karnataka के 14 सीटों का समीकरण-karnataka election result
लिंगायत जनाधार का प्रभाव
7 मई को होना है मतदान
बीजेपी या कांग्रेस, किसका पलड़ा भारी ?
Lok Sabha Elections में karnataka की बची 14 सीटों पर 7 मई को मतदान होगा. ये सीटें अधिकतर उत्तरी और मध्य karnataka में हैं. पिछली बार को Lok Sabha Elections में बीजेपी ने सभी 14 सीटें जीती थीं. 2014 में बीजेपी ने 10 सीटें जीती थीं और कांग्रेस को 4 सीट मिली थी. इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा टकराव है. –karnataka election result
जेडीएस इस क्षेत्र में बीजेपी के साथ गठबंधन के हिस्से के रूप में किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है.. karnataka में तीन अलग-अलग क्षेत्र हैं जहां 7 मई को मतदान होने जा रहा है. कित्तूर karnataka क्षेत्र जिसे पहले मुंबई-karnataka क्षेत्र कहा जाता था.. करीब तीन दशकों से बीजेपी का गढ़ रहा है. कल्याण-karnataka क्षेत्र जिसे पहले हैदराबाद कर्नाटक कहा जाता था, राज्य के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है और यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच लड़ाई देखी गई है,
जिसमें जेडीएस को समर्थन मिले हैं. तीसरा क्षेत्र मध्य karnataka क्षेत्र है जहां दो दशकों में बीजेपी की बढ़ती उपस्थिति देखी गई है. परंपरागत रूप से यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है… बीजेपी ने इन 14 सीटों पर अपने आधे मौजूदा सांसदों को बदल दिया है और बाकी आधे को उम्मीदवार बनाया है. कुछ मौजूदा सांसदों को दोबारा टिकट दिए जाने से बीजेपी में नाराजगी है. इसी तरह कम से कम दो सीटों जिसमें कोप्पल और उत्तर कन्नड़ पर मौजूदा सांसदों ने अपनी आपत्ति व्यक्त की है. कांग्रेस के मामले में 14 में से पांच उम्मीदवार राज्य सरकार के मंत्रियों के बेटे/बेटियां हैं. अन्य तीन वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के रिश्तेदार हैं और एक रिटायर आईएएस अधिकारी हैं.
सरकार के किसी भी वरिष्ठ मंत्री ने खुद को उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया. एक उम्मीदवार को छोड़कर, कांग्रेस के किसी भी उम्मीदवार ने 2019 का चुनाव नहीं लड़ा. यह बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों की अलग-अलग ताकतों का कारण है… अब आपको डेमोग्राफिक प्रभाव के बार में जानकारी देते हैं… -karnataka election result
karnataka में जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें लिंगायत, अन्य पिछड़ी जातियां, दलित और आदिवासी मतदाताओं की अच्छी-खासी मौजूदगी है. उत्तरी karnataka में लिंगायतों की महत्वपूर्ण राजनीतिक उपस्थिति है. लोकनीति-सीएसडीएस सर्वेक्षणों के आंकड़ों से पता चलता है कि, 2014 के Lok Sabha Elections के बाद से, 2023 के विधानसभा चुनावों को छोड़कर, बीजेपी ने 60 प्रतिशत से अधिक लिंगायत वोट हासिल किए हैं.
उस चुनाव में लिंगायत वोटों में बीजेपी की हिस्सेदारी घटकर 56 प्रतिशत रह गई. इससे पहले 2019 के Lok Sabha Elections में उसे करीब 87 फीसदी लिंगायत वोट मिले थे… दूसरी ओर कांग्रेस 2014 के बाद से सभी चुनावों में लिंगायत वोटों का लगभग एक चौथाई हिस्सा हासिल कर रही है. 2019 में लिंगायतों के बीच कांग्रेस का वोट शेयर घटकर सिर्फ 10 फीसदी रह गया. ऐसे में वोट किस तरह से स्विंग करेगा यह महत्वपूर्ण है.
निर्णय लेने वाले महत्वपूर्ण पद पर येदियुरप्पा की वापसी, उनके बेटे को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने और लिंगायत समुदाय के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने के साथ, बीजेपी लिंगायत वोटों के एकीकरण की उम्मीद कर रही होगी… इन 14 सीटों पर गैर-प्रमुख ओबीसी वोटों की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए, कांग्रेस और बीजेपी दोनों इस वोट को जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
2014 के बाद से बीजेपी ने इन मतदाताओं के बीच कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया है (लोकनीति सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार). कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनावों में इस अंतर को कम करके एक प्रतिशत कर दिया था. इस बार यह वोट प्रमुख सीटों पर स्विंग फैक्टर हो सकता है. 2014 से इस क्षेत्र में दलित वोट मजबूती से कांग्रेस के साथ है.
यहां तक कि जब 2019 में बीजेपी ने इस क्षेत्र की सभी सीटों पर कब्जा कर लिया, तब भी दलित मतदाताओं के बीच कांग्रेस को छह प्रतिशत अंक का फायदा हुआ था. इसी तरह की और खबरों के लिए आप जुड़े रहिए AIRR NEWS के साथ…
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