिकरण ने एक डेटा जारी किया था. इसकी मानें तो दिसंबर 2023 तक कुवैत की आबादी लगभग 49 लाख थी, जिसमें 15 लाख से ज्यादा स्थानीय लोग, जबकि 39 फीसदी लोग प्रवासी हैं. इसमें भी इंडियन वर्कर सबसे ज्यादा हैं… अब एक सवाल ये है कि आखिर भारत से लोग कुवैत या काकी खाड़ी देशों में क्यों जाते हैं..

हमारे देश का गल्फ के साथ करार है कि वे मजदूरों को न्यूनतम रेफरल वेतन दे. इसके लिए कामगारों को खुद को फॉरेन मिनिस्ट्री के ई-माइग्रेट पोर्टल पर रजिस्टर करना होता है… काम के अनुसार वेतन तय होता है, जैसे राजमिस्त्री, ड्राइवर और कारपेंटर के काम पर हर महीने न्यूनतम 3 सौ डॉलर मिलेंगे, जबकि डोमेस्टिक वर्कर इससे ज्यादा कमाई करते हैं.

वहीं पेशेवरों, जैसे नर्स, इंजीनियरों की कमाई काफी ज्यादा है. कामगार आमतौर पर गल्फ जाकर पैसे बचाते और अपने घर भेजते हैं. इससे कम समय में भारतीय करेंसी के हिसाब से काफी सेविंग हो जाती है. यही कारण है कि वहां ज्यादा से ज्यादा लोग जा रहे हैं.. हालांकि तनख्वाह भले ही ज्यादा दिख रही हो लेकिन वहां भारतीय कामगार अक्सर अमानवीय हालातों में रहते हैं. यहां तक कि उनके काम के घंटे भी तय नहीं होते. उन्हें स्थानीय लोगों से खराब ट्रीटमेंट मिलता है. कई रिपोर्ट्स इसकी पुष्टि कर चुकीं.

साल 2019 से जून 2023 तक बहरैन, ओमान, कुवैत, यूएई, कतर और सऊदी अरब के भारतीय दूतावासों में 48 हजार से ज्यादा शिकायतें आईं. ये सारी शिकायतें फोर्स्ड लेबर से जुड़ी हुई थीं.. असल में खाड़ी देशों में एक सिस्टम है- कफाला. ये एम्प्लॉयर को अपने कर्मचारी पर बहुत ज्यादा अधिकार दे देता है. आसान तरीके से कहें तो कामगार अपने मालिक का गुलाम हो जाता है. उसके काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं और पगार तय नहीं होती. कई एम्प्लॉयर अपने मजूदरों के पासपोर्ट तक अपने पास रख लेते हैं ताकि वे कहीं भाग न सकें.

यहां तक कि उन्हें फोन रखने या वर्क एरिया से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती. हफ्ते के किसी भी दिन उन्हें छुट्टी नहीं मिलती. पासपोर्ट जब्त हो चुकने की वजह से वे अपने देश भी नहीं लौट सकते.. यूनाइटेड नेशन्स में बात उठने पर कुवैत के अलावा सऊदी और कतर ने भी कफाला को खत्म करने की बात की, लेकिन ये पूरी तरह बंद नहीं हो सका. अब आपको बताते हैं कि कफाला क्या होता है… इसमें एम्प्लॉयर को कफील कहा जाता है, जिसे कुवैत या बाकी गल्फ देशों की सरकार स्पॉन्सरशिप परमिट का हक देती है. कफील अक्सर कोई फैक्ट्री मालिक होता है.

परमिट के जरिए ये विदेशी मजदूरों को अपने यहां बुला सकता है. बदले में वे मजदूर के आने-जाने, रहने और खाने का खर्च देते हैं. इसमें होता ये है कि मालिक फैक्ट्री के भीतर ही मजदूरों को ठूंस देते हैं ताकि जब चाहे काम करवाया जा सके.. खाड़ी देशों की सरकार को ये फायदा होता है कि उनके यहां कम कीमत पर उत्पादन होता रहता है… रहने-खाने की स्थिति सबसे बदतर है. वहां मुख्य रिहायशी इलाकों से दूर इमारतें बनाई जाती हैं, जहां प्रवासी मजदूरों को रखा जाता है.

ये तंग दरवाजे-खिड़कियों वाले छोटे-छोटे कमरे होते हैं, जहां कई लोगों को साथ रहने कहा जाता है. किराया दिए बगैर रहने के नाम पर मजदूर इस पर राजी भी हो जाते हैं…कुवैत के हालात ऐसे मजदूरों के लिए नरक से कम नहीं हैं.. साल 2022 में एक्सपैट इनसाइडर की रिपोर्ट जारी हुई. इसमें विदेशों में रहते लोगों ने कुवैत को 52 देशों में सबसे नीचे रखा था. साथ ही सुरक्षा और खुशी के मानकों में भी ये सबसे नीचे था. उनकी शिकायत थी कि खाड़ी देशों के स्थानीय लोग बाहरी लोगों से दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं. कुवैत के अलावा सऊदी पर भी बड़े आरोप लगते रहे हैं..लंबे समय से सऊदी अरब से भी विदेशी मजदूरों के शोषण की खबरें आती रही हैं. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक यहां विदेशी मजदूरों की अचानक मौत हो रही है. वे बंदे कमरों में जानवरों की तरह रखे जाते हैं. उनके खाने-पीने और बीमारी में मेडिकल ट्रीटमेंट का भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होता.

आईएलओ ने बाकायदा आंकड़े देते हुए पूछा कि फलां-फलां साल में एकाएक इतने लेबर्स की मौत क्यों हुई, जो देश आने से पहले स्वस्थ और युवा थे. सऊदी ने जब-जब बड़े खेलों का आयोजन कराया, तब भी मानवाधिकार संस्थाओं ने कहा था कि देश स्पोर्ट्सवॉशिंग कर रहा है यानी खेलों के जरिए गलतियों पर लीपापोती कर रहा है… अब सोचिए कुवैत में किस तरह से भारतीय मजदूरों के साथ अमानवीयता की जा रही है लेकिन इस पर सरकारें मौन हैं.. हालात सुधारने की जरूरत है… इसी तरह की खबरों के लिए आप जुड़े रहिए AIRR NEWS के साथ.. नमस्कार….

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