कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र, जिसके लिए भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच विवाद चल रहा है। इस विवाद के कारण, कश्मीर के लोगों को कई सालों से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है। कश्मीर में राजनीतिक पार्टियों के बीच भी तकराव है, जिनमें से दो प्रमुख पार्टियां हैं- कांग्रेस और राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस। इन दोनों पार्टियों के बीच का रिश्ता कभी सहयोगी और कभी विरोधी रहा है, जिसका प्रभाव कश्मीर की राजनीति और समाज पर पड़ा है। आज हम इसी राजनीतिक संघर्ष के बारे में जानेंगे, जिसने कश्मीर को एक नए मोड़ पर ले जाने का प्रयास किया है।
नमस्कार, आप देख रहे हैं AIRR न्यूज।
कश्मीर में कांग्रेस और राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के बीच का राजनीतिक संघर्ष एक लंबा इतिहास रखता है। इसकी शुरुआत 1932 में हुई, जब शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का गठन किया, जो बाद में 1939 में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के नाम से जाना जाने लगा। जिसके जरिये उन्होंने कश्मीर के लोगों के लिए स्वायत्तता और स्वराज की मांग की, और भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी भाग लिया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद, कश्मीर के राजा हरी सिंह ने भारत से शामिल होने का फैसला किया, जिसका समर्थन शेख अब्दुल्ला ने किया। शेख अब्दुल्ला को कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया गया, और उन्होंने भारत के संविधान के अनुसार कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने का प्रयास किया।
लेकिन 1953 में, भारत की केंद्र सरकार ने शेख अब्दुल्ला को हटा दिया, और उनपर देशद्रोह का आरोप लगाकर नजरबंद कर दिया। इसके बाद, कश्मीर में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस की जगह बक्शी गुलाम मोहम्मद को मुख्यमंत्री बनाया गया, जो भारत की केंद्र सरकार के करीब था। बक्शी ने कश्मीर के विकास और शिक्षा में काफी योगदान दिया, लेकिन उनके शासन काल में भी शेख अब्दुल्ला के समर्थकों का विरोध जारी रहा। 1964 में, शेख अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया, और उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के मुद्दे को हल करने का दौरा करने की अनुमति दी गई। लेकिन इस दौरान, उनके समर्थकों ने कश्मीर में एक जनसंख्या गिनती का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भारत के साथ कश्मीर के विलय के खिलाफ वोट दिया। इससे भारत की सरकार को आपत्ति हुई, और उन्होंने फिर से शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया।
आपको बता दे कि 1965 में, कश्मीर में कांग्रेस और राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का विलय हो गया, और यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जम्मू और कश्मीर शाखा बन गई। लेकिन, शेख अब्दुल्ला ने एक अलग फ्रंट का गठन किया, जिसमे मूल राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का नाम अपने आप में शामिल कर लिया। इस फ्रंट ने कश्मीर के लोगों को भारत या पाकिस्तान के साथ मिलने का अधिकार देने के लिए एक जनमत संग्रह की मांग की। 1972 में, शेख अब्दुल्ला को फिर से रिहा किया गया, और उन्हें भारत के साथ कश्मीर के विलय को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। 1975 में, शेख अब्दुल्ला ने इंदिरा गांधी के साथ कश्मीर के आत्मशासन को बहाल करने के लिए एक समझौता किया, और उन्हें फिर से कश्मीर का मुख्यमंत्री बनाया गया।
आपको बता दे कि शेख अब्दुल्ला की मृत्यु के बाद, उनके बेटे फारुक अब्दुल्ला ने 1981 में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व संभाला। फारुक अब्दुल्ला ने भी कश्मीर के आत्मशासन को बचाने के लिए संघर्ष किया, लेकिन उन्हें भारत की केंद्र सरकार के साथ अनेक बार टकराव का सामना करना पड़ा। 1983 में, भारत की कांग्रेस पार्टी ने कश्मीर में विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस को हराने का प्रयास किया, लेकिन राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ने बहुमत हासिल करके जीत दर्ज की। लेकिन, इस जीत के बाद भी, फारुक अब्दुल्ला को अपने विधायकों के विश्वास मत पाने में असफलता हुई, और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। 1984 में, फारुक अब्दुल्ला के भाई गुलाम मोहम्मद शाह ने कांग्रेस के साथ मिलकर एक गठबंधन सरकार बनाई, जिसे भारत की केंद्र सरकार ने समर्थन दिया। लेकिन, ये सरकार भी लंबे समय तक नहीं चल पायी,और 1986 में भारत की केंद्र सरकार ने कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया।
इसके बाद 1987 में, फारुक अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी को फिर से जिंदा करने का प्रयास किया, और कश्मीर में विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बीजेपी के साथ गठबंधन किया। लेकिन, इस चुनाव में धांधली के आरोप लगे, और राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ने फिर से बहुमत हासिल कर लिया। इससे कश्मीर में नाराजगी और असंतोष फैला, और कुछ लोगों ने हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। इन लोगों में से कुछ पाकिस्तान के साथ मिलकर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने लगे, और कश्मीर में एक लंबा और खूनी विद्रोह उभरा।
इस विद्रोह के दौरान, कश्मीर में राज्यपाल शासन और केंद्रीय शासन के अलावा कोई स्थायी सरकार नहीं बन पाई। 1996 में, राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ने फिर से विधानसभा चुनाव में भाग लिया, और फारुक अब्दुल्ला को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन, उनकी सरकार ने कश्मीर की समस्या को हल करने में कोई भूमिका नहीं निभाई, और आतंकवाद और हिंसा का सामना करती रही। 2002 में, फारुक अब्दुल्ला के बेटे ओमर अब्दुल्ला ने राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व संभाला, और उन्होंने कश्मीर के लिए एक नया राजनीतिक एजेंडा बनाने का वादा किया। लेकिन, उनकी पार्टी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, और कश्मीर में पहली बार एक गठबंधन सरकार बनी, जिसमें जम्मू और कश्मीर की लोकतांत्रिक पार्टी जेकेपीडी और कांग्रेस शामिल थे।
तो आज कि इस खास वीडियो में इतना ही अगले भाग में हम इस मामले को और गहराई से जानेगे। तब तक के लिए नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।
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