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भाजपा की मंडी लोकसभा सीट की उम्मीदवार कंगना रनौत ने 13 मई को एक जनसभा में भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ में बदलने की अपनी इच्छा दोहराई। रनौत ने इस विचार पर जोर दिया कि भारत को वास्तव में 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आजादी मिली थी।-Kangana Ranaut’s Demand news
आइये इसे विस्तार से समझते है। नमस्कार आप देख रहे है AIRR न्यूज़।
ऐतिहासिक संदर्भ पर ध्यान आकर्षित करते हुए, रनौत ने मुगल और ब्रिटिश शासन के अधीन सदियों से चले आ रहे वर्चस्व की ओर इशारा किया, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस द्वारा 1947 के बाद कथित कुप्रबंधन का वर्णन किया। उन्होंने तर्क दिया कि 2014 न केवल विचार की मुक्ति का प्रतीक था बल्कि सनातन मूल्यों की पुष्टि भी था, जिससे हिंदू धर्म को खुले तौर पर अपनाने की स्वतंत्रता मिली।-Kangana Ranaut’s Demand news
अभिनेत्री से नेता बनी रनौत ने सवाल किया कि 1947 में विभाजन के दौरान भारत को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया गया, और हिंदू राष्ट्र के विजन को साकार करने की दिशा में काम करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा, “1947 में विभाजन के दौरान, जिसके कारण इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान का जन्म हुआ, भारत को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया गया? हम भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में काम करेंगे।”
आपको बता दे कि मंडी से उनकी उम्मीदवारी, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है, आगामी लोकसभा चुनावों में एक और रोचक मोड़ जोड़ती है, जहां उनका सामना एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी विक्रमादित्य सिंह से है, जो दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे हैं।
1 जून को होने वाले हिमाचल प्रदेश के चुनावों में न केवल चार लोकसभा सीटों के लिए, बल्कि छह खाली विधानसभा सीटों के लिए भी कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। भाजपा का लक्ष्य 2019 की अपनी सफलता को दोहराना है, जहां उसने राज्य में सभी लोकसभा सीटें जीती थीं। मंडी निर्वाचन क्षेत्र का प्रतीकात्मक महत्व है, क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से वीरभद्र परिवार से जुड़ा रहा है। वर्तमान में प्रतिभा देवी सिंह के पास यह सीट है और यह राजनीतिक विवाद का केंद्र बिंदु बनने के लिए तैयार है।
वैसे कंगना रनौत की ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग एक विवादास्पद बयान है, जिसने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है। कुछ लोगों का मानना है कि यह बयान भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता के मूल्यों के खिलाफ है। अन्य लोगों का तर्क है कि यह भारत के सनातन इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार की गारंटी है। ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग इस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती प्रतीत होती है, क्योंकि यह हिंदू धर्म को राष्ट्र के विशेषाधिकार प्राप्त धर्म के रूप में स्थापित करेगी।
यह भी विचार करना महत्वपूर्ण है कि भारत एक विविध देश है, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं। ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग से अल्पसंख्यकों की चिंताओं और उनकी समानता और सम्मान के अधिकारों को संबोधित करना आवश्यक है।
आपको बता दे कि कंगना रनौत की ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग ने भारत में धर्मनिरपेक्षता और विविधता के मूल्यों पर महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। इस मांग के संभावित प्रभाव और पिछली घटनाओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है:
क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता और समानता का अधिकार है। ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग इस धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को कमजोर कर सकती है, क्योंकि यह हिंदू धर्म को राष्ट्र के विशेषाधिकार प्राप्त धर्म के रूप में स्थापित करेगी।
भारत एक विविध देश है जहाँ विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं। ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग से अल्पसंख्यकों की चिंताओं को जन्म मिलेगा, जो अपनी समानता और सम्मान के अधिकारों को लेकर चिंतित होंगे।
वैसे हिंदू राष्ट्र की मांग से समाज में विभाजन हो सकता है, क्योंकि यह हिंदुओं और गैर-हिंदुओं के बीच की रेखा को और स्पष्ट करेगी। इससे सांप्रदायिक तनाव और संघर्ष हो सकता है।
हालाँकि भारत में ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग कोई नई बात नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जैसे हिंदू राष्ट्रवादी संगठन दशकों से इस विचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
हिंदू राष्ट्र की मांग को 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से मजबूती मिली, जो एक ऐसी घटना थी जिसने सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया और भारत के दंगों और हिंसा का दौर शुरू किया।
इसके बाद 2002 के गुजरात दंगों को भी ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग से जोड़ा गया है, क्योंकि दंगों की शुरुआत हिंदुओं पर मुसलमानों द्वारा किए गए कथित हमले से हुई थी।
कंगना रनौत की ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग ने भाजपा और आरएसएस के एजेंडे को फिर से सामने ला दिया है। इस मांग से भाजपा के भीतर हिंदू राष्ट्रवादी तत्वों को बढ़ावा मिलने की संभावना है, और यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता के लिए खतरा पैदा कर सकती है।
इसके अलावा, ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग से सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की संभावना है, क्योंकि यह हिंदुओं और गैर-हिंदुओं के बीच की रेखा को और अधिक स्पष्ट करती है। इससे सामाजिक विभाजन और संघर्ष हो सकता है, जिसका भारत की एकता और अखंडता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
तो इस तरह हम मान सकते है कि कंगना रनौत की ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग एक विवादास्पद और खतरनाक मांग है। यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता को कमजोर करती है, अल्पसंख्यकों की चिंताओं को जन्म देती है और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देती है। भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए इस मांग का विरोध करना और धर्मनिरपेक्षता और विविधता के सिद्धांतों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।
बाकि भारतीय जनता पार्टी की मंडी लोकसभा सीट की उम्मीदवार कंगना रनौत ने भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की अपनी इच्छा दोहराई है। उन्होंने तर्क दिया कि 2014 में भारत को वास्तव में आजादी मिली थी, और 1947 में विभाजन के दौरान भारत को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया गया था, इस पर सवाल उठाया। उनकी मांग ने भारत की धर्मनिरपेक्षता और विविधता के मूल्यों पर बहस छेड़ दी है, क्योंकि यह अल्पसंख्यकों की चिंताओं को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
तो आज के लिए इतना ही बाकि अन्य खबरों के लिए बने रहिये हमारे साथ। नमस्कार आप देख रहे थे AIRR न्यूज़।